
इतनी भी महंगाई मत परोसो कि आदमी जिंदगी के साधन जुटाते जुटाते अपराधी ही बन जाए–
गैस सिलेंडर पर आएदिन बढती कीमतें यह सोचने पर बिवस कर रही हैकि ये कीमत अब आम आदमी के उपयोग मे रह गई है,कुछ कम एक हजार का सिलेंडर सच अबतो उज्वला पर सवाल उठता जा रहा है कि फ्री गैस कनेक्शन से अब गरीब खुश होगा जबकि हकीकत यह हैकि अब गरीबों ने सरकार की यह सौगात पुरानी साड़ी मे लपेट कर रखदी है,क्यों कि पहले गरीब को दो बक्त की रोटी जरूरी है आजकल सरकार की दी हुई महंगाई से गरीब क्या बड़े लोगों को खलने लगी है किसी भी चीज का एक ऐसा दायरा तो होना चाहिये जो आदमी के उपयोग मे रहे है सब्जियों की महंगाई ने धीरे-धीरे थाली सूनी करदी जो मजदूर रातदिन मेहनत का काम करता है वह मजदूर दाल के लिये कहने लगा हैकि बरसों बीत गये दाल नहीं खा पाई ये महंगाई आदमी से दूर चीजों को कर रही है आखिर फिर किसके लिये है ये सामान जो आदमी को चिढाने लगा है कुल मिला कर कहा जाए कि सरकार की सौगातें ही कुछ खुशी के बाद आदमी को रुलाने लगी है,महंगाई के चलन मे तरसता मेहनतकस और मौज मारता कुर्सी पर बैठा बड़ा आदमी जो आम आदमी की मानसिकता को खराब कर रहा है अच्छे खाँसे आदमी को लक्ष्य से गुमराह भी कर रहा है,क्यों जहां जिंदगी है वहां अरमानों का होना सौभाबिक है विषय सोचनीय हैकि महंगाई से बडा़ आदमी के लिये कोई और जहरीला डंस नहीं है,यह आदमी की सादगी और नेक सोचपर बुरा प्रभाव छोड़ रही है नई पीढी तो यदाकदा को छोड़कर पूरी तरह बरबाद हो रही है क्यों कि इनकी कच्ची सोच मे आकांक्षाएं बेसुमार है पैसा जीरो प्रतिशत तब यह अपनी पूर्ति के लिये किसी भी हदतक जा रहे है आजकल आप देख रहे हैकि पुलिस के हाथ ऐसे युवा अपराधी लग रहे है जिनके हाथों मे किताबें होनी जाहिये उन हाथों मे हथियार और शराब शबाब है क्या होगा देश का भविष्य जब कर्णधार ही गुनहगार और अपराधी होगें।