कुशीनगर तमकुहीराज /भाई की खुशहाली, लंबी उम्र व सुख-समृद्धि की प्रबलता का प्रतीक रुद्रव्रत पीड़िया बुधवार को सिंदुरिया बुजुर्ग ,धार मठिया, लोहलनगड़ी , मोगलपुरा ,जवार ,देवरिया वृत ,रामकोला, करमैनी , आदि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं व बालिकाएं हर्षोल्लास

के साथ इस अवसर पर रातभर जाग कर पीड़िया का पारंपरिक गीत गाईं। व्रत के दिन व्रती छोटी बड़ी दोनों कहानियां सुनीं। साथ ही नए चावल व गुड़ का रसियाव बनाईं। दिन भर उपवास रहने के बाद शाम को सोरहिया के साथ रसियाव ग्रहण कीं। व्रती का जितना भाई रहता है उस संख्या के हिसाब से प्रति भाई 16 धान से चावल निकालकर सोरहिया निगलने की परंपरा है। व्रत के बाद गोवर्धन पूजा के दिन से निर्धारित तिथि पर लगाए गए गोबर की पीड़िया को बुधवार की सुबह गाजे बाजे के साथ गांव के पोखरों में पारंपरिक गीतों के साथ बड़े ही उत्साह से विसर्जित कीं। साथ ही चिउड़ा व मिठाई एक दूसरे से आदान-प्रदान करने के बाद पारण कर व्रत तोड़ीं। उसके बाद सारी महिलाओं और बालिकाओ ने मिलकर डीजे पर खूब झूमते हुए दिखाई दी । बूढ़ी औरतो ने भी आनन्द ली । इसकी शुरूआत गोवर्धन पूजा के दिन से हो जाती है। गोवर्धन पूजा के गोबर से घर की दीवारों पर छोटे-छोटे आकार में लोकगीतों के माध्यम से पीड़िया लगायी जाती है। यह क्रम निर्धारित तिथि पर पीड़िया व्रत के दिन तक चलता है। वहीं लड़कियां घर की बुजुर्ग महिलाओं से अन्नकूट से कार्तिक चतुर्दशी तक छोटी कहानी व कार्तिक पूर्णिमा से अगहन अमावस्या तक सुबह स्नान कर बड़ी कहानी सुनती हैं। व्रत के दिन छोटी बड़ी दोनों कहानियां सुनती हैं।
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