कोयला की कमी को पूरा करने में सिंगरौली की भूमिका महत्वपूर्ण

देश की ऊर्जाजन्य ज़रूरतों की पूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण और आर्थिक विकास की धुरी माना जाने वाला विद्युत क्षेत्र कोयले की आपूर्ति जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक इस बार गर्मी रिकॉर्ड तोड़ सकती है। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक तौर पर बिजली की मांग बहुत बढ़नेवाली है। बिजली उत्पादन कोयले की उपलब्धता पर निर्भर करता है क्योंकि अपरंपरागत ऊर्जा स्रोतों से बिजली आपूर्ति में फिलहाल 10 फीसदी मदद भी नहीं मिल पा रही है। देश में बिजली की मांग के करीब 70 फीसदी हिस्से का उत्पादन सिर्फ कोयले पर निर्भर है। आयातित कोयला घरेलू कोयले के मुकाबले बहुत अधिक महंगा होने से इन गर्मियों में बिजली वितरण कंपनियों को बिजली काफी महंगी पड़ने वाली है। इसका एक बड़ा कारण केंद्र सरकार का वो फैसला है जिसमें वितरण कंपनियां बिजली के दाम बढ़ाने को लेकर पूरी तरह स्वतंत्र कर दी गई हैं।
ऐसे में सिंगरौली का देश के विद्युत क्षेत्र और अर्थव्यवस्था में विशेष महत्व है। मध्यप्रदेश के विपुल खनिज भण्डार राज्य के औद्योगिक और आर्थिक विकास की प्रमुख कड़ी है। कोयले के उत्पादन में मध्यप्रदेश का देश में चौथा स्थान है जहां देश के 7.8% कोयला भंडार है और भारत के कुल कोयला उत्पादन का 13.6% पैदा करता है। हाल में ही राज्य सभा में कोयला मंत्रालय द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक देश भर में सरकारी और निजी क्षेत्रों को मिलकर कुल 488 कोयला का खदान है जिसमें मध्यप्रदेश में स्थित कोयला खदानों की संख्या 79 है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2022 के दौरान 137.953 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ जबकि वर्ष 2021 के दौरान 132.531 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ था जिससे प्रदेश को हजारों करोड़ का राजस्व मिला। कोयले की खनन से मिलनेवाले रॉयल्टी के तौर पर वर्ष 2020-21 में मध्यप्रदेश सरकार को 3199.42 करोड़ मिला था जबकि वर्ष 2021-22 में 2709.77 करोड़ रुपये की आमदनी हुई।
मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले के आसपास कोयला आधारित कुल नौ पावर प्लांट हैं जिनकी कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 21,270 मेगावाट है। इस क्षमता का आधे से अधिक (11,180 मेगावाट) अपेक्षाकृत नया है और इसे पिछले 10 वर्षों में जोड़ा गया है। अधिक क्षमता वृद्धि के कारण इस क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में कोयले की खपत हुई। यही वजह है कि सिंगरौली को उर्जाधानी कहा जाता है जो सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों के बिजली की जरूरतों को पूरा करता है। खदानों से निकलनेवाले कोयले की आपूर्ति ताप विद्युत केंद्रों के अलावा विभिन्न औद्योगिक केंद्रों को भी की जाती है। कोयले की खनन की रॉयल्टी में सिंगरौली जिला ने लक्ष्य से अधिक राजस्व अर्जित कर मध्यप्रदेश में अव्वल रहा। पिछले वर्ष भी सिंगरौली खनिज राजस्व वसूली में प्रदेश में शिखर पर था। वर्ष 2023 के लिए निर्धारित राजस्व वसूली 2588.00 करोड़ के विरूद्ध 2686.52 करोड़ रूपये की वसूली कर प्रदेश में सर्वोच्च स्थान हासिल किया है। रॉयल्टी से मिले इस रकम का उपयोग राज्य सरकार लोकहित से जुड़े कार्यक्रमों जैसे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने में करती है।
बिजली की लागत और वितरण शुल्क में बढ़ोतरी से कोर सेक्टर के साथ ही रोजमर्रा की वस्तुओं के उत्पादन की वृद्धि होगी। ऐसा होने से बहुत से अन्य संकट भी खड़े हो जाएंगे। इसका सबसे बेहतर उपाय घरेलू कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के साथ ही गैर परंपरागत विद्युत उत्पादन पर जोर देने की जरूरत है। विदेशी कोयला आयात करने से देश को आर्थिक नुकसान ही होगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने अपने ताजा रिपोर्ट में यह अनुमान जताया है कि साल 2023 से 2025 के बीच आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों में बढ़ती खपत कारण भारत में बिजली की मांग 5.6 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ सकती है। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2040 तक भारत की विद्युत ऊर्जा की मांग वर्ष 2012 की तत्कालीन मांग की तुलना में 4.5 गुना अधिक हो जाएगी। ऐसे में हमें विद्युत क्षेत्र के महत्त्व की पहचान करते हुए व्याप्त समस्याओं का समाधान करना होगा और कोयला का अधिक से अधिक उत्पादन सुनिश्चित करना होगा।
भारत वर्तमान में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और देश का कोयला और खदान क्षेत्र वर्तमान आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। निवेश के निरंतर कार्यक्रम और आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग के बदौलत चालू वित्त वर्ष 2022-23 (फरवरी 2023 तक) में भारत का कोयला उत्पादन 785.24 मिलियन टन है, जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि के दौरान लगभग 681.98 मिलियन टन की तुलना में लगभग 15.14% की वृद्धि हुई है। घरेलू स्तर पर कोयला उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और आयात में काफी कमी आई है। घरेलू कोयला आधारित बिजली संयंत्रों द्वारा ब्लेंडिंग के लिए कोयला आयात में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 8.11 मिलियन टन की कमी आई जो कि पिछले आठ वर्षों में सबसे कम कोयला आयात है। ऐसा केवल घरेलू स्रोतों से मजबूत कोयला आपूर्ति तथा बढ़े हुए घरेलू कोयला उत्पादन के कारण संभव हो पाया।
औद्योगिक केंद्रों एवं ताप विद्युत केंद्रों को कोयले की सतत आपूर्ति होने से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि होगी और उसका लाभ आम जनता को मिलेगा। गौरतलब है कि कोयला के अभाव में हम इतने बड़े पैमाने पर बिजली का उत्पादन नहीं कर सकते जिससे औद्योगिक उत्पादन के ठप्प होने का खतरा बढ़ जायेगा। स्पष्ट है कि बगैर कोयले के राज्य और देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाना संभव नहीं है। कोल उत्पादन से बिजली बढ़ेगी और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा। कोल ब्लॉक की नीलामी और खनन शुरू होने से बड़े पैमाने पर राजस्व के अतिरिक्त लोगों के लिए रोजगार सृजन होता है। जहां-जहां कोयले की खदान में काम शुरू हुआ है वहां हजारों स्थानीय युवाओं एवं व्यक्तियों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। केंद्र सरकार को वर्ष 2030 तक लगभग पांच सौ खदानों की नीलामी से डेढ करोड़ लोगों को रोजगार मिलने की आशा है। वहीं स्थानीय स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, तथा कौशल विकास के साथ-साथ जरूरतमंद महिलाओं के लिए महिला उद्यमी बहुउद्देशीय सहकारी समिति का संचालन से क्षेत्र का सर्वांगीण विकास हो रहा है। पूंजी का प्रवाह सिंगरौली क्षेत्र में होने कारण आसपास के क्षेत्र का विकास हो रहा है। जो भी निजी अथवा सरकारी कंपनियां प्रोजेक्ट लगा रही हैं, उनके द्वारा अपने लाभांश का एक हिस्सा सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत आजीविका को बढ़ावा देने और सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने में खर्च किया जाता है।
जहां कहीं भी कोयला परियोजना की शुरुआत होती है, वहां के स्थानीय लोगों को भूमि अर्जन के बदले समुचित मुआवजा की राशि दिए जाने के बाद उनके विस्थापन के लिए विशेष तौर पर पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन नीति तैयार की जाती है ताकि उन्हें और उनके परिवार को कोई परेशानियां नहीं हो। इसके तहत विस्थापित परिवारों के लिए मकान और प्लॉट की व्यवस्था, विस्थापन हेतु परिवहन खर्च, पशुबाड़ा निर्माण हेतु राशि, पुनर्व्यवस्थापन भत्ता, अनुदान राशि, परिवार के एक सदस्य को नौकरी, स्वराजगोर के लिए राशि, वृद्धावस्था पेंशन, चिकित्सा सुविधा आदि का प्रावधान है। इसके अलावा बच्चों के लिए बेहतर स्कूल, छात्रवृत्ति सुनिश्चित जाता है। साथ हीं पुनर्वास कॉलोनी में पक्की सड़क, नालियां, रौशनी की व्यवस्था, शुद्ध पेय जल, उचित मूल्य दूकान, आंगनबाड़ी भवन, हाट बाजार, विद्यालय भवन, सार्वजनिक खेल का मैदान, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक भवन, श्मशान या कब्रिस्तान का निर्माण, मंदिर/मस्जिद की स्थापना और शौचालयों की व्यवस्था जैसी बुनियादी जरूरतों का खास ख्याल रखा जाता है।