
कोलकाता के एक होनहार तीन भाषाओं मे निकलने वाले पत्र के सम्पादक की कलम से हिंदी पत्रकारिता दिवस पर
अकेली त्रकारिता क्या करें यहां तो पूरे कुएं भांग पड़ी हैं
हिंदी पट्टी की पत्रकारिता को दो दिन बाद 200साल हो जाएंगे । आज 30 जून को सुबह आगरा में आगरा के दैनिक जागरण संस्करण को देखा । पहले पेज पर भारत सरकार ने एक फुल पेज का विज्ञापन दिया है और इससे पता चलता है कि आज सिक्किम का जन्म दिवस है। लेकिन पूरे अखबार में सिक्किम के जन्मदिवस पर कोई लेख नहीं दिखा। दैनिक जागरण के इस आगरा संस्करण में इस विज्ञापन से यह अंदाज होता है कि अखबार को सहायता करने की सरकारी नीति यही है पूरे देश के लोगों को यह पता चले की सरकार बड़े विज्ञापन देखकर सिक्किम के याद कर रही है और भले ही उस अखबार के सामाजिक सरोकार कुछ भी हो हों। वैसे भी समय ऐसा है कि खबर के इस किस युग में दैनिक जागरण या भास्कर जैसे बड़े-बड़े स्तर अखबारों ने अपने पत्रकारों को विज्ञान वसूली करने के लिए छोड़ दिया है । वह चाहे किसी तरीके से हो । सरकार की विज्ञापन देने की विधि यही है कि कोई सामाजिक खबर जाए या ना जाए , पंजाब का विज्ञापन बंगाल में सिक्किम का आगरा में दें। मैने टटोलना शुरू किया कि इस अखबार में खबर नाम पर क्या है और कितनी है।दूसरे पेज पर प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी का एक पूरा पेज का । तीसरे पेज पर एक चौथाई विज्ञापन और उसके बाद खबरें हैं । इस पूरे अखबार में सिक्किम पर कोई खबर या लेख नहीं है। स्थानीय संपादक को पाठकों के लिए सिक्किम की खबर से कोई मतलब नहीं है भले ही उसे अखबार का एक पेज विज्ञापन चलाया हो। कल पता चला एक अखबार के स्थानीय संपादक को पुलिस पकड़ कर ले गयी। बाद में पता करने से पता चला यहां जो बड़े संपादक हैं उनकी और जो संपादक हैं उनकी कमीशन के अलावा कोई दूसरी पात्रता नहीं है । एक लोकतांत्रिक सरकार के पदों पर बैठे हुए लोग भी योग्य भी है लेकिन जिन लोगों को विज्ञापन देने हैं उनका सामाजिक सरोकार नहीं है। इन अक्षरों के प्रति अंतिम फैसला सिर्फ जनता ले सकती है । खबर पुरानी होने में समय नहीं लगता है। अब जो बचता है वह सरोकार है तथा जन प्रतिक्रिया । खबर पुरानी होने के बाद यह भी कहां तक देखेंगे, मालूम नहीं है लेकिन नई दुनिया जैसे अखबारों को या छोटे अखबारों के योग्य पत्रकारों पर छापा मारने काम बड़े अखबार लगातार करते रहते हैं । अब स्थानीय संपादक का कोई चेहरा नहीं होता । पत्रकारिता के लिए यह शहर सूख रहा है। भले ही आगरा के वरिष्ठ पत्रकार शंकर देव तिवारी जैसे पत्रकार दिन रात कोशिश करते रहें, सम्मेलन करते रहें , ग्रामीण पत्रकारिता को पोसते रहें, उनकी कोशिशें हैं और उनकी कोशिशें के साथ हम भी हैं । लेकिन यह सब कोशिश है बाकी का हाथ यहां के स्थानीय विधायकों, सांसदों और इनफ्लुएंसर लोगों का है । जो कहीं इस दौड़ में नहीं दिखते कि उन्हें समाज सेवा करनी है । उड़ती उड़ती खबर एक भूतपूर्व विधायक के बेटे ने साढे तीन करोड़ की मोटरसाइकिल खरीदी है और यही बात वे हर आते जाते को बता रहे हैं। ये तो जन प्रतिनिधियों के सरोकार हैं।
इस विधायक को सोच को विकास का पैमाना क्यों मानें
आमीन
जितेंद्र जीतांशु