दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से व्यापारी आशीष अग्रवाल ने मुलाकात कर रबर फैक्ट्री प्रकरण में केंद्र सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने की मांग की

दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से व्यापारी आशीष अग्रवाल ने मुलाकात कर रबर फैक्ट्री प्रकरण में केंद्र सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने की मांग की।

जनपद बरेली _ अंतरराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन युवा मोर्चा के बरेली जिलाध्यक्ष आशीष अग्रवाल ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से नई दिल्ली स्थित भाजपा कार्यालय पर भेंट कर प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप को संबोधित मांगपत्र दिया और बॉम्बे हाईकोर्ट में लंबित रबड़ फैक्ट्री की जमीन वापसी प्रकरण में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप करवाकर जल्द निस्तारित करवाने का अनुरोध किया। केंद्रीय मंत्री श्री शेखावत ने इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय से यथोचित कार्यवाही का आश्वासन दिया है।

बता दें कि वर्ष 1958 से 1960 के बीच एशिया की सबसे बड़ी और विश्व के पांच बड़े कृत्रिम रबड़ उत्पादन संयंत्रों में शुमार रबड़ फैक्ट्री यानि सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड की स्थापना राज्य सरकार से फतेहगंज पश्चिमी, भिटौरा, कुरतरा, माधौपुर, रुकुमपुर आदि गांवों के किसानों की 1543 एकड़ जमीन मात्र 3.20 लाख रुपये में इस शर्त पर खरीदी थी कि अगर फैक्ट्री नहीं लगी या बंद की गई तो इसी कीमत पर जमीन सरकार को वापस करनी होगी। यह रजिस्टर्ड एग्रीमेंट तत्कालीन राज्यपाल के हस्ताक्षरों से फैक्ट्री मालिकान और उप्र सरकार के बीच हुआ था। यह रजिस्टर्ड सेल डीड बांबे हाईकोर्ट में पेश भी की जा चुकी है।
भाजपा से जुड़े युवा व्यापारी नेता आशीष अग्रवाल ने केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन देकर बताया कि तीन दशकों तक ठीकठाक चलने के बाद 15 जुलाई 1999 को फैक्ट्री में अचानक अघोषित तालाबंदी कर दी गई और सभी 1447 स्थायी कर्मचारियों को सवेतन अवकाश पर जबरन घर भेज दिया गया। फैक्ट्री की अचानक तालाबंदी से स्थायी कर्मचारियों के अलावा पांच हजार से ज्यादा अस्थायी श्रमिक भी बेरोजगारी, विस्थापन, गरीबी, भुखमरी के गहरे अंधकूप में ऐसे गिरे कि 24 साल बाद भी उबर नहीं पाए हैं। बेकारी, गरीबी, भुखमरी, बीमारी की मानसिक यंत्रणा नहीं झेल पाने की वजह से 14 श्रमिकों को खुदकुशी करनी पड़ी और 600 से ज्यादा श्रमिकों की असमय मौत भी हो चुकी है।
सेल डीड की शर्त के मुताबिक फैक्ट्री की तालाबंदी के बाद मालिकान ने सरकार को जमीन तो नहीं लौटाई, साथ ही श्रमिकों के वेतन और अन्य देयों का भी भुगतान नहीं किया है जो बढ़कर अब अरबों रुपये में पहुंच चुका है।
मामला फिलहाल बाम्बे हाईकोर्ट में अंतिम चरण में लंबित है। 14 बैंक फैक्ट्री मालिकान को दिए गए 154 करोड़ रुपये के लोन की वसूली मालिकान की शह पर फैक्ट्री की 1343 एकड़ ( बीएसएफ को दी गई 200 एकड़ जमीन निकालकर) बेशकीमती हथियाने को आमादा हैं। उधर, अलकेमिसट लिमिटेड भी 100 करोड़ रुपये में वर्ष 2010 में मीरगंज तहसील में रबड़ फैक्ट्री की 18 अरब रुपये से भी ज्यादा कीमत की फोरलेन हाईवे और उत्तर रेलवे ब्राडगेज लाइन से सटी जमीन का बयनामा अपने हक में करा चुकने का दावा कर रही है। हालांकि विक्रेता कौन है और एक अरब रुपये की इतनी बड़ी रकम दी किसे गई, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित ही है?
दो साल से इस केस की बाम्बे हाईकोर्ट में पैरवी उत्तर प्रदेश सरकार कर रही है।
व्यापारी नेता आशीष की मांग है कि केंद्र सरकार व्यापक जनहित में बाम्बे हाईकोर्ट से इस केस का फैसला जल्द सुनवाने के लिए जरूरी हस्तक्षेप और विधिक कार्यवाही करे ताकि इस जमीन का मालिकाना हक मिलने के बाद उप्र सरकार द्वारा यहां सिडकुल बनाकर रबड़ फैक्ट्री के हजारों विस्थापित श्रमिकों और उनके आश्रितों को पुनर्वासित कराया जा सके और उनके बकाया वेतन और सभी लंबित देयों का भी भुगतान हो सके। वैसे भाजपा नेता आशीष अग्रवाल कुछ माह पहले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में आनलाइन जनहित याचिका भी दायर कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पीआईएल को सुनवाई के लिए स्वीकार भी कर लिया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कब करेगा, यह तय नहीं है।

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