आयोग की आपत्ति के बाद स्थाई DGP को लेकर फंसा पेंच, 5 दिन में न हुआ फैसला तो डीएस चौहान की राह भी मुश्किल

आयोग की आपत्ति के बाद स्थाई DGP को लेकर फंसा पेंच, 5 दिन में न हुआ फैसला तो डीएस चौहान की राह भी मुश्किल

UP Government: प्रदेश में स्थाई डीजीपी की नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की आपत्ति के बाद स्थाई डीजीपी को लेकर पेंच फंस गया है। गृह विभाग एक ओर जहां रविवार के दिन भी आयोग की ओर से लगाई गई आपत्ति का जवाब तलाशता नजर आया वहीं सरकार की ओर से पूर्व डीजीपी मुकुल गोयल की कमियां गिनाई जाती रहीं।
सूत्रों का कहना है कि यूपीएससी की ओर से लगाई आपत्ति का जवाब तैयार करने केलिए विधिक राय भी ली जा रही है, ताकि आयोग में प्रदेश सरकार का पक्ष मजबूती से रखा जा सके। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश सरकार की ओर से जल्द से जल्द आयोग को जवाब भेजा जाएगा ताकि 30 सितंबर से पहले आयोग में बैठक हो सके।
दर असल मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी देवेंद्र सिंह चौहान को पूर्णकालिक डीजीपी बनने के लिए जरूरी है कि आयोग मुकुल गोयल को डीजीपी के पद से 2 वर्ष पूरा होने से पहले हटाए जाने के फैसले के राज्य सरकार के जवाब से संतुष्ट हो जाए। इसके बाद राज्य सरकार के प्रस्ताव के दिन को ही आधार मानकर प्रदेश के नए डीजीपी के लिए नाम तय करे। 
ऐसा होता है तो जीएल मीणा और डॉ. आरपी सिंह छह माह से कम कार्यकाल बचा होने के कारण रेस से बाहर हो जाएंगे और डीएस चौहान की राह आसान हो जाएगी। वहीं डीजीपी के लिए बैठक के लिए 30 सितंबर के बाद की तिथि निर्धारित करता है और बैठक की तिथि को आधार मानता है तो ऐसी स्थिति में डीएस चौहान के पूर्णकालिक डीजीपी बनने की राह बहुत मुश्किल हो जाएगी। 
वहीं डीजीपी का पद रिक्त होने की तिथि को आयोग आधार मानता है तो भी देवेंद्र सिंह चौहान की डीजीपी बनने की राह मुश्किल रहेगी। क्योंकि मुकुल गोयल का नाम हटाने के बाद भी देवेंद्र सिंह चौहान से वरिष्ठ तीन और अधिकारी (आरपी सिंह, जीएल मीणा और राज कुमार विश्वकर्मा) डीजीपी के पैनल के लिए उपलब्ध होंगे।

सरकार तलाश रही ठोस जवाब
आयेग का जवाब देने के लिए सरकार ठोस जवाब तलाश रही है। दर असल मुकुल गोयल को हटाकर जब नागरिक सुरक्षा में डीजी के पद पर भेजा गया था, तब आदेश को जनहित में बताया गया था। वहीं मीडिया में डीजीपी को हटाए जाने का कारण अकर्मण्यता, सरकारी कार्य में रूचि न लेना और लापरवाही जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। 

अब सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि मुकुल गोयल डीजीपी बनने से पहले निलंबित भी हो चुके हैं, भर्ती घोटाले में उनका नाम आ चुका है और एडीजी कानून व्यवस्था रहते हुए मुजफ्फरनगर दंगे में उन्होंने विवेचना ठीक से नहीं कराई। 

डीजीपी बनने के बाद कौन-कौन सी घटनाएं हुई जिसमें डीजीपी की भूमिका संदिग्ध रही या भ्रष्टाचार का कौन सा मामला सामने आया, सरकार को यह आयोग को बताना होगा। डीजीपी बनने के पूर्व के कारणों पर यूपीएससी 29 जून 2021 को हुई बैठक में नजर डाल चुका है, जिसके बाद मुकुल गोयल का नाम पैनल में चुना गया था।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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