
#निहत्थे,और भूँखे बुद्धिजीवी, से हीआखिर सौ सत्य क्यों–
उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश डी,वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बुद्धिजीवियों का कर्तव्य बनता हैकि वे राज्य के झूंठ का पर्दा फाश करें।
पर आज फेंक न्यूज का चलन बढता ही जा रहा है,डब्ल्यूएचओ ने इंफोडेमिक कहा कि सरकारों पर ज्यादा भरोसा अच्छा नहीं, झूंठका पर्दाफाश करें बुद्धिजीवी, सौ सत्य हम उच्चतम न्यायालय की इस बात से पूरी तरह सहमत है,और इस बातसे भी कि झूठ दिनप्रतिदिन ताकतवर होता जा रहा है,यहां भी एक बडी़ बात कहने की कोशिश और हकीकत मे झांकने की पार्दर्शिता हैकि सत्य भी रोटी कपड़ा और मकान और अन्य संसाधनों से पलता है,तब भूँखे प्यासे और निहत्थे सत्य के हर कदम मंजिलों तक पहुंचने का साहस नहीं रखते है बीच सफर मे कुछ पांव कमजोर होजाते तो कुछ कुचल दिये जाते है,तब न सत्ता मिलती है सत्य की परवरिश के लिये न्यायालय पक्षधर बनता है,कि बुद्धिजीवियो के भी अधिकार,और परिवार होते है, सत्य की पहचान भी सत्य का जौहरी ही कर सकता है,जो आजके बदलते परिवेश मे धीरे धीरे कम होता जा रहा है मजबूरियां महंगाई के रूप मे इंसान से इंसानियत को छीनती जा रही है बेवस इंसान कभी कभी अपने से ज्यादा अपनों के लिये टूट जाता है बदल जाता है,तब विषय सोचनी होजाता हैकि बुद्धिजीवियों के लिये सरकारों ने अबतक किया क्या है,चंद अखबारों और चैनलों को—- यूंतो हमारी सरकारों पर मुर्दों के लिये सोने के कफन बहुत है जो श्यमशानों मे सोते बेसुध मुर्दों पर डाल दिये जाते है क्या उस कफन मे सोए हुये उस इंसान को झाँका हैकि कि किस तबाही मे जिंदगी इस कफन तक पहुंची हैकितने अरमानों और नीदों की चिताएं जलाकर वह श्यमशान मे सोने आया है,तब हर न्यायालयों को इन बुद्धिजीवियो के अधिकारों पर भी विषेश ध्यान देना चाहिये, आखिर बुद्धिजीवी अपने मार्ग से कैसे भटक गया भूँख तो हर योनी मे—–तब रोटी की खोज करनी पड़ती है,कैसे और कहां मिलती है यह इंसान और परस्तिथियों पर निर्भर करती है बदलाव तो प्रकृति से लेकर हर जगह ब्याप्त है,जब मेहनत भूँखी कराहती है तो कहर उस खाली पेटमे ही नहीं ढहाती है बहुत कुछ छीन लेती है सत्य को जख्मी करने के बाद यह बात न्यायालय से लेकर सरकारों को अवश्य सोचनी होगी कि सत्य का डिगना बुद्धिजीवियों का भटकना किसी के लिये भी एक तूफान खड़ा करने के बराबर है समय बहुत कुछ कहता रहता पर इंसान अपनेआपको खुदा मान बैठता है,माईबापों का न्याय तो देखो कि सत्य के अधिकार ही पूरी तरह——आजके बदलते परिवेश मे अपराध इतना खतरनाक और भयानक हैकि सत्य को देखते ही गोली मारने की शक्ति रखता है,तब निहत्थे नंगे भूँखे सत्य से आप बेपनाह उम्मीदें क्यों लिये बैठे है अपने कार्यप्रणाली मे क्यों नहीं झाँकते कि भूँख हर जगह ब्याप्त हैऔर अधिकार हर किसी के है यहा