दौड़ और धुप के बीच में नगर पालिका चुनाव !
एटा नगर पालिका चुनाव अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता चला जा रहा है वही चुनाव लड़ने वाले प्रत्यासियो में टिकट को लेकर जंग छिड़ी हुई है, सबसे बड़ी बात नगर पालिकाओं में आरक्षण को लेकर बहस और पार्टियां के कार्यालयों की जी हुजूरी भी बढ़ गईं है।

एटा नगर पालिका पर नजर रखें तो वर्तमान पालिका अध्यक्ष मीरा गाँधी के वर्चुस्व से जंग होना तय है।बसपा अपने हाथ पैर बांध कर इस समय किसी कोन से सपा और बीजेपी की जंग को महाभारत के संजय की भाँती देंख रही है।सपा भी यादव मुस्लिम के भरोसे ही बैठी एक वो पार्टी है जिसे गंगा तो नहानी है लेकिन दान में कुछ भी नहीं देना आता है. इधर बीजेपी के लड़ाके इस सोच में डूबे है की आरक्षण में एटा नगर पालिका सीट आरक्षित हों गईं तो सिर्फ Sc वर्ग का ही व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है तो वो कौन होगा…. फिर मैं क्यों भागदौड़ करता रहूँ।
आरक्षण और सीट….!!
आरक्षण की बात करें तो यह तय है की एटा नगर पालिका सीट आरक्षित SC सीट नहीं रहेंगी।दूसरा यह भी पक्ष है की OBC रह सकती है तो यह भी मापदंड ख़त्म ही है,अब सिर्फ यह सीट सामान्य सीट हों सकती है! इन सभी मुद्दों की अहम वज़ह भी है कि एटा जनपद का किसी भी क्षेत्र में परिसीमन नहीं हुआ है, एटा नगर पालिका का भी जातीय अंतर में भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। रोटेशन की बात करें तो एटा के चुनाव चक्र में भी सामान्य सीट होना ही लिखा है।
किस पर कितना दांव….!
बीजेपी के बड़े चेहरे
1-शालिनी गुप्ता की उम्मीद जाग सकती है..
2- कंचन अङ्गगा की बेदाग राजनैतिक छवि..
3-प्रमोद गुप्ता व राकेश गुप्ता राजनैतिक सरक्षण…..
4- पंकज गुप्ता दमदार व्यक्तित्व..
एटा की जनता का दांव किसी पर भी हों लेकिन यह सभी नाम शहर की जुबां पर है। शत-प्रतिशत हवा किसी की नहीं बह रही है। यह कहना भी बहुत मुश्किल है कि कौन किधर बैठेगा!!
चुनाव के दाँव इस बार कीचड़ से भरे होंगे हर किसी पार्टी के प्रत्याशी नें अपनी कमर में शिलालेख बांध रखी है। पूर्व अध्यक्ष राकेश गाँधी व वर्तमान अध्यक्ष मीरा गाँधी को दोषारोपण का सामना करना ही होगा,लेकिन बीजेपी को पालिका चुनाव में महगाई से जुड़े मुद्दों का भी सामना करना पड़ सकता है। वर्तमान स्थिति को देखें तो बीजेपी के अंदरूनी टकराव से कोई भी प्रत्याशी नहीं बचता दिखाई दें रहा है और अगर ऐसा ही हुआ तो बेहद जटिल स्थितिओं से प्रत्याशी को जूझना होगा।सपा प्रत्याशी को भी टकराव झेलना होगा क्यूंकि मुस्लिम वोटर यादव प्रत्याशी के साथ रहने के बाद भी बूथ तक साथ रहेगा इसकी सम्भावना बेहद मुश्किल है। बड़े कारणों में पिछले चुनाव में सपा प्रत्याशी शराफत काले खा के हारने के कारण होंगे। वही मुस्लिम प्रत्याशी कार्ड भी सपा नें खेला तब यह कहना और जरुरी हो जायेगा की यादव वोटर निश्चित ही गाँधी परिवार की तरफ जायेगा ही।अब यह तय है की सपा को काँटों की डगर से चलना ही है।
बीजेपी के अंदर भी करंट दौड़ रहा है
यह लेख व्यक्तिगत अनुभव पर लिखा गया है जिसे आप जानकारी के रूप में प्रयोग कर सकतें है व मान सकतें है। बिश्लेषण में बड़ा उलट फेर होना सम्भव प्रतीत नहीं होता है लेकिन राजनीति में सब कुछ सम्भव होता है।
छोटा चुनाव और बड़े ख़्वावो के साथ बीजेपी की टिकट हर कोई लेकर लड़ना चाहता है लेकिन अंदर ही अंदर जो बीजेपी में जहर पनप रहा है वो निश्चित रूप से वोट के दिन सामरिक रूप से प्रभाव डालता है। जो हार का कारण बनता है। राजा सभी को बनना है परन्तु राजा किसी को बनता नहीं देखने की दौड़ में शामिल हों चुके है बीजेपी प्रत्याशी!!!!