जीवटता, हिन्दी अनुराग और काव्य सृजन श्लाघनीय

एटा।वरिष्ठ गीतकार उमाकांत शर्मा के मध्य जो शख्सियत है उसका नाम है वीरेन्द्र लवानिया वीर ।
लवानिया जी भले दिव्यांग हो ,जुबान तुतलाती हो आँखें देखने से लाचार हों किन्तु उनकी जीवटता, हिन्दी अनुराग और काव्य सृजन श्लाघनीय है। एटा की धरती पर बलवीरसिंह रंग से लेकर अब तक आपने कई साहित्यिक पीढियों के साथ समय बिताया है। प्रस्तुत हैं उनकी बहुचर्चित काव्य पंक्तियां-
1.
लोग जब जीने न दें,जहर भी पीने दे
समझ लो गुनगुनाने का समय है।
लोग कुछ कहने भी न दें,मौन भी रहने न दें
तो समझ लो गीत गाने का समय है।

2.
आस्था भी घट रही हो
विषमता भी बढ़ रही हो
तो समझ लो सुधा पाने का समय है।
जिन्दगी लेकिन बड़ी हो,
मौत जब पीछे पड़ी हो,
तो समझ लो पग बढ़ाने का समय है।
●वीरेन्द्र लवानिया वीर

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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