नुमाइश में इस बार फीका रहा जलसे का रंग – रिपोर्ट शुभम शर्मा

नुमाइश में इस बार फीका रहा जलसे का रंग – रिपोर्ट शुभम शर्मा
अलीगढ़ – जलसे की शुरुआत में दावा किया जा रहा था कि इस बार के सभी कार्यक्रम खास होंगे। जनता को जलसे जोड़ा जाएगा। वीवीआईपी कल्चर की व्यवस्था खत्म होगी। कम से कम खर्च में ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम होंगे और स्थानीय प्रतिभाओं को भरपूर मौका मिलेगा, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी अफसर कोहिनूर के आनंद तक सिमटे रहे। नुमाइश की जरूरत को न किसी ने पहचानने की कोशिश की औ न कुछ नया करने पर विचार हुआ। बड़े अफसरों ने तो दिलचस्पी ही नहीं ली। हर दिन पानी की तरह लाखों रुपये जरूर खर्च किए गए, लेकिन इस बात पर किसी मे ध्यान नहीं दिया कि शहर के लोगों को इससे कैसे जोड़ा जाए? गंगा जमुनी तहजीब की पहचान को और कैसे बढ़ाया जाए। अगर आने वाले दो तीन साल और यही हाल रहा तो जलसे के इतिहास पर ही संकट आ सकता है। केवल मनोरंजन के लिए बजट को इस तरह उड़ाना ठीक नहीं है। शहर का मशहूर सालना जलसा अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। अगर अब तक के हाल को देखा जाए तो यह साल दुकानदारों के लिए काफी दर्द भरा रहा है। पहले दुकानदारों की इच्छा जाने बिना बे-मौसम जलसे का आयोजन थोपा गया। फिर, कोरोना की तीसरी लहर ने दस्तक दे दी। इससे पुलिस-प्रशासन ने रात 11 बजे तक दुकानों को बंद कराना शुरू कर दिया। रिम-झिम बारिश ने भी खूब काम बिगाड़ा। अब अंतिम समय में तमाम दुकानदारों के सामने किराए और अन्य खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है। वहीं, कार्यक्रम आयोजको की इस बार खूब मौज रही हैं। अफसरों ने छोटे-छोटे कार्यक्रमों पर भी आंख बंद कर नोट उड़ाए। कोहिूनर के साथ कृष्णांजलि मंच के लिए बड़े स्तर पर पैसा खर्च हुआ। जिस कार्यक्रम को ढाई लाख में कराया जा सकता था, उसके लिए पांच लाख तक दिए गए। राजनीतिक दवाब के चलते न चाहते हुए भी अफसरों को यह धनराशि देनी पड़ रही थी।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks