अखिलेश यादव के सामने क्या बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं शिवपाल, जानें

लखनऊ।उत्तर प्रदेश में इस समय समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के परिवार में काफी उठापटक मची है।समाजवादी राजनीति के शिखर और जनता के नेता कहे जाने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया ने एक समय में यह कहा था कि विपक्ष को किसी बड़े फैसले के लिए पांच साल बाद चुनाव का इंतजार नहीं करना चाहिए।कुछ इसी तरह से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल सिंह यादव अब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के सामने एक नई लकीर खींचते हुए दिखाई दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव के में सम्मान न पाने वाले शिवपाल को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। चर्चा हैं कि शिवपाल 19 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी में शामिल सकते हैं।हालांकि ये अभी चर्चाएं ही हैं,लेकिन जिस तरह से शिवपाल पिछले कुछ दिनों से संकेत दे रहे हैं उससे ऐसा जरूर लग रहा है जल्द ही कुछ बड़ा करने वाले हैं।
अखिलेश ने शिवपाल को डाला दोहरे धर्म संकट में
शिवपाल सिंह यादव ने सपा से हाथ मिलाया था,लेकिन इस बार सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पिछली बार से भी बड़ा धार्मिक संकट खड़ा कर दिया है। 2016 में जब अखिलेश यादव सपा में बदलाव का नया इतिहास लिख रहे थे तो वहीं शिवपाल अपने परिवार और पार्टी दोनों में अलग-थलग और कमजोर लग रहे थे।तब मुलायम की लाख कोशिशों के बाद भी एक नहीं चलीं,न अखिलेश माने और न शिवपाल, दोनों के रास्ते अलग हो गए। 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल और अखिलेश की एक बार फिर मुलाकात हुई।अखिलेश ने चाचा शिवपाल से हाथ मिलाते हुए गठबंधन की लंबी लाइन खींची थी,क्योंकि अखिलेश प्रसपा का विलय कर सपा में अपने लिए कोई नया गुट और नई मुसीबत नहीं लाना चाहते थे।शिवपाल भी मान गए और इतने लचीले हो गए कि केवल एक सीट के लिए राजी हो गए।
शिवपाल की बगावत को आसान नही रोकना
2022 विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद जब अखिलेश अपने आपको सबसे बड़े राजनीतिक संघर्ष के लिए तैयार कर रहे थे तो शिवपाल को उस रणनीति से दूर रखा।नतीजा ये है कि शिवपाल ने पर्दे के पीछे से मिल रही शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अखिलेश यादव के सामने नई नीति और रणनीति का ट्रेलर दिखाना शुरू कर दिया है।अखिलेश यादव के लिए इस बार शिवपाल की बगावत से निपटना आसान नहीं होगा।अखिलेश यादव अब इसे लेकर न सिर्फ बैकफुट पर नजर आ रहे हैं, बल्कि दोहरे धर्मसंकट की स्थिति में भी पहुंच गए हैं। अखिलेश यादव अगर शिवपाल को हटाते हैं तो उनका एक विधायक भी हार जाएगा,लेकिन इससे भी बड़ी समस्या ये है कि पार्टी में पुरानी दरार चौड़ी होगी और यादव वोट बैंक में बड़ी सेंध लगने का दायरा और भी ज्यादा बढ़ जाएगा।
समान नागरिक संहिता का समर्थन करने का अर्थ
16 दिसंबर से 15 अप्रैल 2022 के बीच पांच महीने भी नहीं बीते हैं कि शिवपाल ने अब तक का सबसे बड़ा कदम उठाया है। शिवपाल पिछली बार बगावत के बाद पार्टी से बाहर रहते हुए हमला कर रहे थे,लेकिन इस बार भी छत वही है।अगर शिवपाल प्रसपा के मुखिया हैं तो सपा के विधायक भी हैं।ऐसे में जब शिवपाल कहते हैं कि समान नागरिक संहिता अगर वे इसे लागू करने के लिए देश में आंदोलन शुरू करने के लिए तैयार हैं, तो इसका अर्थ बहुत चौंकाने वाला हो जाता है।
असमंजस में हैं शिवपाल के समर्थक
इटावा में विधान परिषद सदस्य चुनाव के दिन शिवपाल ने सैफई में यह कह कर सनसनी मचा दी थी कि जिसने वोट दिया है वो जीतेगा।सपा को अपने गढ़ इटावा में पराजय का सामना करना पड़ा है। इसलिए माना जा रहा है कि शिवपाल ने पिछले दरवाजे से भाजपा की मदद की है।शिवपाल की भाजपा में एंट्री को लेकर अभी तक कोई बयान सामने नहीं आया है।शिवपाल के समर्थक उनकी चुप्पी को नहीं समझ रहे हैं, क्योंकि शिवपाल ने अभी तक अपनी भविष्य की रणनीति के बारे में खुलासा नहीं किया है। शिवपाल ने अपनी पार्टी की कार्यकारिणी को भंग कर दिया है।