राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हमारा सामूहिक दायित्व है– प्रो. आनंद कुमार त्यागी।
विद्यापीठ राष्ट्रीयता की निर्मिति है –प्रो. ओमप्रकाश सिंह
उन्नत राष्ट्रवाद की संकल्पना ही भारत की पहचान है- प्रो. सरोज शर्मा
वाराणसी

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ शनिवार को हुआ। डॉ. भगवान दास केन्द्रीय पुस्तकालय के सभागार में आयोजित राष्ट्र, राष्ट्रवाद और भारतीय लोकतंत्र : कल आज और कल’ विषयक इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने की। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा की संगोष्ठी का विषय नवाचारी है। मानविकी संकाय द्वारा आयोजित यह संगोष्ठी अकादमिक औपचारिकताओं से परे जाकर राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण हेतु युवाओं को जागृत करे, इसकी शुभकामना देता हूँ। उन्होंने ने कहा कि भारत में ज्ञान की कई परंपराओं का निर्माण हुआ। बाहर से लोग भारत में ज्ञान के लिए आते रहे। ज्ञान का निर्माण, नवाचार, संचय और प्रचार ही इसे जीवंत बनाता है। भारत में निर्मित ज्ञान की यह विराट परंपरा कहीं न कहीं हमारी वजह से ही बाधित भी हुई। हमने औपनिवेशिक मान्यताओं के आगे एक दौर में आत्मसमर्पण कर दिया। हमने ही पाइथागोरस के सामने बोधायन को भुला दिया। इसलिए यह आत्म मंथन का अवसर है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी ज्ञान के अन-औपनिवेशीकरण पर बल दिया गया है। यदि संतुलित तरीके से एक राष्ट्रीय संकल्प और भावना के साथ हमारे शिक्षक और विद्यार्थी काम करें तो हम निश्चित ही नए भारत के निर्माण में ऐतिहासिक योगदान कर पाएंगे।
राष्ट्र और राष्ट्रवाद की देशज दृष्टि के साथ वैश्विक समझ विकसित करें। हरिवंश उप सभापति राज्य सभा
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने अपने लिखित संदेश के जरिए कहा कि आर्टफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में इस संगोष्ठी का आयोजन महत्वपूर्ण है। काशी शुरू से ही लोकतान्त्रिक विचारों का मॉडेल रहा है। इस संस्था को आचार्य नरेंद्र देव आचार्य बीरबल डॉ। राजेन्द्र प्रसाद जीवत राम कृपलानी बाबू प्रकाशnबाबू सम्पूर्णानन्द जैसी विभूतियों ने गढ़ा है। उन्होंने झारखंड की जनजातियों के उदाहरण के जरिए बताया कि राजा वैसा होना चाहिए जो अपनी भूमि की मिट्टी की गंध पानी के स्वाद और पेड़ों को पहचानता हो। उन्होंने कहा की लोकतंत्र के सामने परिवारवाद भ्रष्टाचार और पार्टियों में अंदरूनी लोकतंत्र के अभाव जैसे सवाल हैं। लोकतंत्र की परिधि में पृथ्वी और पर्यावरण की सुरक्षा चिंता भी सुनिश्चित होनी चाहिए।
विद्यापीठ राष्ट्रीयता की निर्मिति है प्रो. ओमप्रकाश सिंह बीज वक्तव्य देते हुए भारतीय भाषा केंद्र जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि विद्यापीठ का निर्माण राष्ट्रीयता की चेतना का ही परिणाम है। आचार्य नरेंद्र देव ने राष्ट्र की जो संकल्पना निर्मित की थी उसे शिवप्रसाद गुप्त सहित अन्य पुरोधाओं ने मूर्त रूप दिया। राष्ट्रीय चेतन का ही परिणाम था कि बिना अंग्रेजों के सहयोग के इन लोगों ने अपने संसाधनों से हिन्दी माध्यम के शिक्षा संस्थान को साकार किया। विद्यापीठ को आचार्य नरेंद्र देव की स्मृतियों को सहेजना चाहिए। इस मौके पर प्रो. ओमप्रकाश सिंह और डॉ. सोनम सिंह द्वारा आठ खंडों में संपादित आचार्य नरेंद्र देव ग्रंथावली का विमोचन किया गया। संपादकों ने इसकी एक प्रति केन्द्रीय पुस्तकालय को उपहार स्वरूप भेंट की।
इस मौके पर विशिष्ट अतिथि एन आई ओ एस की निदेशक प्रो. सरोज शर्मा ने कहा कि उन्नत राष्ट्रवाद की संकल्पना ही भारत की पहचान है। हमारी प्राचीन परंपराओं में शास्त्रार्थ और संवाद की मौजूदगी रही है। स्त्री और ज्ञान की गौरवशाली परंपरा हमारी पहचान है। एस डी जी के सत्रह उद्देश्यों में शिक्षा भी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस दिशा में जरूरी कदम है जो भारतीय ज्ञान परंपरा के नवाचारी रूपों पर बल देती है। भारत शुरू से ही राष्ट्र रहा है। इसके व्रत-त्योहार आध्यात्मिक चिंतन षट दर्शन सभी एक राष्ट्र की संकल्पना को प्रमाणित करते हैं।
मौके पर स्वागत सम्बोधन विषय प्रवर्तन और धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक और मानविकी संकाय के अधिष्ठाता प्रो. अनुराग कुमार ने किया। संचालन प्रो. रामसुधार सिंह ने किया।
दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता जेएनयू के भाषा संस्थान की पूर्व डीन प्रो. मजहर आसिफ़ ने की। वक्ता के रूप में मौजूद जेएनयू के प्रो. देवशंकर नवीन, बीएचयू डॉ. बालेश्वर यादव भीम राव अंबेडकर विश्वविद्यालय के डॉ. रमाशंकर सिंह और युवा साहित्यकार डॉ. विहाग वैभव ने भी अपनी बातें रखीं। इस सत्र का विषय था राष्ट्र की संकल्पना और भारत। संचालन संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. विजय कुमार रंजन ने तथा धन्यवाद ज्ञापन पत्रकारिता संस्थान के डॉ. नागेंद्र कुमार सिंह ने किया।
आज के आखिरी सत्र भाषा साहित्य संस्कृति और राष्ट्रवाद की अध्यक्षता नवगीतकार डॉ. इंदीवर पांडे ने की। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय सरस्वती पत्रिका के संपादक रविनंदन सिंह ने वक्ता के रूप में सगोष्ठी को वैचारिक गरिमा दी। संचालन डॉ. जितेंद्र यादव व धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।
इस अवसर पर कुलानुशासक प्रो0 अमिता सिंह कुलसचिव डॉ0 सुनीता पांडेय उप कुलसचिव हरीश चंद प्रो0 के0 के0 सिंह, प्रो0 रेणु सिंह प्रो0 श्रद्धानन्द प्रो0 सुरेंद्र प्रताप जनसंपर्क अधिकारी डॉक्टर नवरत्न सिंह डॉ0 सुमन डॉ0 नागेंद्र प्रो0 राजमुनि प्रो0 रामाश्रय प्रो0 अनुकूल डॉ0 अविनाश डॉ0 प्रीति डॉ0 विनोद डॉ0 सतीश डॉ0 दिनेश शुक्ल, डॉ0 प्रदीप डॉ0 मनोहर डॉ0 प्रभा डॉ0 सोनम डॉ0 अनिरुद्ध शोध छात्रों में दीपक अंकित प्रवीण राघवेंद्र जनमेजय हनुमान बलिराम अरुण सन्ध्या वरुणा विपिन मनीष धर्मेंद्र उमा अवधेश वागीश शौरभ आकाश आदि के साथ भारी मात्रा में शोध छात्र एवं छात्राएं उपस्थित थे।