
इस दिन मैं केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के सशक्त एवं प्रथम मीडिया संस्थान, आकाशवाणी के मथुरा-वृन्दावन केन्द्र से सेवा निवृत्त हुआ था।
कल सन् 2025 की तिथि है 30 अप्रैल।
कितनी जल्दी समय-चक्र घूम गया। सेवा निवृत्ति के 19 वर्ष पल में पूरे हो गए। मुझे याद आती है सन् 2006 की 30/ तारीख, जब आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन के मेरे मित्रगण मुझे मेरे मथुरा आवास पर पहुंचाने आये थे। श्री राम गोपाल जी, ( कार्यक्रम प्रमुख) एवं अधिकारियों क्रमशः सर्वश्री
मदन लाल जी मीना, डॉ.देवेन्द्र सारस्वत, नीरज जैन, आकस्मिक उद्घोषक गण : राजेश कुमार शर्मा,देवराज कृष्ण दीक्षित और कार चालक चौधरी हर पाल सिंह सहित हमारे आवास पर पधारे।आने को तो आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन के सभी प्रसारण कर्मी चाहते थे पर, जितने लोग कार में आ सकते थे, हमारे घर पधारे हुए थे।
साथ रहे हमारे बडे़ भाई पं. कृष्ण मुरारी ला सारस्वत ( प्राचार्य, सुभाष इण्टर कालेज, मथुरा ( उत्तर प्रदेश ) , इस अवसर पर
सभी के आग्रह पर मेरे द्वारा अपनी सहधर्मिणी श्रीमती कुसुम शर्मा के गले में फूलों की माला डाल कर उन्हें सम्मानित किया गया। मेरे गले में भी मेरी धर्म पत्नी द्वारा भी पुष्पहार पहना कर
मुझे सम्मान प्रदान किया गया। मैंने न घर की चिंता कीऔर नाही बच्चों की फिक्र। मेरी अनपढ़ किन्तु संस्कारवान एवं सुग्रहणी ने अपने सुप्रबंधन से सब कुछ संभालते हुए पग- पग नई ऊर्जा प्रदान करते हुए मेरी कार्य दक्षता को सदैव सशक्त बनाये रखा ।
मुझे प्रसारण ड्यूटी के मध्य आकाशवाणी द्वारा कार दी जाती थी। पर मैंने उस कार का प्रयोग गाहेबगाहे किया। जब मैं किराये के मकान में कृष्णा नगर, मथुरा में रहता था तब भी आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन के स्टूडियोज़ तक अपनी साइकिल से ही जाता था । प्रभु कृपा से जब मैं अपने मकान विजय नगर, महोली रोड, मथुरा पहुँच गया तब भी मैं
( आकाशवाणी द्वारा कार देने पर भी उसका प्रयोग न कर)
अपनी साइकिल से ही स्टूडियो पहुँचता था।
ये सब देख कर मेरे बहुत से प्रसारणकर्मीगण! व्यंग्यात्मक शैली में कहा करते थे _
“हमारे ‘शरद जी को तो राष्ट्रपति पुरस्कार लेना है।”
पर मुझे इसके लिए प्रेरित किया मेरे वरिष्ठ उद्घोषक साथी
डॉ. सत्यदेव ‘आजा़द’ जी ने जो साइकिल से ही आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन के स्टूडियो आते-जाते थ। उन्होंने एक बार मुझसे कहा था ‘शरद’ तुम अपने आवास से मात्र बीस मिनट में (साइकिल द्वारा)आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन के स्टूडियो पहुँच सकते हो तो कार की आवश्यकता क्या है?? इससे तुम्हारा हल्का -फुल्का व्यायाम भी हो जाएगा और तुम स्वस्थ बने रहोगे। इस से तुम्हारे घुटने मजबूत बनेंगे साथ ही तुम्हारी जेब भी मजबूत बनी रहेगी। परम पूज्य बडे़ भाई डॉ.सत्यदेव ‘आज़ाद’ जी की बात बहुत अच्छी लगी। बस फिर क्या था मैंने अपने रिटायरमेंट तक साइकिल चलाई। जिसके कारण मेरे घुटने बिल्कुल सही बने रहे। साथ ही साइकिल चलाने से मेरी आर्थिक स्थिति भी अच्छी बनी रही। साथ ही प्रभु कृपा से दो कमरे का एक घर भी बन गया जिसके कारण किराये की बचत होती गई और शनै-शनै मकान में बढोत्तरी होती रही और मकान बड़ा रूप ले गया। बड़ती उम्र के कारण अब कुछ वर्षों से साइकिल नहीं चला पा रहा हूँ फलस्वरूप मेरे बाएं पैर के घुटने में दर्द शुरू हो गया है। उठने-बैठने में कष्ट का अनुभव कर रहा हूँ। दैहिक दैविक और भौतिक ताप सताने लगे हैं। गठरी के चोरों ने अपनी अपनी कमर कसने की तैयारी कर ली है। जो परिजन संग निभाने के लिए हमारे साथ आये हैं (प्रारब्ध और पूर्व जन्म के अनुसार) उन्हें हमसे अपना-अपना हिसाब भी तो चुकता करना है।जीवन की इस महान नाट्य शाला में अपने ही कुछ परिजन! मुॅहजोरी करने,कुछ सीनाजोरी करने और कुछ निर्मल मन ,छल-कपट रहित सेवा भावी जन,बन कर आये हैं जो अपनी अपनी भूमिका निभाते हुए संसार रूपी इस महान नाट्य शाला में अपने अपने संवाद बोल रहे हैं। हमसे उन्हें जो लेना है,उसे वो लेकर रहेंगे और हमें उन्हें हर हाल में देना होगा।।पर जो भी ये तो सत्य है कि हानि,लाभ,जीवन,मरण ,यश-अपयश विधि हाथ। सब कुछ ईश्वर के हाथ है जो सदा हमारे साथ है।पर ये भी सच है कि हर वरिष्ठ जन को, ( जो वृद्धावस्था में है) अपना मान-सम्मान बचाने के लिए अपने अंतर्मन की बहुत सी बातें! समाज के सामने छुपानी पड़ती हैं। अपनी सहधर्मिणी के और अपने अस्वस्थ होने के कारण के कारण साहित्यिक कार्यक्रमों एवं अति घनिष्ठ जनों के आमंत्रणों में आना-जाना बाधित हो गया है। फिर भी ईश्वर पर बहुत ही भरोसा है। गीता जी की यही बात सोचता रहता हूँ _
“जो हुआ वो अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वो अच्छा हो रहा है और जो होगा वो अच्छा ही होगा “। श्रीमदभगवद्गगीता !भगवान् श्रीविष्णु जी के साक्षात स्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण के श्रीमुख से से निस्र्ित वो वाणी है जो जीवन के शाश्वत सत्य को उजागर करती है_
” जब तुम आये तो साथ क्या लाये थे?” खाली हाथ आये थे। जो भी मिला,तुम्हें यहीं मिला, जब तुम जाओगे तो साथ क्या ले जाओगे ? खाली हाथ जाना होगा।” जब खाली हाथ जाना है तो अपनी संचित की हुई हर वस्तु दोनों हाथों से उलीच कर जाना ही ठीक एवं श्रेयस्कर रहेगा। एक कवि ने कहा भी तो है “दोनों हाथ उलीचियै,यही सयानौं काम।।” इससे हमें लगता है कि कंजूस (कृपण) मत बनिए आप तो इस धरा धाम पर अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए आये हो। जी भर कर लुटाओ ताकि अपने स्वजन वृंद! तुम्हें गालियाँ न दें। ये जो कुछ तुम्हें प्राप्त हुआ है,यहाँ आकर ही तो मिला है।
माया के साथ मोह और आसक्ति से भी दूर हो जाओ। ये रिश्ते नाते केवल और केवल शरीर के साथ ही हैं। न कोई बेटा- बहू है,न कोई भैया भाभी,न कोई माता पिता,न कोई पौत्र-पौत्री ना कोई साला-बहनोई और ना कोई पति-पत्नी ! सभी रिश्ते नाते केवल और केवल स्वार्थ के हैं।
सभी रिश्ते नाते कुछ समय के लिए ही हुआ करते हैं। इस लिए
यही सोचकर चलना है_
“हम ना थे, ना हैं और ना रहेंगे।”
किसी ने सच ही कहा है_
“आया है सो जाएगा, राजा, रंक, फकीर”
हम वयोवृद्ध जन! निश्चित रूप से नदी के किनारे के वृक्ष माने जाते हैं। कब बाढ़ आ जाये? कब हम नदी में समाहित हो जायें??? हम इस समय पूर्ण स्वस्थ हैं ,पर लग रहा 👉👉 मृत्यु रूपी बाढ़ तो आनी ही आनी है । अतः हम उसकी अपलक प्रतीक्षा में हैं कि जीवन की अंतिम मंज़िल कब आये और हमें “प्रभु श्रीनाथजी का सानिध्य प्राप्त होते हुए चिर शांति की प्राप्ति हो सके।” इस समय हमें स्मरण हो पा रहा है है ये गीत_
” हम इंतज़ार करेंगे तेरा कयामत तक,”
“ख़ुदा करे कि कयामत हो और तू आये “.
मैं अपनी लक्ष्मी स्वरूपा सहधर्मिणी श्रीमती कुसुम शर्मा के प्रति इतना ही कह सकता हूँ कि “इन्हीं कल्याणी , सुगृहिणी के सेवा भाव एवं जागरूकता के कारण आकाशवाणी जैसे समय के पाबंद मीडिया संस्थान में एक सच्चे प्रसारणकर्मी का दायित्व निर्वहन कर सका।”
मैं अपने सभी प्रसारण कर्मी सखाओं कार्यक्रम के लोग हो, ( चाहे वे अभियंता गण हों अथवा लेखा विभाग के जन हों, सभी ने समय-समय पर मुझे सहयोग प्रदान किया। साथ ही मैं अपने रेडियो के सुधी श्रोताओं का हृदय से कृतज्ञ हूं , जिन्होंने मेरे कार्यक्रमों को सुनकर मेरी सराहना/ अपने पत्रों द्वारा की और मेरा मनोबल बढ़ा कर मुझे सदा कृतार्थ किया।
आकाशवाणी के शीर्ष अधिकारी गण द्वारा मुझे सदा मान-सम्मान और अपार स्नेह प्रदान किया गया। जिसके कारण मेरी कार्य दक्षता सदा अपरमित बनी रही। यही हाल रहा तब, जब मैं (वर्ष 1988 से
वर्ष 1990 के मध्य ) आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन से स्थानांतरित होकर /आकाशवाणी के आगरा केन्द्र को आरम्भ करने के लिए वहाँ / प्रथम उद्घोषक के रूप गया था ।
कुछ अधिकारी गण आज भी मुझे याद हैं_
आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन के प्रथम सहायक केन्द्र निदेशक श्री आर. सी.सिन्धी /केन्द्र निदेशक (स्व) श्री बी.आर. अग्रवाल,
निदेशक ( स्व.) श्री आर. डी.राम, ( जो उप महा निदेशक बने)
केन्द्र निदेशक श्री एम. एल. पंडित ( अब स्व.), श्री सत्येन्द्र कुमार बोस ( स्व) , डॉ.उपेन्द्र रैना, ( स्व.)श्री शंकर लाल ( सहा. निदेशक), ।
केन्द्र अभियंता गण – इंजीनियर्स सर्व श्री राम कुमार जी गुप्ता,
आदित्य चतुर्वेदी ( जो आकाशवाणी / दूरदर्शन के शीर्ष अधिकारी बन कर सेवा निवृत्त हुए। स्वर्गीय श्री बी.वी.गोयल,. गोयल,श्री बी.एल. गुलाठी, श्री राकेश अग्रवाल, श्री राकेश श्रीवास्तव, श्री पी.सी. जैन, श्री सुशील चंद्रा, श्री राकेश शर्मा, श्री कीमत कुमार, श्री संतोष कुमार, डर्बिन कुमार गुप्ता, श्री ब्रजेन्द्र श्रीवास्तव, श्री जगदीश जी, (स्व. ) श्री प्रेम चंद राजपूत आदि।
कुछ साथी जिन्हें भूला नहीं जा सकता है_
स्व लाल जी राम ( पखावज वादक) जनाब बाबू खां, ( तानपूरा वादक) हरी बाबू कौशिक ( सारंगी वादक) स्व. श्रीमती विमल अरोरा( वरिष्ठ उद्घोषिका )स्व.श्री राधा बिहारी गोस्वामी, ( वरिष्ठ उद्घोषक) , डॉ, सत्यदेव ‘आज़ाद’ ( वरिष्ठ उद्घोषक) , डॉ. अचला नागर, स्व.श्री त्रिभुवन नाथ शर्मा ( पहले नाल वादक, फिर प्रोडक्शन असिस्टेंट और फिर कार्यक्रम अधिकारी), व. डॉ, रामनरेश पाण्डेय ,श्री आर. के. त्रिपाठी ( कार्यक्रम अधिकारी) स्व.श्री यतीन्द्र चतुर्वेदी,( सहायक केन्द्र निदेशक), स्व श्री तोता राम शर्मा ( पखावज वादक) शान्ता प्रसाद ( बांसुरी वादक) स्व श्री अब्दुल सलाम खां ( तबला वादक) जनाब सिराजद्दीन ( सितार वादक) , श्री सर्वेश कुमार यादव “बाबा” और डॉ. देवेन्द्र सारस्वत , डॉ.लिली खन्ना ,सत्यव्रत सिंह,ओ पी सिंह श्रीकृष्ण (अब आकाशवाणी गोरखपुर) विजय नौलखा आदि सभी स्वजनों का स्मरण करना मेरे लिए गौरव की बात है।
**** आकाशवाणी आगरा में साथ रहे श्री रेहान फज़ल ( जो बीबीसी ,लंदन के हिंदी विभाग में विशिष्ट प्रसारक के रूप में है) और डॉ, ऋतु राजपूत ( सहायक केन्द्र निदेशक) आदि।
जीवन में कभी भूले नहीं जा सकते हैं_
श्री द्वारिका नाथ शर्मा ( गुरु जी) पंडित परमानंद शर्मा,
ठाकुर रनवीर सिंह और मीना जी , वी.पी.सिंह उपरोक्त सभी स्वजन लेखा विभाग के हैं।
आकाशवाणी आगरा के निदेशक स्व.सन्नीलाल सोनकर,
स्व. श्री हर चरन लाल वर्मा, कार्यक्रम अधिकारी गण स्व. महेन्द्र जैमिनी, एस. एस. अज्ञाल, स्. श्री गोपाल सक्सेना, श्री राजेन्द्र सक्सेना, उद्घोषिका सुजाता रथ ( जो वाॅयस आॕफ जर्मनी में रहीं ) श्री अजय प्रकाश ( वरिष्ठ उद्घोषक) ———–
आकाशवाणी के म्यूजिक कम्पोजर स्व.सुरेश गुप्ता और श्री राजेश शर्मा भी मुझे याद आ रहे हैं।
हमारे प्रमुख श्रोताओं में हैं अहिंसा रेडियो श्रोता संघ, रायपुर ( छत्तीसगढ़) के अध्यक्ष श्री झावेन्द्र कुमार ध्रुव जी/ ओल्ड रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष श्री मोहन लाल जी, यहीं के हैं सर्व श्री प्रदीप जैन, छेदू लाल यादव, मुरली क्षत्रिय जी, रवि चंद्राकर जी, हाथरस के स्व. बाबूलाल-नत्थीलाल, पप्पू और गुलशन, यहीं के हैं श्री योगेन्द्र कौशिक, कैलाश चंद जैसवाल और पदम ‘अलबेला ‘, भुस के नगला के श्री बनबारी लाल भारद्वाज, अलीगढ़ के श्री घनश्याम दास वर्मा, बिटिया और लल्ला,
बंथली ( सौराष्ट्र) से-कान्तिलाल शाह, हीरा लाल मकवाना और साथी। मथुरा के स्व. दिनेश अग्रवाल, /-सिह़ोरा के महेन्द्र सिंह
आगरा के राजू लवानियां / गरियाबंद ( रायपुर) के लालचंद और यशवंत ,छाता ( मथुरा) से खगुल कृष्ण भारद्वाज,मथुरा से – नन्हें अकेला’ संजय और साथी। हाथरस से – आनंद अकेला और दिनेश सरदाना/ किनावा ( एटा) से- विशेष कुमार शर्मा और गंभीरता / महोबा से – मेवालाल ‘परदेसी’ आदि।
अब मुझे भूलने की आदत हो गई है अतः मैं अन्य नाम नहीं लिख पा रहा हूँ। जो जन रह गए हैं वे श्रोता मुझे क्षमा दान दें।
डॉ.श्रीकृष्ण ‘शरद’
वरिष्ठ उद्घोषक (से.नि)
आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन/ आगरा