यौन उत्पीड़न का मामला: कलकत्ता हाईकोर्ट ने विश्व भारती विश्वविद्यालय पर प्रोफेसर के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के संबंधित मामले में जवाब दाखिल नहीं करने में विफल रहने पर 10 हजार रूपए का जुर्माना लगाया

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यौन उत्पीड़न का मामला: कलकत्ता हाईकोर्ट ने विश्व भारती विश्वविद्यालय पर प्रोफेसर के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के संबंधित मामले में जवाब दाखिल नहीं करने में विफल रहने पर 10 हजार रूपए का जुर्माना लगाया

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⬛कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने शुक्रवार को विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के अधिकारियों पर यौन उत्पीड़न के आरोपों के आधार पर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने से संबंधित मामले में जवाब दाखिल करने में विफल रहने पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया। न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य ने शुक्रवार को कहा कि ऐसा करने के लिए तीन पूर्व अवसर दिए जाने के बावजूद विश्वविद्यालय अपना हलफनामा दाखिल करने में विफल रहा है।

कोर्ट ने आदेश में दर्ज किया,

???? “विश्वविद्यालय को 25 सितंबर, 2020 के आदेश से दो सप्ताह के भीतर अपना हलफनामा दाखिल करना था। हलफनामा दाखिल करने का समय 6 जनवरी, 2021 के एक अन्य आदेश द्वारा बढ़ाया गया था। नए आदेश के तहत विश्वविद्यालय को 20 जनवरी, 2021 के भीतर अपना हलफनामा-इन-विपक्ष दाखिल करना था।” कोर्ट ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों को तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और अधिकारियों को दो सप्ताह के भीतर भारत सेवाराम संघ, कोलकाता को 10,000 रुपये का जुर्माना भुगतान करने का आदेश दिया।

✡️ याचिकाकर्ता को इसके बाद दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया गया। बेंच ने निर्देश दिया, “विश्वविद्यालय द्वारा 10,000 रुपये का जुर्माना भुगतान किए जाने की तारीख से तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर किया जाए और तारीख से एक पखवाड़े के भीतर भारत सेवाराम संघ, कोलकाता को भुगतान किया जाए और याचिकाकर्ता, यदि कोई हो, तो इसके बाद के दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करे।” मामले को पांच सप्ताह बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

पूरा मामला क्या है?

????वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता सुदीप्त भट्टाचार्य विश्वभारती विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र और राजनीति विभाग के प्रोफेसर हैं। विश्वविद्यालय और उसके कुछ अधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए उनके खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए हैं और उसके बाद एक जांच की गई। 6 अगस्त, 2020 को, जांच समिति के सदस्यों में से एक, जिसके समक्ष याचिकाकर्ता पेश हुआ, ने लिखित में शिकायत की थी कि याचिकाकर्ता ने किसी भी प्रश्न का जवाब देने के बजाय कथित तौर पर बंगाली भाषा में कहा था, “मैं आपके साथ एक सुखद बातचीत (खोस गोलपो) से संतुष्ट हूं। “
इसके बाद, इस तरह की शिकायत के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ यौन उत्पीड़न की कार्यवाही शुरू की गई थी।

????उच्च न्यायालय ने 25 सितंबर, 2020 के आदेश में उक्त शिकायत से उत्पन्न होने वाली यौन उत्पीड़न की किसी भी कार्यवाही पर 8 सप्ताह की अवधि के लिए रोक लगा दी थी, यह देखते हुए कि शुरू की गई यौन उत्पीड़न की कार्यवाही ‘बिल्कुल हास्यास्पद’ है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। बंगाली शब्द ‘खास गोलपो’ का शब्दकोष अर्थ “एक सुखद बातचीत, एक मनोरंजक कहानी” है।

❇️हाईकोर्ट ने 25 सितंबर, 2020 को आदेश में आगे दर्ज किया था, “शिकायत यह भी इंगित नहीं करती है कि सुखद बातचीत की उक्त मनोरंजक बातचीत किसी अनुचित इशारे या अभिव्यक्ति या अन्यथा के साथ बनाई गई है। इसलिए, यह न्यायालय के लिए पूर्व दृष्टया स्पष्ट है कि किसी भी तरह की कल्पना से यह शब्द किसी भी तरह से यौन उत्पीड़न नहीं हो सकता है।” शुक्रवार को न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने 25 सितंबर, 2020 को जारी अंतरिम आदेश को 14 मार्च, 2022 तक बढ़ा दिया।

केस का शीर्षक: सुदीप्त भट्टाचार्य बनाम विश्व-भारती एंड अन्य
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अर्का मैती पेश हुईं। यूनिवर्सिटी की ओर से एडवोकेट एमोन भट्टाचार्य पेश हुए।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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