एटा होल्ड है…. लेकिन क्यों!

एटा

ऐसा पहली बार हुआ है कि संघ और बीजेपी किसी मसले पर फांसीवाद मेँ फसी हो। बीजेपी के गठन से आज तक संघ के निर्णय बीजेपी के लिए फलदायक रहें है अमूमन देखा गया है कि अगर किसी मामले पर बीजेपी ने अपनी जिद की है तो उसके परिणाम बीजेपी को भुगतने पड़े है।

जिलाध्यक्ष जैसे मसलो पर अगर बीजेपी के किसी नेता द्वारा जिद की गई और संघ के निर्णय पर अपनी जिद थोपी है, तब भी यह देखने को मिला है कि संघ ने ऐसे नेता को, वो चाहे देश या राज्य का बड़ा नेता ही क्यों न हो हो घर भेज दिया है और राजनीति पर भी विराम लगा दिया है.

उत्तर प्रदेश के संघठन चुनावों के आधार पर जिलाध्यक्ष के चुनने का इंतज़ार काफ़ी समय से हो रहा था। लेकिन दिल्ली राज्य व उत्तर प्रदेश के कुम्भ आयोजन की वज़ह से जिलाध्यक्ष व प्रदेश अध्यक्ष के नाम का ऐलान रोक दिया गया था.

प्रदेश के लगभग सभी जिलों के बीजेपी जिलाध्यक्ष के नामों की घोषणा के बाद भी फिरोजाबाद, एटा सहित पांच जिलों के जिलाध्यक्ष के नाम रोक दिए गए है। प्रदेश के नेताओं का मानना है कि जिले स्तर पर झगड़ा या विरोध होने की वजह से यह नाम रोके गए है।

हमको ऐसा लगता है कि जो प्रदेश मेँ इस तरह की अफवाह को हवा दे रहें है उन्हें संघ की विचारधारा व निर्णय नहीं पता है. या यू कहे कि वो राजनीति मेँ संघ को पहचान नहीं सके है।

संघ हो या बीजेपी ये दोनों ही किसी विरोध या संघर्ष से नहीं डरते है। ज़ब राजस्थान. मध्य प्रदेश, दिल्ली मेँ मुख्यमंत्री की सीट पर नए चेहरों को लाकर पुराने नेताओं को धरती पर बैठा दे,वही संघ है। क्योंकि संघ खुद मेँ ही है वो विरोध और फेवर नहीं जानता है….!!और यही कारण है कि संघ विचार है न कि कोई इंसानों का जमावड़ा…!!जिसे डरा दिया जायेगा…. सत्ता और हार दूर ही रहती है…

एटा फिरोजाबाद पर गणित सही बैठना.. 👇

एटा के जिलाध्यक्ष के नाम पर अभी सहमति बनी है या नहीं बनी है।यह एक पहेली हो सकती है लेकिन सुलझी नहीं है यह कहना बेबकूफी है!!

एटा के जिलाध्यक्ष के लिए आपसी मित्रो मेँ ही सीट के लिए भागमभाग मच गई थी, लगभग 46 आवेदन के साथ इस सीट के लिए योग्य उम्मीदवार की तलाश होनी थी, लेकिन संघ जनपद एटा के लिए कद्दावर जिलाध्यक्ष को तलाशना चाहती है। बीजेपी का जिलाध्यक्ष कद्दावर होने के कई कारण हो सकते है लेकिन नेताओं के आपसी संकेत अच्छे नहीं है।फिरोजाबाद मेँ भी गणित उलट गया है क्योंकि फिरोजाबाद मेँ लोधी समुदाय से जिलाध्यक्ष लाना है लेकिन इस बार फिरोजाबाद से लोधी जिलाध्यक्ष न मिले यह भी हो सकता है। किंचित मात्र भी यह आभास हुआ कि लोधी जिलाध्यक्ष फिरोजाबाद पर नहीं बनता है तब भी फिरोजाबाद पर बीजेपी को कोई असर पड़ता नहीं दिखाई पड़ रहा है।फिरोजाबाद मेँ संघ ने लोधी जिलाध्यक्ष दिया तो एटा की क़ुरबानी की क़ीमत पर फिरोजाबाद मेँ जिलाध्यक्ष लोधी मिल सकता है। अगर सवर्ण जिलाध्यक्ष एटा मेँ आता है तब फिरोजाबाद की सीट पर जिलाध्यक्ष आपसी सहमति से ही सम्भव होगा।

अगर एटा जनपद को ब्राह्मण जिलाध्यक्ष नहीं मिला तो यह बेहद कठोर संकेत होंगे क्योंकि कासगंज मेँ ब्राह्मण जिलाध्यक्ष बना कर एटा की वरीयता खत्म सी कर दी है लेकिन एटा के भौगोलिक व राजनैतिक मानचित्र पर कासगंज जिलाध्यक्ष का कोई असर नहीं होना चाहिए क्योंकि कासगंज मेँ पूर्व मेँ ठाकुर समाज से जिलाध्यक्ष रहें है, एटा पर वैश्य समाज से जिलाध्यक्ष रहें है।

2017 की समीक्षा और समीकरण से अलग ही तरीके को संघ ने अपनाया था। इस बार संघ नए समीकरण से एटा को अलग देख रहा है। दो विधानसभा के एटा जनपद को किस जाति का जिलाध्यक्ष मिलेगा यह मायने रखेगा क्योंकि एटा व मारहरा विधानसभा पर इसका असर देखने को मिलेगा क्योंकि दोनों विधानसभा पर ब्राह्मण एक अच्छे अनुपात मेँ रहता है जो समीकरण को ऊपर नीचे कर सकता है।

हम एटा जनपद मेँ अलीगंज और जलेसर को देखते है तो अलीगंज विधानसभा को OBC समाज से जिलाध्यक्ष मिल चूका है और जलेसर विधानसभा को वैश्य व जाट समाज से जिलाध्यक्ष मिल गया है। क्योंकि अगर लोकसभा के अनुसार देखते है तो यह पूर्ति हो चुकी है लेकिन जनपद एटा के अनुसार यह पूर्ति होती नहीं दिखाई दे रही है।

मान लीजिये अगर किसी शाक्य को जनपद एटा का जिलाध्यक्ष संघ बनाता है तब यह बेहद जटिल होगा और जनपद की दोनों विधानसभा बीजेपी निश्चित रूप से हारेगी ही, इसका मात्र एक कारण है कि ज़ब शाक्य समाज ने एक मुश्त वोटिंग करके सपा को सांसद दिया है ऐसे भी बीजेपी शाक्य पर दाँव खेलती है तो खेल रोमांचक हो जायेगा।क्योंकि बीजेपी के कई बड़े नेताओं की गले की फांस बन जाएगी। क्योंकि बीजेपी के नेता शाक्य सांसद से लड़ेंगे या फिर शाक्य समाज के जिलाध्यक्ष से….. इधर बीजेपी यह भी साबित करेगी कि शाक्य वोट बैंक से डर गया है,जो पुरे प्रदेश मेँ उसे मिला ही नहीं। साथ ही जहाँ भी संघ के कार्यकर्ताओ ने प्रचार किया था उन सभी स्थानों पर नमो बुद्धाय का नारा लगाया गया था।इसलिए एटा का गणित बिगड़ने की कगार पर खड़ा है।

शाक्य को जिलाध्यक्ष बना कर संघ ने एक नया प्रयोग किया तो फिर लोधी नाराजगी दर्ज कर सकता है क्योंकि लोधी वोटर के सांसद को हरा कर शाक्य को फिर भी मलाई दी जाती है तो यह देख कर अन्य जातियाँ भी विद्रोह करके हक़ लेने कि परंपरा मेँ आ सकती है क्योंकि प्रयोग खतरनाक साबित होंगे ही।

ब्राह्मण के जिलाध्यक्ष न बनने से बीजेपी के परंपरागत वोट को इस बार एटा पर निराश हाथ लगी है साथ ही ब्राह्मण वोटर को उम्मीद है कि शायद अभी भी संघ अपने कार्यकर्त्ता के साथ अन्याय नहीं करेगा।

संघ की आवाज पर बीजेपी द्वारा कासगंज पर ताजपोशी हो चुकी है. लेकिन क्या एटा पर ब्राह्मण नहीं हो सकता है।निश्चित रूप से एटा पर ब्राह्मण जिलाध्यक्ष होना दो विधानसभा के लिए फायदे का सौदा होगा,क्योंकि यह हताश और उत्साह के साथ ही कई बरसो की मेहनत का इनाम भी हो सकता है।

दो विधानसभा एटा मारहरा पर अगर बीजेपी को 2027 मेँ अपने विधायक बनाने है तब समीकरण को साधना ही होगा अन्यथा कि स्थिति मेँ दोनों विधानसभा को बीजेपी भूल जाये तो ठीक ही रहेगा।

जिलाध्यक्ष संघ की झोली से निकलेगा यह सत्य है लेकिन वैश्य नहीं होगा यह भी सत्य है।

इस बार नया प्रयोग होगा…!!

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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