भारत की अंतिम सती रुपकंवर~

उस 18 साल की लड़की को दुल्हन की तरह सजाया गया,आगे आगे पति माल सिंह की अर्थी थी और पीछे पीछे रुपकंवर पुजा की थाली और नारियल लेकर चल रही थी, जो पति की मौत के सदमे में पागल जैसी हो गई थी, परम्परा और संस्कृति के नाम पर एक लड़की को उस वक्त जो भी कहा जाता है उसे वही सही लगता है,उसने भागने का भी प्रयास किया तब भी समाज और इज्जत का हवाला देकर पकड़ लाया गया,
कहते हैं ये बात पुरे गांव में आग की तरह फ़ैल गई कि रुपकंवर अपनी मर्ज़ी से सती होने जा रही है, इसलिए हजारों लोगों की भीड़ तमाशा देखने के लिए इक्कठी हो गई,
रुपकंवर पहले पति के मृत शरीर की परिक्रमा लगाती है फिर पति का सिर गोद में लेकर चिता पर बैठ जाती है और आशीर्वाद मुद्रा में हाथ उठा लेती है, चिता को अग्नि सुमेर सिंह (ससुर) का छोटा बेटा पुष्पेन्द्र सिंह (देवर) देता है,
कहते हैं वो अठारह साल की लड़की रुप जिसने वैवाहिक जीवन के मात्र बीस दिन ही देखे थे अपने आपको बचाने के लिए चिता से रेंगकर अर्धजली अवस्था में एक बार नीचे भी गिर जाती है जिसे घसीटकर वापस चिता पर पटक दिया जाता है, और पुलिस के आने के डर से जल्दी जलाने का प्रयास किया गया,
4 सितंबर को ही पुलिस तक ये केस पहुंच गया था परंतु कुछ हुआ नहीं,
रुप के पिता बालसिंह राठौड़ को उसके सती होने की सुचना अगले दिन 5 सितंबर के समाचार पत्र से मिलती है जिससे वो आक्रोशित हो पुलिस कम्पलेन भी करते हैं परंतु समझाइश बुझाइश से और गांव में रुपकंवर का चबुतरा बना उसे सती माता का दर्जा दिया जाने से वे भी इस घटना का महिमा मंडन करने लग जाते हैं,
इस महिमा मंडन की इंतेहा तो ये थी कि रुप की तेरहवीं पर 16 सितंबर को चुनरी महोत्सव (ओढावनी) की रस्म की गई,जिसमें दो लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए,और एक बेटी के मायके वाले उसी के हत्यारों के साथ मिलकर दिखावे और झूठी इज्जत के लिए गांव भर में शोक का उत्सव मनाते हैं।
महिला संगठनों ने उस समय के मुख्यमंत्री हरदेव जोशी से मिलकर इस महोत्सव को रोकने के प्रयास किए परन्तु कोई कार्रवाई नहीं होने पर मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा और हाईकोर्ट के नोटिस पर चुनरी महोत्सव पर रोक लगाई गई, पुलिस घटनास्थल पर पहुंचती उससे पहले ही रूप के मायके और ससुराल वालों ने मिलकर यह कार्यक्रम तय समय से दो घंटे पहले ही सम्पन्न करवा दिया,महिमा मंडन बढ़ता देख ससुर सुमेर सिंह,देवर पुष्पेन्द्र सिंह और परिवार के आठ सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया, राजस्थान सरकार ने “सती अधिनियम 1987” बनाया दिया जिसमें सतीप्रथा के महिमा मंडन पर रोक लगा दी गई,
परंतु दिवराला गांव में आज भी रुपकंवर का चबुतरा बना है जिस पर हर साल मेला लगता है बहुत से भजन गाये जाते हैं और दबे शब्दों में इस कुप्रथा का महिमा मंडन किया जाता है, 37 साल बाद इस केस का फैसला आता है और आरोपियों को बरी कर दिया जाता है,