आख़िर कब तक दूसरे विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सहारे चलेगा देश का ऐतिहासिक विश्वविद्यालय?

Uttar Pradesh: आख़िर कब तक दूसरे विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सहारे चलेगा देश का ऐतिहासिक विश्वविद्यालय?

देश में सर्वप्रथम स्थापित होने वाले गिने-चुने विश्वविद्यालयों में शुमार आगरा विश्वविद्यालय (University), जिसे आज डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होते-होते लगभग विलुप्त होने के क़ग़ार पर आ चुका है। आए दिन यह विश्वविद्यालय घोटाले, कुलपतियों की मनमानी, परीक्षाओं में धांधली के लिए सुर्ख़ियों में रहने लगा है। हाल ही में स्थापित राजा महेंद्र प्रताप राज्य विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के अस्तित्व में आ जाने से इस विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार, जो कभी बंगाल तक विस्तृत था, आज केवल आसपास के चार ज़िलों में सिमट गया है।

इतनी गड़बड़ियों के बावजूद, इस प्राचीन और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय (University) में पिछले 14 महीने से राजभवन एक कुलपति नियुक्त नहीं कर सका है। 5 जुलाई 2021 को तत्कालीन कुलपति प्रो0 अशोक कुमार मित्तल को कुछ शिकायतों के आधार पर जाँच बिठाकर कार्य से विरत कर दिया था। तब से विश्वविद्यालय में उनके स्थान पर किसी कुलपति की पूर्णकालिक नियुक्ति नहीं की जा सकी है।

5 जुलाई को पहले लखनऊ विश्वविद्यालय (University) के कुलपति प्रो0 आलोक कुमार राय को आगरा का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया गया, जिसे वे माह में 1-2 बार आकर 6 माह तक निभाते रहे। इसी बीच 11 जनवरी 2022 को प्रो० मित्तल ने अपने ख़िलाफ़ गड़बड़ियों की जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने से पहले ही स्वेच्छा से इस्तीफ़ा दे दिया।

गौरतलब है कि प्रो. मित्तल के खिलाफ तीन सदस्यों की समिति जांच कर रही थी। इसमें सदस्य के तौर पर शामिल छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक को ही 24 जनवरी 2022 को राज्यपाल / कुलाधिपति ने डॉ० भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के कुलपति के दैनन्दिन कार्यों को सम्पादित करने का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया। यहाँ यह भी जानने योग्य बात है कि प्रो० पाठक पहले से डॉ० भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा की कार्यपरिषद में राज्यपाल के द्वारा नामित सदस्य हैं।

इस बीच डॉ० भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय (University), आगरा हेतु स्थायी कुलपति के लिए आवेदन राज्यपाल/कुलाधिपति द्वारा आमंत्रित किए गए। 348 कुलपति पद के उम्मीदवारों में से आवेदन के सभी पैमानों पर खरे उतरने वाले पाँच शिक्षाविदों, क्रमशः प्रो० दयाशंकर पांडे (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय), प्रो० सीमा जैन (प्रधानाचार्या, जे०के० पी०जी० कॉलेज, मुज़फ़्फ़रनगर), प्रो० शील सिंधु पांडे (रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर), प्रो० सुनील प्रकाश त्रिवेदी (लखनऊ विश्वविद्यालय), और प्रो० विनीत कंसल (निदेशक, इंस्टिट्यूट ओफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलजी, लखनऊ) के नाम राज्यपाल/ कुलाधिपति द्वारा गठित सर्च समिति द्वारा स्थापित पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद कुलाधिपति को संस्तुति हेतु प्रस्तावित किए गए, जिनका साक्षात्कार कुलाधिपति/ राज्यपाल द्वारा दिनांक 20-06-2022 को लिया गया।
तदोपरांत कुलपति पद पर नियुक्ति के अंतिम चरण में उपरोक्त पाँचों शिक्षाविद महानुभावों के सम्बंध में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के अपर मुख्य सचिव महेश कुमार गुप्ता द्वारा दिनांक 29-06-2022 को चरित्र सत्यापन की रिपोर्ट के साथ संस्तुति आख्या प्रस्तुत की गई थी। लेकिन अचानक इस पूरी प्रक्रिया को राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल द्वारा अस्वीकार कर दिया गया और कुलपति नियुक्ति हेतु नया विज्ञापन देश के सभी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा में प्रकाशित कराए जाने के निर्देश जारी कर दिए, जिसके बाद कुलपति पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया एक बार फिर बाधित हो गई।

हालाँकि नए सिरे से विज्ञापन निकाला गया है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में काफ़ी समय लगने के कारण अभी कितने दिन, महीने में 1-2 दिन दर्शन देने वाले दूसरे विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सहारे डॉ० भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा चलता रहेगा, यह कहना मुश्किल है। फ़िलहाल तो ऐसा लग रहा है कि आने वाले काफ़ी समय तक विश्वविद्यालय के छात्रों/ कर्मचारियों / शिक्षकों को इन्हीं अव्यवस्थाओं से दो – चार होते रहना पड़ेगा।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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