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शादी के लिये मुस्लिम, नौकरी के लिए दलित

क्रूज़ ड्रग केस के कई पहलू हैं। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अफसर समीर वानखेड़े प्रचार प्रिय शख्स हैं। हीन भावना से भरा हुआ आदमी अटेंशन सीकर हो जाता है। फिल्म वालों से उसे जैसे निजी खुन्नस है। जब ये कस्टम ऑफिसर था, तब भी फिल्म वालों को परेशान करता था। उसे पता था कि फिल्म वालों को परेशान करने से पब्लिसिटी मिलती है। रणवीर कपूर गलत लाइन से निकल रहे थे तो इसने पचास हजार से ज्यादा जुर्माना वसूला था। शाहरुख को भी इसने दस साल पहले एयरपोर्ट पर घंटे भर सताया था। समीर वानखेड़े की शक्ल-सूरत, कद-बुत और पारिवारिक बैकग्राउंड देखकर हम अंदाजा लगा सकते हैं कि हीन भावना की वजह क्या-क्या हैं।
बाप डेढ़ श्याना है। नाम है ज्ञानदेव वानखेड़े। जब मुस्लिम महिला से प्रेम विवाह किया तो नाम दाउद रख लिया। आधिकारिक घोषणा नहीं की कि मैं धर्म बदल रहा हूं। कह दिया होगा कि सरकारी नौकरी में हूं, नौकरी का सवाल है। भोले मुसलमान इसी पर मान गए कि उसने कलमा पढ़ लिया। बेटियां पैदा हुईं तो उनका नाम पूरी तरह मुस्लिम रखा। बेटियों का क्या है, वो तो दूसरों के घर ब्याहेंगी। मगर बेटा पैदा हुए तो नाम रखा समीर जो हिंदू मुसलमान दोनों जगह कॉमन है। साथ ही उसे बेटे को एससीएसटी का लाभ भी दिलाना था। बेटे का नाम सलमान, वाहिद, अब्दुल रखता तो बेटे को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। बेटे के जन्म प्रमाण पत्र पर मगर मां ने अस्पताल में नाम लिखाया समीर पिता दाऊद वानखेड़े। याद रहे कि मुसलमान होने पर सरनेम नहीं बदलता। मुसलमानों में चौहान भी होते हैं, चौधरी भी। अब वानखेड़े भी।
बहरहाल बेटे ने यह सारी चालाकियां पिता से सीखीं। आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी भी पाई और मुस्लिम लड़की से शादी भी की। यानी समीर वानखेड़े दलित बन कर दलितों का लाभ भी लेता रहा और मुसलमानों से रोटी बेटी का रिश्ता भी रखता रहा। उसकी दूसरी बीवी क्रांति रेडकर ने माना है कि उसने मुस्लिम लड़की से शादी की और कभी अपना धर्म ऑफिशियली नहीं बदला। ऑफिशियली धर्म बदलने से उसका आशय है कि समीर ने कभी अखबार में यह विज्ञापन नहीं छपाया कि मैं समीर वानखेड़े मुस्लिम धर्म अपना रहा हूं और आगे से मेरा नाम यह होगा। उसका नाम उसे दोनों तरफ से स्वीकार्य बनाता था। बहरहाल समीर को इसकी ज़रूरत भी नहीं थी क्योंकि यह ऐलान खुद धर्म परिवर्तन करने वाले को करना होता है। मुस्लिम बाप की मुस्लिम औलाद अगर मुस्लिम नाम से विवाह कर रही है, तो मुस्लिम ही होगी। अब मुंबई पुलिस सारी पर्तें खोलेगी और एससीएसटी का गलत फायदा उठाने का केस तो लगाएगी ही।
जहां तक आर्यन का सवाल है समीर वानखेड़े ने उसका मेडिकल टेस्ट इसलिए नहीं कराया क्योंकि आर्यन को क्रूज़ पर कदम रखते ही पकड़ लिया गया। यह पूरी रेड ही आर्यन के लिए की गई और इसमें मुखबिर का काम किया किरण गोसावी ने, जो अब पुणे पुलिस की हिरासत में है और जल्द ही उस आर्थर रोड जेल में जाएगा, जिसमें आर्यन अब तक है। आर्यन के दोस्त के पास छह ग्राम चरस बरामद हुई। इस पर उसने केस बनाया ड्रग के व्यापार का। सोचिए कितना हास्यास्पद है कि शाहरुख खान का बेटा क्रूज पर ड्रग बेचने गया था। कितनी ड्रग लेकर? छह ग्राम चरस। इस मामले में दूसरे तीसरे दिन ही ज़मानत हो रही थी, मगर फिर कही ऊपर से आदेश आया कि शाहरुख के बेटे को लपेटा जाए। बड़ी धाराएं लगाई जाएं। सो एक दिन का रिमांड मांगने के बाद अचानक घटनाक्रम बदलने लगा।
जब महाराष्ट्र सरकार को लगा कि ऊपर से इस मामले में दखलंदाजी हो रही है तो उसने नवाब मलिक को उतारा कि समीर वानखेड़े की धुलाई करने का समय आ गया है। नवाब मलिक ने इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाले पत्रकारों की मदद ली और न सिर्फ किरण गोसावी की धज्जियां उड़ा दीं बल्कि भाजपा नेता भानुशाली की भी पोल खोल दी और एक तरह से साबित कर दिया कि ये केस एक षड्यंत्र है। अब रस्साकशी महाराष्ट्र पुलिस और एनसीबी के अफसरों के बीच चल रही है। एनसीबी समीर वानखेड़े के खिलाफ जांच नहीं कर रही, जांच करने का नाटक कर रही है ताकि समीर को बचा सके। जिन अफसरों के आदेश पर समीर दाउद वानखेड़े ने आर्यन के खिलाफ झूठा केस रचा, वो अफसर समीर वानखेड़े को कैसे सज़ा दे सकते हैं। अगर समीर वानखेड़े मुंह खोल देगा तो? एनसीबी की जांच दिखावा है। यह जांच महाराष्ट्र पुलिस और महाराष्ट्र सरकार के डर से की जा रही है। अगर समीर वानखेड़े की गिरफ्तारी होगी तो एनसीबी यही कहेगी कि हमारी जांच तो चल ही रही थी, हम खुद सज़ा देने वाले थे। बेशक मुंबई पुलिस के बड़े अफसर अनौपचारिक रूप से विजिलेंस अफसरों के संपर्क में होंगे और पूछ रहे होंगे कि आप कुछ कर रहे हो तो ठीक है, नहीं तो हमें कुछ करना पड़ेगा।
आर्यन के मामले को दिल्ली में बैठी ताकतों ने ज्यादा उलझवाया। मकसद था ध्यान भटकाना। मुसलमानों को बदनाम करना। ध्रुविकरण करना। शाहरुख को सबक सिखाना क्योंकि शाहरुख खान कभी दिल्ली की सांप्रदायिक ताकतों को भाव नहीं देते। बेशक इसमें वसूली का एंगल भी है। सीबीआई और ईडी के बाद केंद्रीय एजेंसी एनसीबी का रचनात्मक उपयोग होने लगा है, जो इस बार महाराष्ट्र सरकार के प्रतिरोध के कारण भारी पड़ रहा है। आर्यन की ज़मानत के बाद ट्रायल तो चलता रहेगा, मगर देखना यह है कि समीर वानखेड़े को दिल्ली की ताकतें कितना बचा पाती हैं। महाराष्ट्र सरकार भी उदाहरण स्थापित करना चाहती है कि अगर महाराष्ट्र में कोई अफसर दिल्ली में बैठी काली ताकतों के इशारे पर यहां गड़बड़ करेगा, तो उसका अंजाम बुरा होगा। समीर वानखेड़े के मामले से अब यह होगा कि एनसीबी महाराष्ट्र में तो कम से कम गलत कामों से बचेगी। नवाब मलिक एनसीबी के परमानेंट गवाहों की भी छिलाई कर रहे हैं और वो भी बचने वाले नहीं हैं।
जहां तक आर्यन की ज़मानत का सवाल है, बहुत ही रद्दी और फुस्सी केस है। निचली अदालत से भी आराम से ज़मानत हो सकती थी, मगर निचली अदालतें हाई प्रोफाइल मामले में रिस्क नहीं लेतीं। गोदी मीडिया के पत्रकार ऐसे मामले में किसी भी सेशन जज का करिअर तबाह कर सकते हैं। इसी मामले में अन्य कम मशहूर लोगों की ज़मानत सेशन से हुई ही है।