
#यूपीएटा,
खूनी कुँए पैसों से नही पश्चाताप और कर्म से भरे जाते है नाकि मुर्दों के मूल्यों से–
आजकल हर चैनल पर उठती डिवेड मे युद्ध उंगलियां—
मुद्दों की बात कहां हो रही है—
राजनीति की बात कहां हो रही है,
राजनीति की परवरिश कहां —
जनहित की बात कहां हो रही है,
कभी विकास की बात क्यों नहीं होती
गरीब हितकी बात क्यों नही होती क्यों दौड़ पड़ती हर राजनीति पार्टियां बलात्कार,ऐक्सीडेंट, अन्य हादसों की ओर क्या समाज मे सभी सुखी है,क्यों नहीं उठाती है अपोजिट पार्टियां,पैडिंउ मे पड़ी घोषणाओं को जो साढेचार साल से यदाकदा को छोड़कर जुवानों से निकलकर दो कदम नहीं चल रही शहर उजड़े हुये धूल भांक रहे है आदमी के अधिकारों का बंदरबांट हो रहा है क्या अपोजिट पार्टियों को सिर्फ मुर्दों की खाल खीचकर ही वोट मिलता है या जिंदा इंसानों के अधिकारों की भी कभी चिंता होती है किसी भी पार्टी को, समाज मे ऐसे लोग भी है जिनके पास आमदनी का कोई साधन नहीं सरकार के राशन से पलते परिवार,उस राशन को भी समाज के बड़े-बड़े अमीरखाने खा रहे है क्यों नहीं इनकी जाँच करती और गरीब कार्ड बनवाने की पहल करती है,पढे लिखे रिक्शा चला रहे है और फर्जी डिग्रियां मौज मार रही है,दो जाकर किसी भूँखे असहाय और जरूरत मंद की दहलीज पर जाकर धरना जो दुआओं के साथसाथ वोट की फसल भी अच्छी उगेगी पब्लिक की आँखों मे धूलझोकने बाली राजनीति से अब बोरियत होने लगी है क्यों कि पब्लिक सभी की भुक्तभोगी है,मुर्दों से नहीं अपोजिट पार्टियां अगर जनहित को मुद्दा बनाए तो वोट बैंक अच्छी—-खूनी कुँए पैसों से नहीं पश्चाताप और कर्म से भरे जाते है,नाकि मुर्दों के मूल्यों से—-
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।