कोरोना काल में सेवा का अनूठा स्वरूप देखने को मिल रहा है। लावारिश लाशों का कफन-दफन करके मिसाल कायम कर रही है। यह अनूठा काम ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन व खिद्मत-ए-खल्क अंजाम दे रही है। एसोसिएशन से जुड़े अशोक कुमार भाटिया बताते हैं कि अरसे से एसोसिएशन जन सहयोग से बिना किसी सरकारी इमदाद के यह काम कर रही है।
कोरोना काल में अकेले मार्च से अब तक चालीस से अधिक लावारिश लाशों की अंतिम क्रिया की जा चुकी है। एसोसिएशन को लावारिश लाशों के विषयों में पुलिस सूचित करती है। इसके बाद पुलिस लिखत-पढ़त में एसोसिएशन को शव सुपुर्द करती है। हिन्दुओं का हिन्दू रीति-रिवाज और मुस्लिमों की मुस्लिम रिवाज के मुताबिक अंतिम क्रिया की जाती है। अशोक कुमार भाटिया के साथ ही राशिद सिद्दीकी अरसे से इस सेवा में उनके साथ जुटे हैं। हिन्दु शवों का दाह-संस्कार लालबाग श्मशान घाट में जबकि मुस्लिमों का दफन सरकारी कब्रिस्तान में किया जाता है। अरसे से पहले परिवार के किसी अपने को खो देने के बाद अशोक कुमार भाटिया के मन में सेवा का यह अनूठा विचार आया था। राशिद सिद्दीकी का साथ मिला और बीस बरस से अधिक से यह सेवा जारी है। अशोक कुमार भाटिया बताते हैं कि बीते शुक्रवार को ही चार लावारिश लाशों की अंतिम क्रिया की गई। इनमें पुरुष व महिलाएं दोनो ही शामिल रहते हैं। सामान्य दिनो में पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन विधि-विधान के साथ एक साल में एक बार अस्थि कलश का विसर्जन किया जाता है। इसमें हिन्दू-मुस्लिम दोनो ही शरीक रहते हैं। कोरोना काल के चलते अभी यह संभव नहीं है। इसलिए अस्थियों को सुरक्षित रख लिया जाता है। समय आने पर इनका प्रवाह किया जाता है।