इस हिसाब-किताब से वो दशकों से मुंह चुरा रहे हैं।

इस हिसाब-किताब से वो दशकों से मुंह चुरा रहे हैं।

अब उनसे ये हिसाब-किताब मांगना-शुरू करिए…..

सबसे पहले इस एक तथ्य से परिचित हों जाइए…
उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस तथा ओवैसी की AIMIM में मुसलमानों को टिकट देने की होड़ लगी हुई है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन पार्टियों द्वारा मुसलमानों को अब तक बांटे गए 150 से अधिक टिकटों में एक भी टिकट दलित वर्ग के हलालखोर, हसनती, लाल बेगी, मेहतर, नट, भक्को, गधेरी आदि अरजाल मुसलमानों को नहीं दिया गया है। पिछड़ी जाति के दर्जी, धोबी, धुनिया, गद्दी, फाकिर, हज्जाम (नाई), जुलाहा, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली आदि जाति वाले अजलाफ मुसलमानों को भी इन पार्टियों ने टिकट नहीं दिया है। उल्लेखनीय है कि यह एकमात्र क्षेत्र नहीं है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, जमाते इस्लामी, जमीयतुल उलेमा, मिल्ली काउंसिल, मजलिसे मशावरत, वक्फ बोर्ड, बड़े स्तर के देवबंद, नदवा सरीखा मदरसे, इमारते शरिया सरीखे धार्मिक,सामाजिक मुस्लिम संगठनों में भी दलित वर्ग के हलालखोर, हसनती, लाल बेगी, भक्को, मेहतर, नट, गधेरी आदि अरजाल मुसलमानों को एक भी पद नहीं दिया गया है। इन संस्थाओं में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों की भागीदारी भी लगभग शून्य है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हो या जामिया मिलिया सरीखे नामी-गिरामी मुस्लिम शैक्षणिक संस्थान। ऐसे किसी भी संस्थान में भी दलित वर्ग के अरजाल मुसलमानों को महत्वपूर्ण, उच्च पदों से कोसों दूर रखा गया है। ज्ञात रहे कि खुद को सवर्ण मुसलमान समझने वाले सैयद, शेख, मुग़ल और पठान मुसलमान इन जातियों से काफी दूरी बनाकर ही रहते है।
आज उपरोक्त तथ्य की चर्चा इसलिए क्योंकि चुनाव चाहे देश का हो या उत्तर प्रदेश, गुजरात या बिहार का हो। हर चुनाव से ठीक 6-7 महीने पहले से ओवैसी, अखिलेश, कांग्रेस और तमाम विपक्षी दल एक राग अलापना जरूर शुरू करते हैं। इस झुंड के सुर में सुर मिलाकर न्यूजचैनलों के “रंगे सियार” सरीखे सेक्युलर विश्लेषकों विशेषज्ञों तथा आधा फुट से डेढ़ फुट लंबी दाढ़ी वाले मुल्लों-मौलानाओं का झुंड भी वही राग अलापता है।
यह पूरा जमावड़ा हिन्दूओं को जाति के नाम पर टुकड़े-टुकड़े करके अपनी जहरीली राजनीति का चुनावी पहाड़ा पढ़ता है। अहीर, कुर्मी, जाटव, जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार, वैश्य, कायस्थ, राजभर, मौर्य……. आदि दर्जनों जातियों के नाम से 80% हिन्दूओं की राजनीतिक शक्ति को यह झुंड चिथड़ा-चिथड़ा कर हिन्दूओं को राजनीतिक नपुंसक और मात्र 14-15% मुस्लिम वोट बैंक को निर्णायक राजनीतिक महाशक्ति सिद्ध करने का भ्रमजाल फैलाने के षड्यंत्रों में व्यस्त रहता हैं।
अतः अब यह बहुत जरूरी हो गया है कि इस पूरे गिरोह से बार-बार, लगातार यह क्यों नहीं पूंछा जाए, यह हिसाब-किताब क्यों नहीं मांगा जाए? कि मुसलमानों में बहुसंख्यक दलित वर्ग के हलालखोर, हसनती, लाल बेगी, भक्को, मेहतर, नट, गधेरी आदि अरजाल मुसलमानों, अजलाफ़ मुसलमानों को आज तक उनका अधिकार क्यों नहीं दे रहे मुट्ठी भर सवर्ण मुसलमान ?
सिर्फ यही नहीं, इनसे यह भी पूंछा जाए कि 1947 के बाद देश में अब तक हुए लोकसभा के 17 चुनावों और देश में अब तक बनी 19 केंद्र सरकारों में नजमा हेपतुल्ला के अलावा एक भी कैबिनेट या राज्यमंत्री कोई शिया मुसलमान क्यों नहीं बना ? देश के सभी राज्यों में अब तक बनी सैकड़ों सेक्युलर सरकारों में एक भी मुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री कोई शिया मुसलमान कभी क्यों नहीं बना? यहां तक कि शिया मुसलमानों की बहुलता वाले कश्मीर तक में भी कोई शिया मुसलमान आज तक मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सका ? केवल भाजपा सरकारों में शिया मुसलमानों को यह पद मिलते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत में शिया मुसलमानों की संख्या सिक्खों और ईसाइयों की तुलना में बहुत ज्यादा है। लेकिन देश और राज्यों में अब तक बनी सैकड़ों सरकारों में कैबिनेट और राज्यमंत्री बने सिक्खों और ईसाइयों की संख्या बहुत भारी है। शिया और सुन्नी एक ही हैं, दोनों में कोई मतभेद नहीं कहने वाले धूर्तों को यह याद दिलाना बहुत जरूरी है कि भारत में हुए सैकड़ों शिया सुन्नी दंगों का रक्तरंजित इतिहास बहुत भयानक और पुराना है।इसके अतिरिक्त कोई बोहरा, अहमदिया, अहले हदीस, कादियानी मुसलमान देश और राज्यों में अब तक बनी सैकड़ों सरकारों में कैबिनेट और राज्यमंत्री क्यों नहीं बन सका ?
यह तो केवल एक उदाहरण मात्र है जिससे ओवैसी, अखिलेश, कांग्रेस तथा तमाम विपक्षी दल और न्यूज चैनल चोरों की तरह मुंह चुराते हैं। इस संगीन सवाल पर बात नहीं करते।
चुनावी टिकटों के बंटने पर यही नेता और न्यूज चैनल यह प्रपंच क्यों नहीं करते ? कि ऊंची जाति के कितने सैयद, शेख, मुग़ल और पठान मुसलमानों को टिकट मिला ? दलित वर्ग के हलालखोर, हसनती, लाल बेगी, मेहतर, नट, गधेरी आदि अरजाल मुसलमानों को कितने टिकट मिले ? पिछड़ी जाति के दर्जी, धोबी, धुनिया, गद्दी, फाकिर, हज्जाम (नाई), जुलाहा, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली आदि जातियों वाले अजलाफ मुसलमानों को कितने टिकट मिले ?
लेकिन अब यह सवाल सोशल मीडिया में उठाए जाने चाहिए, इसकी शुरुआत जोर-शोर से करनी चाहिए।
सेक्युलरों की सर्वाधिक प्रिय BBC में एक सर्वे रिपोर्ट मई 2016 में प्रकाशित हुई थी। उस रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2014 से अप्रैल 2015 के बीच उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों के 7,000 से ज़्यादा घरों का सर्वेक्षण किया गया था। उस सर्वेक्षण के कुछ निष्कर्ष इस प्रकार थे :
• ‘दलित मुसलमानों’ के एक बड़े हिस्से का कहना है कि उन्हें गैर-दलितों की ओर से शादियों की दावत में निमंत्रण नहीं मिलता, यह संभवतः उनके सामाजिक रूप से अलग-थलग रखे जाने के इतिहास की वजह से है!
• ‘दलित मुसलमानों’ के एक समूह ने कहा कि उन्हें गैर-दलितों की दावतों में अलग बैठाया जाता है, इसी धर्म के एक और समूह ने कहा कि वह लोग उच्च-जाति के लोगों के खा लेने के बाद ही खाते हैं। बहुत से लोगों ने यह भी कहा कि उन्हें अलग थाली में खाना दिया जाता है।
• करीब 08 फ़ीसदी ‘दलित मुसलमानों’ ने कहा कि उनके बच्चों को कक्षा में और खाने के दौरान अलग-अलग पंक्तियों में बैठाया जाता है।
• इसी धर्म कम से कम एक तिहाई लोगों ने कहा कि उन्हें उच्च जाति के कब्रिस्तानों में अपने मुर्दे नहीं दफ़नाने दिए जाते, वह या तो उन्हें अलग जगह दफ़नाते हैं या फिर मुख्य कब्रिस्तान के एक कोने में।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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