1931 में ऐसे ही भड़की हिंसा, जिसके शिकार बने थे गणेश शंकर विद्यार्थी, जानें तब क्या-क्या हुआ?

Kanpur Violence: 1931 में ऐसे ही भड़की हिंसा, जिसके शिकार बने थे गणेश शंकर विद्यार्थी, जानें तब क्या-क्या हुआ?

कभी ‘मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट’ कहा जाने वाला कानपुर इस वक्त सांप्रदायिक तनाव से जूझ रहा है। शुक्रवार (3 जून) को जुमे की नमाज के बाद कई इलाकों में हिंसा भड़क गई। जमकर पथराव हुआ। दंगाइयों ने पेट्रोल बम भी फेंके। पूरे शहर में आज भी तनाव की स्थिति है। इस सांप्रदायिक हिंसा के बाद कानपुर के पुराने दंगे लोगों के जेहन में आने लगे हैं।

खासतौर पर 1931 में भड़की सांप्रदायिक हिंसा को लेकर कुछ ज्यादा ही चर्चा है। इसी हिंसा में देश के बड़े पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या कर दी गई थी। 1931 के दंगे की चर्चा इसलिए भी हो रही है, क्योंकि शुक्रवार को भड़की हिंसा और तब के दंगे में काफी समानता है। आइए जानते हैं कि तब क्या हुआ था और पूरा घटनाक्रम क्या है?

1931 में कैसे हुआ था दंगा?
वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. नवीन पांडेय कहते हैं, ’23 मार्च को जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई तो लोग नाराज हो गए। कांग्रेस ने 24 मार्च को एक दिन की हड़ताल का आह्वान किया था। सभी ने अपनी दुकानें भी बंद कर दीं, लेकिन समुदाय विशेष के कुछ दुकानदारों ने अंग्रेजों के इशारे पर काम-काज रोकने से इनकार कर दिया। देखते ही देखते दो समुदायों आमने-सामने आ गए। ब्रिटिश सरकार ने इन दंगों को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। लगातार छह दिन तक पूरा शहर दंगों से जूझता रहा।’
गणेश शंकर विद्यार्थी ने दे दी प्राण की आहूति
पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की जीवनी में भी इस दंगे का जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया कि दंगों के बीच गणेश शंकर विद्यार्थी ने काफी लोगों को बचाया भी था। उस दौरान उन्हें एक इलाके में कुछ लोगों के फंसे होने की जानकारी मिली तो वह उन्हें बचाने के लिए चले गए। वहां उन पर हमला कर दिया गया, लेकिन वह लगातार दंगा रोकने की गुहार लगाते रहे। गणेश शंकर विद्यार्थी का शव दो दिन बाद मिला था। असम के पूर्व डीजीपी अविनाश मोहने ने एक लेख में लिखा था कि उस दंगे में 400 से ज्यादा लोग मारे गए थे। सैकड़ों घर फूंक दिए गए थे।
इस बार क्या हुआ?
शुक्रवार तीन जून को जुमे की नमाज थी। इसके बाद समुदाय विशेष के लोगों ने भाजपा नेता नुपुर शर्मा के कथित बयान को लेकर बंदी का आह्वान किया। नुपुर पर आरोप है कि उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बात कही थी। इसी बंदी को लेकर सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए और जबरन दुकानें बंद कराने लगे। जिन्होंने दुकानें बंद नहीं की, उनके साथ मारपीट की गई। इसके बाद हिंसा भड़क उठी। पथराव होने लगा और पेट्रोल बम फेंके गए। पुलिस इस मामले में अब तक 20 से ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है।

और कब-कब भड़की हिंसा
1933: लाहौर में शहीदगंज मस्जिद के पास सांप्रदायिक हिंसा भड़की थी। इस हिंसा की आंच कानपुर, अयोध्या, बनारस, पेशावर तक पहुंच गई।

1939: सिंध में मंदिर तोड़ने पर सिंध के साथ-साथ कानपुर-वाराणसी में सामुदायिक हिंसा भड़क गई। इसमें 150 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
1984: इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में हिंसा भड़क उठी थी। उस वक्त कानपुर में भी सिखों पर हमला किया गया और 400 से ज्यादा सिखों को मार डाला गया।

1990: कानपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ। इसमें 20 से ज्यादा लोग मारे गए।

1991: श्रीराम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर कानपुर में हिंसा भड़की। तब 25 से ज्यादा लोगों की मौत हुई।

1992: बाबरी विध्वंस के बाद देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा भड़की। उस दौरान कानपुर में 250 से ज्यादा लोग मारे गए।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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