क्या गृहयुद्ध और मानवसंहार खड़े करवाते भगवों से हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं?

क्या गृहयुद्ध और मानवसंहार खड़े करवाते भगवों से हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं?
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कल सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश को एक चिट्ठी लिखी कि हरिद्वार और दूसरी जगहों पर एक धर्म को निशाना बनाकर मानवसंहार का जो फतवा दिया जा रहा है, उस पर अदालत खुद होकर कार्यवाही शुरू करे। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट को खुद होकर यह बात सूझनी थी और उत्तर प्रदेश सरकार सहित ऐसी तथाकथित धर्म संसद के आयोजकों को नोटिस जारी करना था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी शायद क्रिसमस के आसपास की छुट्टियों पर थे। बेहतर तो यह होता कि मुख्य न्यायाधीश जहां थे वहीं से वे टेलीफोन पर उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के नाम नोटिस जारी करते और वहीं बैठकर सुनवाई शुरू कर देते तो उससे अदालत की सोच की गंभीरता देश को पता लगती और देश के उन अल्पसंख्यक मुस्लिम लोगों के मन में एक भरोसा कायम होता जिन्हें आज खुला निशाना बनाया जा रहा है और जिन्हें मारने के लिए फतवा दिया जा रहा है। इससे देश के उन हिंदुओं के मन में भी भरोसा कायम होता जो हिंदू धर्म का नाम लेकर ऐसे हत्यारे फतवे देने वाले लोगों के साथ नहीं हैं, जो अमनपसंद हैं और जो सर्वधर्म सम्मान करने वाले हिन्दू हैं।

आज हिंदू धर्म के नाम पर भगवा कपड़े पहने हुए कई किस्म के मुजरिम और कई किस्म के नफरतजीवी चारों तरफ सक्रिय हैं और कल जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को यह चिट्ठी पहुंची हुई होगी, उस वक्त छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक तथाकथित धर्म संसद चल रही थी जो सांप्रदायिक हरकतें झेल रहा है। छत्तीसगढ़ देश के बीच सांप्रदायिक सद्भाव का एक टापू सरीखा रहते आया है लेकिन यहां भी कुछ हफ्ते पहले कबीरधाम नाम के जिले में कवर्धा नाम के शहर में कबीर की तमाम नसीहतों के खिलाफ जाकर एक सांप्रदायिक हिंसा भड़की और उसे और अधिक भड़काने के लिए कोशिशें जारी ही हैं. इसी दौरान कल के इस आयोजन में एक भगवे ने गांधी को गालियां बकते हुए माइक और मंच से ही गोडसे को इसके लिए धन्यवाद दिया कि उसने गांधी को निपटा दिया। गांधी को आमतौर पर इतनी गंदी गाली गोडसेपूजक भी नहीं देते हैं जितनी कि कल इस भगवे ने दी। आधी रात एक रिपोर्ट पर इस भगवे के खिलाफ जुर्म कायम हुआ है, लेकिन उसके पहले इस धर्म संसद में शामिल, छत्तीसगढ़ में हिंदू धर्म के एक सबसे प्रमुख व्यक्ति महंत रामसुंदर दास ने उसी आयोजन में शामिल रहते हुए इस भाषण का विरोध किया और इसका बहिष्कार किया। यह कम हौसले की बात नहीं थी क्योंकि महंत रामसुंदर दास की सारी जमीन ही हिंदू धर्म पर टिकी हुई है, और वे कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक भी हैं, और राज्य की गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष भी हैं. ऐसे में उनकी दोहरी जिम्मेदारी बनती थी क्योंकि कांग्रेस सरकार का कोई मंत्री स्तर दर्जा प्राप्त पूर्व विधायक अगर ऐसी सांप्रदायिकता के विरोध में खड़ा नहीं होता तो पार्टी और सरकार पर कई किस्म की तोहमतें भी लगतीं।

हमारा ख्याल है कि छत्तीसगढ़ सरकार को एक मिसाल कायम करनी चाहिए और ऐसी हिंसक बातें करने वाले के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जुर्म दर्ज करके कार्रवाई करनी चाहिए ताकि उत्तर प्रदेश को भी एक सबक मिल सके कि देश में गृह युद्ध छिड़वाने का काम जो लोग कर रहे हैं, उन लोगों पर कैसी कार्रवाई की जानी चाहिए। देश में वैसे तो संघीय व्यवस्था है और राज्य अपने-अपने दायरे में अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन लोकतंत्र का इतिहास बताता है कि बहुत से मामलों में किसी राज्य को आगे बढ़कर एक मिसाल कायम करनी होती है जिससे कि और राज्य भी सबक ले सकते हैं। यह ऐसा ही एक मौका है और छत्तीसगढ़ को एक लोकतांत्रिक जिम्मेदार रुख दिखाना चाहिए और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। आज के माहौल में एक धर्म की बात करते हुए एक धर्म के नाम पर इकट्ठा होकर गांधी को इस तरह से गालियां देना, गोडसे की पूजा करना, और दंगा फैलाने की कोशिश करना, इसे छोटी हरकत मानना गैरजिम्मेदारी होगी यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का है और छत्तीसगढ़ सरकार को बेधड़क कार्रवाई करनी चाहिए।

आज हिंदुस्तान को और खासकर उत्तर भारत को केंद्र में रखकर उस प्रदेश में, और देश भर में जिस तरह की नफरत फैलाई जा रही है वह छोटी बात नहीं है. इससे चुनाव में एक धार्मिक ध्रुवीकरण तो हो सकता है इससे धर्मांध और बेवकूफ तबकों को एकजुट किया जा सकता है, लेकिन यह सिलसिला देश के भीतर एक तबाही लेकर आएगा यह बात तय है। लोगों को इस बात को भी याद रखना चाहिए कि अभी देश के कुछ बहुत जिम्मेदार रिटायर्ड फौजियों ने एक बयान जारी करके इस खतरे को गिनाया है कि देश के भीतर ऐसे हालात खड़े करना, इतनी नफरत फैलाना, यह राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक खतरा है। उस बयान को भी ध्यान से देखा जाना चाहिए, और कायदे की बात तो यह होती कि सुप्रीम कोर्ट इस बयान को देखते ही नींद से जागता, और हरिद्वार जैसी धार्मिक नगरी से धार्मिक हिंसा से एक धर्म को खत्म कर देने के मानवसंहार के जो खतरे दिए गए थे, उन वीडियो पर सबसे कड़ी कार्रवाई करता, लेकिन देश को बांट देने की आग रखने वाले ऐसे वीडियो ने भी सुप्रीम कोर्ट को विचलित नहीं किया, रिटायर्ड फौजी अफसरों की नसीहत को भी उसने अनसुना कर दिया, और सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने कल जो लिखा है उस पर भी अब तक सुप्रीम कोर्ट का कोई रुख सामने नहीं आया है। यह सिलसिला बहुत खतरनाक है. सुप्रीम कोर्ट के पिछले कुछ महीनों के ताजा रुख को देखते हुए मौजूदा मुख्य न्यायाधीश से हिंदुस्तानी लोकतंत्र को कुछ उम्मीदें बंध रही हैं। ऐसी उम्मीदें भी हरिद्वार से शुरू नफरत की आग को देखते हुए अब निराश हो रही हैं।

यह मौका हिंदुस्तान के बाकी उन लोकतांत्रिक प्रदेशों का भी है जो कि सोशल मीडिया पर फैल रहे ऐसे वीडियो को देखते हुए, ऐसे भाषणों को देखते हुए, हरिद्वार से लेकर रायपुर तक लगाई जा रही आग को देखते हुए, ऐसे नफरतजीवियों के खिलाफ जुर्म दर्ज कर सकते हैं। देश के प्रदेशों को अपने-अपने प्रदेशों में खतरा समझना चाहिए और सांप्रदायिकता को देखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जुर्म दर्ज करने चाहिए क्योंकि हरिद्वार का आयोजन तो उत्तर प्रदेश के अतिथि सत्कार के बीच हुआ था जहां की सरकार इन लोगों पर मेहरबान है, और शायद इनका चुनावी इस्तेमाल भी कर रही है, लेकिन देश के सभी प्रदेशों को जिन्हें देश के सांप्रदायिक सद्भाव की फिक्र है, उन सभी को सोशल मीडिया पर और खबरों में तैरते हुए ऐसे वीडियो देखकर अपने अपने प्रदेश की शांति व्यवस्था के हित में इन लोगों पर जुर्म दर्ज करने चाहिए, इन पर कड़े से कड़े कानून लगाने चाहिए और देश को एक बहुत बड़े और खूनी सांप्रदायिक विभाजन से बचाना चाहिए। यह खतरा छोटा नहीं है, यह खतरा आज सोच-समझकर देश में जगह-जगह खड़ा किया जा रहा है, और इसके खिलाफ अगर मुमकिन हो तो हिंदू धर्म के कुछ जिम्मेदार लोगों को भी अदालत जाना चाहिए कि हिंदू धर्म के नाम पर जो हिंसा और नफरत फैलाई जा रही है वह उनकी धार्मिक भावनाओं को जख्मी कर रही है, और ऐसे भगवे लोगों के खिलाफ कारवाई की जाए, उनका मुंह बंद किया जाए। इन लोगों ने सोच-समझकर और एक साजिश के तहत देश में गृह युद्ध फैलाने की जितनी कोशिशें की हैं, और जो कर रहे हैं, इनकी बाकी पूरी जिंदगी अगर जेल में कटे तो भी वह इनके साथ रहमदिली होगी। Sunil Kumar

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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