पुलिस हमारे सिस्टम के लिये बेहद अहम है, आखिर लॉ एंड आर्डर को बनाऐ रखना उनके ही हाथ में हैं। लेकिन आज पुलिस की जो कार्यशैली है वो स्वीकार योग्य नही हैं। आप कितने भी सभ्य और इज्जतदार व्यक्ति हैं पुलिस आपकी कब इज्जत तार—तार कर दे कोई नही कह सकता। आप कितने भी निर्दोष हो पुलिस कब आपको गोली मार दे कोई नही कह सकता।

हमने बीते कुछ दिनों में कितने ही मामले देखे हैं, हमारा एटा भी इससे अछूता नही रहा है। कुछ समय पहले एक ढ़ाबे से कुछ लोगों को उठाकर जेल भेजने का मामला देख ही चुके हैं। अभी कल की बात है नगर कोतवाल साहब ने एक वरिष्ठ पत्रकार बबलू चक्रवती के साथ अभ्रदता तो की ही साथ में बाइक छीन ली। मित्र पुलिस का ऐसा रवैया कतई स्वीकार योग्य नही हैं। बबलू चक्रवती जनपद के ऐसे पत्रकार हैं जिन्होने पत्रकारहित के लिये कई लड़ाइयॉं लड़ीं हैं और जीती भी हैं। वो कोई चोर—उच्चके नही हैं, कोई शराब माफिया नहीं हैं और न ही सट्टे की खाई बाड़ी करते हैं। हां इन सब के खिलाफ पुरजोर आवाज जरूर उठाते हैं, शायद यही वजह रही हो कोतवाल साहब की खुन्नस की।
शहर में सट्टा चालू हैं, चोरियां बढ़ रही हैं, लूट खसोट चालू हैं लेकिन वो किसी को नही दिख रही। पुलिस को दिखते हैं तो सिर्फ राह चलते राहगीर जो देर रात किसी काम से जा रहे होते हैं तो उन्हे रोककर पूंछताछ के नाम पर अभ्रदता की जाती है। पुलिस को दिखते हैं कवरेज करते पत्रकार, जिनसे उनकी बाइक छीन ली जाती है और एनकांउटर की धमकी देती है। पुलिस को दिखते हैं ढ़ाबे पर खाना खाते लोग, जिनको उठाकर बंद कर देती है और कहती है कि नशीला पदार्थ मिला था इनके पास से।
सरकार की कोशिश रहती है कि पुलिस मित्र की तरह काम करे। जनता में पुलिस का भय न हो, आपसी समन्वय हो, लेकिन सरकार के चाहने से क्या होता है। सरकार तो बहुत कुछ चाहती है। अगर पुलिस का यही अंदाज रहा तो लोग अपराधियों से ज्यादा पुलिस से डरेंगे, सड़को पर ड़र पसरा होगा, लोग खाकी देखकर रास्ता बदल देंगे। गाड़ी के सायरन की आवाज सुनकर अपने घर के खिड़की दरवाजे बंद करने लगेंगे।
मैं यह नही कह रहा हूं कि सब पुलिस वाले ऐसे हैं, लेकिन ज्यादातर ऐसे ही हैं। असल में पुलिस को जरूरत है रिफॉर्म की। पूरे सिस्टम को सुधार की जरूरत है। हां ये थोड़ा मुश्किल जरूर है। लेकिन ये होना बहुत जरूरी है। मैं जब हॉलीबुड की फिल्मे देखता हूं तो वहां कि पुलिस से प्यार हो जाता है, मुझे नही पता कि वास्तव में पुलिस हॉलीबुड की फिल्मों जैसी होती है, लेकिन पुलिस को वैसा ही होना चाहिये।
बस इतनी सी बात थी जो कहनी थी, कह दी। अगर कोई पुलिस वाला इस पोस्ट को पढ़ रहा हो तो उसके लिये एक छोटा सा मैसेज — जिस आम आदमी को तुम जब चाहो लाठी मार देते हो न, वो खून पसीने से कुछ पैसे कमाता है और शाम को आंटा लेकर आता है जिस पर वह टैक्स देता है, फिर उसी टैक्स से महीने की एक तारीख को तुम्हारे खाते में सैलरी क्रेडिट होती है तब तुम्हारे घर का चूल्हा जलता है। आगे से लाठी मारने या बदतमीजी करने से पहले ये ऊपर की लाइन याद कर लेना, शायद तुम्हारा इरादा बदल जाऐ।