वर्तमान विधायकों की टिकट काटिए लेकिन यह भी ध्यान रहे?

भारतीय जनता पार्टी में यह चर्चा काफी दिनों से चल रही है कि जिन विधायकों ने अपने क्षेत्र की जनता को संतुष्ट नहीं किया है अथवा जो विधायक जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं उनकी टिकट आगामी विधानसभा 2022 के चुनाव में काटी जाएगी। विगत विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तान में वोट बटोरने वाले नेता सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही थे, जिनके नाम पर भारतीय जनता पार्टी ने जिसको भी टिकट दे दिया वही विधायक चुनकर पहुंच गया और पांच वर्षों से सभी शासकीय सुविधायें और ऐशो आराम कर रहा है। बहुत से विधायकों ने अपने क्षेत्र में पांच वर्षों में 5 ऐसे विकास कार्य नहीं किये जिनको वे अपनी उपलब्धि बताकर जनता के बीच जाकर गर्व से वोट मांग कर जीत सकें। अन्य पार्टियों की भांति भारतीय जनता पार्टी के विधायक भी जनहित को परे रखकर स्वार्थ में लिप्त हैं। यदि दूसरी राजनैतिक पार्टियां जिनमें सपा और बसपा पर जातिवादी और परिवारवादी राजनीति करने का आरोप भारतीय जनता पार्टी के छोटे से लेकर वरिष्ठ नेता तक लगाते हैं, क्या उन्होंने कभी अपने गिरेबान में छांक कर देखा है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को छोड़ दिया जाये तो ऐसा कौन सा भाजपा का नेता है जिसके घर के सभी सदस्य पार्टी की राजनीति करते-करते सांसद, विधायक, मंत्रिमंडल में मंत्री, जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख आदि पदों पर नहीं बैठे हैं। चाहे पूर्व मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव के परिवार को देख लीजिए या अभी हाल में ही दिवंगत हुए रामभक्त आदरणीय, माननीय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह के परिवार को देख लीजिए। यह तो मात्र उदाहरण है कि इन परिवारों के लगभग सभी व्यक्ति सांसद, विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री पीढ़ी दर पीढ़ी बनते चले आ रहे हैं। यही नहीं हाथरस के लोकप्रिय विधायक रामवीर उपाध्याय चाहे किसी भी पार्टी से चुनाव लड़े उनकी जीत अब तक निर्धारित रही है। उन्होंने हाथरस जनपद का निर्माण ही अपने कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती से कराया था। लेकिन उनका पूरा परिवार भी राजनीति कर रहा है। टिकट वितरण में अभी बिलम्ब है भारतीय जनता पार्टी ही नहीं सभी राजनैतिक दलों को नये चेहरों को चुनाव मैदान में उतारना चाहिए क्योंकि जितने भी पूर्व विधायक अथवा वर्तमान में विधायक हैं वे अपने परिवार के पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे राजनीतिक कारोबार को ही आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं अब जनसेवा तो उनके खून में है ही नहीं। वे पार्टी के वोट बैंक और धनबल के कारण चुनाव जीतते आ रहे हैं। लगभग सभी पार्टियां घोड़ों की दौड़ प्रतियोगिता की भांति पुराने प्रत्याशियों को ही मैदान में उतार देती हैं मजबूरन वहीं जीत जाता है जिसे जनता नहीं चाहती। सभी दलों के पूर्व में रहे विधायकों से जनता को किसी भी तरह की उम्मीद नहीं है, क्यांेकि ये पूर्व में ही सिवा अपने और परिवार की भलाई का कोई कार्य नहीं कर सके हैं। वे सिर्फ चुनाव में विजयी होकर अपनी गलत तरीकों से कमाई सम्पत्ति की रक्षा करने तथा उसमें गलत तरीकों से ही और अधिक वृद्धि करने में लगे रहते हैं। कई राजनैतिक पार्टियां टिकट काटने के नाम पर दिखावा करते हुए इतना ही करती हैं कि कभी बड़े भाई को टिकट दे दिया तो कभी छोटे भाई को टिकट दे दिया। ये विधायक बन भी जाते हैं तो उनका डीएनए तो एक ही रहता है जो कभी जनसेवा का नहीं रहा। अगर जनसेवा न करने के आरोप में किसी भी विधायक अथवा पूर्व विधायक की टिकट काटी जाये तो उस राजनीतिक दल को यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि टिकट किसी नये लोकप्रिय व्यक्ति को ही मिलनी चाहिए न कि पूर्व में रहे विधायक अथवा वर्तमान में विधायक के ही परिवार के किसी अन्य पुरूष अथवा स्त्री को टिकट बांटकर सिर्फ टिकट काटने का दिखावा किया जाये। दूसरे दलों से आने वाले नाकारा लोगों को भी टिकट देकर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, अतः सभी राजनीतिक पार्टियों को लम्बे समय से पार्टी की सेवा करने वाले अपने ही कार्यकर्ता को टिकट देकर उस पर जीत का भरोसा करना चाहिए। किसी भी अन्य दल से आये पूर्व सांसद अथवा विधायक के इतने समर्थक नहीं होते कि वह अपने बल पर चुनाव जीत सके। बहुत ही कम लोग होते हैं जो निर्दलीय चुनाव जीतते हैं। निर्दलीय चुनाव जीतने वाले अपनी क्षेत्रीय जनता की सेवा में दिन-रात सक्रिय रहते हैं जो आज सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं में जनसेवा देखने को नहीं मिलती।