सन्त,पूज्यपाद, गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज की, जन्मभूमि सोरों शूकर क्षेत्र,सोरोंजी

सन्त,पूज्यपाद, गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज की, जन्मभूमि सोरों शूकर क्षेत्र,सोरोंजी
जय श्री भगवान आदि वराह !भगवान श्री नारायण के दशा अवतारौ !में प्रमुख श्री वराह अवतार की मोक्षदायिनी !पवित्र भूमि श्री “सोरों शूकर क्षेत्र “का एक सूक्ष्म,परिचय !!विश्वास हैं कि भक्त जन “अवश्य लाभ प्राप्त करेंगे “””
स्कन्दपुराण के अनुसार “शूकरक्षेत्र समः तीर्थम् न भूतो न भविष्यति।” अर्थात् शूकरक्षेत्र के समान तीर्थ न तो भूतकाल में हुआ और न ही भविष्य में होगा।
शास्त्रों में शूकरक्षेत्र को मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ स्थल बताया है-
“गयायाम् जले मुक्ति वाराणस्याम् च जले थले।
जले थले च अन्तरिक्षे त्रिधा मुक्तिः तु शूकरे।।”
अर्थात् गया में जल में मुक्ति होती है, वाराणसी में जल में और थल पर मुक्ति होती है। शूकरक्षेत्र में जल में, थल पर और अन्तरिक्ष में, तीनों प्रकार से मुक्ति होती है।
वराहपुराण में अध्याय १३७ के ७ वें श्लोक में शूकरक्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का वर्णन भी है-
“यत्र सञ्स्थाप्य च मे देवि ह्युद्धृतासि रसातलात्।
यत्र भागीरथी गङ्गा मम सौकर वै स्थिता।।”
अर्थात् भगवान् वराह देवी पृथ्वी से कहते हैं कि हे देवी ! जहाँ मैंने तुम्हें रसातल से उद्धृत करके स्थापित किया था, जहाँ भागीरथी गङ्गा हैं, वहीं मेरा सौकरत्व अर्थात् शूकरक्षेत्र (वर्त्तमान सोरों) स्थित है। इसमें संशय नहीं है।
शूकरक्षेत्र (सोरों) में अस्थि विसर्जन का बहुत ही चमत्कारिक महत्त्व है-
“प्रक्षिप्त अस्थि वर्गः तु रेणुरूप प्रजायते।
त्रिदिनान्ते वरारोहे मम क्षेत्र प्रभावतः।।”
अर्थात् भगवान् वराह देवी पृथ्वी से कहते हैं कि हे देवी ! शूकरक्षेत्र स्थित कुण्ड में डाली गयीं अस्थियाँ रेणु रूप में परिवर्तित हो जाती है। हे वरारोहे ! ऐसा मेरे क्षेत्र (शूकरक्षेत्र) के प्रभाव से तीन दिन के अन्त में होता है।
तपस्या करने के लिए तो शूकरक्षेत्र से बड़ा कोई तीर्थस्थल ही नहीं है-
“षष्टि वर्ष सहस्त्राणि योऽन्यत्र कुरुते तपः।
तत्फलम् लभते देवि प्रहरार्द्धेन च शूकरे।।”
अर्थात् जो मनुष्य साठ हजार वर्ष तक अन्यत्र किसी स्थान पर तपस्या करके जो फल प्राप्त करता है। हे देवी पृथ्वी ! वही फल मेरे शूकरक्षेत्र (सोरों) में मात्र आधे प्रहर (डेढ़ घण्टे) में प्राप्त हो जाता है।
यह भूमि श्रीरामचरितमानस के रचनाकार महाकवि गोस्वामी तुलसीदास एवम् अष्टछाप के जड़िया कवि नन्ददास की जन्मभूमि भी है।
शूकरक्षेत्र का आधुनिक नाम ‘सोरों’ है, जो वर्तमान कासगंज जनपद में मथुरा-बरेली राजमार्ग सङ्ख्या ३३ पर स्थित है। रेल हेतु कासगंज जंक्शन – बरेली जंक्शन रेलमार्ग पर कासगंज से १५ किमी० सोरों शूकरक्षेत्र,,,, का (रेल्बे)का सुन्दर ,स्टेशन है। ..,जय सिया राम

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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