
दुर्गावती देवी( दुर्गा भाभी ) का जन्म अक्टूबर 1907 को ग्राम शहजादपुर वर्तमान जनपद कौशांबी उत्तर प्रदेश में पंडित बांके बिहारी भट्ट के यहां हुआ था l इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे l बाबा पंडित महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिले में थानेदार के पद पर थे और इनके दादा पंडित शिव शंकर भट्ट शहजादपुर के जमींदार थे l इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ 11 साल की उम्र में हो गया था भगवती चरण बोहरा नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ते थे और छात्र राजनीति में भाग लेते थे l भगत सिंह, सुखदेव और यशपाल चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के फैसले से झल्लाकर रामप्रसाद बिस्मिल, सचिंद्रनाथ सान्याल और लाला हरदयाल ने 1923 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया l मार्च 1926 में भगवती चरण बोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की l
1928 में जब भगत सिंह और राजगुरु अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को मारने के बाद अंग्रेजों की कड़ी चौकसी के बीच लाहौर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे तो कोई उन्हें पहचान न सके इसलिए दुर्गा भाभी की सलाह पर एक सुनियोजित रणनीति के तहत भगत सिंह उनके पति दुर्गा भाभी उनकी पत्नी और राजगुरु नौकर बनकर सफलतापूर्वक वहां से निकल सके थे इतना ही नहीं 1929 में जब भगत सिंह ने विधानसभा में बम फेंकने के बाद आत्मसमर्पण किया था तो दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और उनके साथियों की जमानत के लिए अपने सारे गहने तक बेंच दिए थे l
1930 को रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय बोहरा जी शहीद हो गए पति के शहीद होने के बावजूद भी दुर्गा भाभी साथी क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रही 9 अक्टूबर 1930 को दुर्गा भाभी ने गवर्नर हेली पर गोली चला दी थी जिसमें गवर्नर हैली तो बच गया लेकिन सैनिक अधिकारी ट्रेलर घायल हो गया मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी ने गोली मारी थी जिसके परिणाम स्वरुप अंग्रेज पुलिस इनके पीछे पड़ गई थी दुर्गा भाभी का काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्टल लाना ले जाना और साथी क्रांतिकारियों के मुकदमों की पैरवी और बम आसलहो और पैसों का इंतजाम करना था चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जी पिस्टल से खुद को गोली मारी थी उसे भी दुर्गा भाभी ने नेही लाकर उनको दी थी भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त जब केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने जाने लगे तो दुर्गा भाभी व सुशीला मोहन ने अपनी बांह काटकर अपने रक्त से दोनों लोगों को तिलक लगाकर विदा किया था क्रांतिकारियों की शहादत के बाद क्रांतिकारी दल नेतृत्व विहीन हो गया दुर्गा भाभी अकेले पड़ गई थी अंग्रेज पुलिस उन्हें लगातार परेशान कर रही थी दुर्गा भाभी दिल्ली से लाहौर चली गई अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 3 वर्ष तक नजर बंद रखा फरारी ,गिरफ्तारी और रिहाई का यह सिलसिला 1931 से 1935 तक चलता रहा अंत में लाहौर से जिला बदर किए जाने के बाद वह गाजियाबाद आ गई यहां उन्होंने यहां 1935 में 1937 तक कन्या वेदिक विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी की लखनऊ में नजीराबाद के एक निजी मकान में वर्ष 1940 में उन्होंने सिर्फ पांच बच्चों के साथ मोंटेसरी विद्यालय खोला अंतिम समय में वह वापस गाजियाबाद आ गई और गुमनाम जिंदगी जीते हुवे 15 अक्टूबर 1999 में उनकी मृत्यु हो गई l