चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम भारतीय सेना- राजू आर्य

दिल्ली/एटा- चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम भारतीय सेना- राजू आर्य

●चालबाज चीन ने बातचीत की आड़ में 20 हजार जवान किए तैनात, सतर्क रहना अति-आवश्यक।

एटा। विश्व हिंदू परिषद के कट्टर हिंदूवादी नेता रंजीत कुमार उर्फ राजू आर्य ने भारत-चीन के बीच उलझते हालातों पर कहा कि गलवान घाटी पर बातचीत के बीच चालबाज चीन लगातार LAC पर अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा रहा है और हाल ही में पता चला है कि पूर्वी लद्दाख में उसने भारत के खिलाफ 20 हजार से अधिक सैनिक तैनात कर दिए हैं साथ ही करीब 10 हजार सैनिकों को पीछे सहायता प्राप्ति हेतु रखा हुआ है। आर्य ने कहा कि भारत सरकार को अब चीन को अधिक समय और अवसर नहीं देना चाहिए जिससे कि बातचीत की आड़ में चीन अपनी स्थिति और मजबूत न कर सके, अब समय है कि भारतीय सेना चीन को मुंहतोड़ जवाब दे। भारतीय सेना सशक्त है और चीनी सेना को मात देने में पूर्णतः सक्षम है। आर्य ने कहा कि शायद चीन को ज्ञात नहीं वह किससे बैर ले रहा है, 1965 और 1967 का अंजाम शायद भूल गया है और आज की स्थिति में भारतीय सेना पहले से बहुत ही हाईटेक है। अगर चीन ने कोई गलती कि है तो उसका अंजाम उसे भुगतना पड़ेगा और जिस बारे में चीन ने कल्पना भी नहीं की होगी।
चीन ऐसा भूमाफिया देश बनकर उभरा है जो अपने पड़ोसियों की सीमाओं पर बुरी नजर रखता है, चीन का भोंपू बनकर काम करने वाला ग्लोबल टाइम्स आये दिन प्रोपेगैंडा वीडियोज़ दिखाकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है लेकिन चीन के भोंपू मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स को यह समझना चाहिए की भारतीय सेना हमेशा युद्ध जैसी स्थिति में काम करती है जबकि चीनी सेना डरपोक सेना है जो ताइवान जैसे छोटे देश के आगे भी सरेंडर कर देती है और इस बात को भारत भली भांति समझता है।
आर्य ने कहा कि चीन भारत से उलझकर अपनी बर्बादी को निमंत्रण दे चुका है अब उसकी गर्दन भारतीय सेना के हाथ में है जिसे जल्द सेना मरोड़कर तोड़ देगी। जिसका एक ट्रेलर 16 जून की रात चीन, भारत से उलझकर देख चुका है। जब निहत्थे भारतीय जवानों ने 40 से भी अधिक चीनियों को मौत के घाट उतार दिया और बड़ी संख्या में चीनी सेना के जवानों की गर्दन तोड़ दी।
आगे राजू आर्य ने कहा कि भारतीय सेना बहुत ही मजबूत स्थिति में है और चीनियों की अक्ल ठिकाने लगाने में सक्षम है अगर चीन ने कोई गलती की तो जिस जमीन पर चीन ने कब्जा कर रखा है वह भी गंवा बैठेगा।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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