देशकीराजनीतिऔरमुसलमान।” मो. रफीक चौहान (एडवोकेट)

“#देश_की_राजनीति_और_मुसलमान।” मो. रफीक चौहान (एडवोकेट) आज हमारा देश और समाज राजनीतिक हो गया है। मुसलमान इसे स्वीकार करने में जितनी देर करेंगे, नुकसान उतना ही अधिक होगा। आजादी के बाद देश में मुसलमानों पर देश विभाजन का आरोप लगाया जाता ‌रहा, जबकि देश के विभाजन के लिए तत्कालीन परिस्थितियों को दरकिनार नहीं किया जा सकता, वो जो भी रही हों।, लेकिन उन परिस्थितियों की सजा वर्तमान ‌मुसलमानों को दिया जाना न्यायसंगत नहीं हैं। देश का मुसलमान अपने ‌देश के प्रति वफादार है और मरते दम तक रहेगा। कुछ सम्प्रदायिक ताकतों ने पर्दे के पीछे मुसलमानों को फटकार लगाने के लिए अब तक उनके के प्रतिनिधियों ने दंगों की एक अंतहीन श्रृंखला जारी की रखी गई है। नतीजा यह हुआ कि 74 वर्षों के भीतर मुसलमानों को प्रति हीनता की भावना पूरी तरह से बना दी गई। और मुसलमान कम से कम अपनी जान बचाने के लिए कांग्रेस द्वारा फैला ये राजनीतिक जाल में फंस गए। कांग्रेस ने भी मुसलमानों का भरपूर उपयोग किया और उनके वोटों से लगभग पचास वर्षों तक देश पर शासन किया और मुसलमानों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलती रही। सम्प्रदायिक राजनीतिक नेता समय समय पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दंगे करवाते रहे और उन्होने न केवल मुसलमानों का नरसंहार ही कराया बल्कि उनमें भय भी पैदा किया। परिणाम स्वरूप अपनी इच्छा के विरुद्ध अपनी जान बचाने के प्रयास में वो शिक्षा पर भी ध्यान नहीं दे सके और न ही उन्होने अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कोई विशेष प्रयास किया। नतीजतन मुस्लिम धीरे-धीरे देश के सबसे पिछड़े नागरिक बन गए। दूसरी ओर मुस्लिम धार्मिक गुरुओं का भी मुसलमानों के‌ पिछड़ेपन मे‌ं महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने क़ुरआन और उर्दू की शिक्षा को कायम रखने के लिए देश में प्रचलित शिक्षा प्रणाली से आम मुसलमानों को यह करते हुए दूर कर दिया कि यदि तुम हिन्दी पढ़ोगे तो हिन्दू हो जाओगे और इंग्लिश पढ़ोगे तो ईसाई हो जाओगे। नतीजतन आम मुसलमान ने देश में प्रचलित शिक्षा से किनारा कर लिया। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि देश का आम मुसलमान देश की प्रशासनिक व राजनीतिक गतिविधियों से बहुत दूर चला ‌गया। जिसके कारण तत्कालीन राजनीतिक पार्टियों ने धर्मनिरपेक्ष के नाम पर उनका जमकर शोषण किया। इस बीच, बाबरी मस्जिद का मामला खुला और फिर देश का सबसे बड़ा सांप्रदायिक संगठन, जिसके नीम पर कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों को डराने-धमकाने के लिए इस्तेमाल किया, वो अचानक एक राजनीतिक ताकत बन गया और केंद्रीय सत्ता पर कब्जा करने में सक्रिय हो गया। कुछ दिनों तक कांग्रेस ने इस माहौल का फायदा उठाया और सत्ता में बनी रही, लेकिन अब उसकी ताकत कम हो गई थी और खुद मुसलमान भी इस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे। इसलिए वे कांग्रेस के जाल से बाहर निकलने लगे और आखिरकार कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। लेकिन मुस्लिम वोट के कई और शिकारी पहले से ही तैयार थे, इसलिए मुसलमान उनके शिकार हो गए और कई क्षेत्रीय दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों को फिर धोखा देकर और राज्यों में अपनी सरकार बनाकर तथा मुसलमानों के प्रति हमदर्दी भरा रवैया दिखाकर को सत्ता रा सुख भोगते रहे और ‌इस बीच उनकी चांदी बन‌ गई। जब‌ मुसलमान कांग्रेस के साथ था, तब भी वो ऐसा ही था, जैसा की अब और इस दौरान मुसलमानों की बदतर से बदतर हो गई। अब स्थिति यह कि मुसलमानों को यदाकदा भिन्न भिन्न सम्प्रदायिक ग्रुपों द्वारा अकारण मॉबलिचिंग का शिकार बनाया जाने लगा है । आज स्थिति ये है कि मुसलमानों को दंगों में बचाने और उनकी जान बचाने के नाम पर फिर इस्तेमाल किया जाने लगा है, जबकि उनके पड़ोस में बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। आज मुसलमानों के पास ना कोई नौकरी है और ना कोई सुनिश्चित व्यवसाय, आज मुसलमानों को सरकारी लाभों का उचित वितरण नहीं होता। ऐसे मैं सवाल उठता है कि अब मुसलमान करे तो क्या करें? अब समय की मांग है कि मुसलमानों को फिरकापरस्ती से बाहर‌‌ निकल कर शिक्षा, इतहाद और संघर्ष को मुलमंत्र पर अमल करते हुए,‌ पिछली बातों को भूलकर देश और ‌समाज की‌ बेहतरी के लिए प्रयास करना ‌ चाहिए । इसके लिए जरूरी है कि मुसलमानों को अपने बीच के युवाओं को अपना प्रतिनिधित्व करने का अवसर देना चाहिए और देश कि प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर भाग लेना चाहिए । देश में मुसलमान जनसंख्या की दृष्टि से दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, जो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 14% है। जहाँ मुसलमान स्थानीय चुनावों से लेकर संसदीय चुनावों तक यदि चाहें तो अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकते हैं। अब सवाल यह है कि इन प्रतिनिधियों के चयन का निर्धारण कैसे किया जाए? अब शिक्षा और प्रौद्योगिकी के उपयोग का जमाना है, इसलिए हमें अपने प्रतिनिधियों को युवा लोगों के रूप में चुनना होगा जो शिक्षित भी हों और इस्लामी शिक्षा की भी जानकारी रखता हो। जो नवीनतम तकनीक का पूरा उपयोग करना जानता हो और देश की राजनीति और परिस्थितियों की जानकारी रखता हो। वो मुसलमानों के अतीत और वर्तमान के बारे में भी जानते हों और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों की सभी युक्तियों से भी अवगत हो तथा उनका जवाब देने की क्षमता रखते हों। वो सार्वजनिक जीवन में भी सक्रिय हों तथा संगठनात्मक क्षमता से अवगत हों। वो लालची ना होकर, राष्ट्र की समस्याओं को हल करने के लिए अपने जीवन का बलिदान करने की हद तक ईमानदार बनो। अल्लाह का डर उनके दिलों में हो और वो वाक्पटुता और नेक चलनी सा धनी हों। वह धार्मिक संस्थानों से भी जुड़े रहे हैं और देश के राष्ट्रीय संगठनों से भी उसका ‌जुड़ाव हो तथा इनके प्रमुख संरक्षकों को करीब से देखा हो व आधुनिक शिक्षा और तकनीक से भी परिचित हो‌। इसके इलावा राष्ट्रीय राजनीति के हर प्रमुख नेताओं के व्यक्तित्व से परिचित हो। यदि ऐसे युवकों को मुसलमानों द्वारा अपना प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया जाये। तो सम्भव है कि मुसलमान वर्तमान निराशात्मक परिस्थितियों से बाहर आकर देश और समाज को अपना रचनात्मक सहयोग देने‌ में कामयाब होंगे और इससे मुस्लिम समाज नें आया राजनीतिक, आर्थिक व शैक्षिक ठहराव को पाटने के लिए महत्वपूर्ण सहयोग साबित होगा और मुस्लिम समाज में‌ व्याप्त निराशाओं को दूर करने में मदद मिलेगी और राजनीतिक शून्यता, आर्थिक व शैक्षिक पिछड़ेपन की जगह समृद्धि और भरोसे का माहौल पैदा होगा। दोस्तो, यदि पोस्ट अच्छी लगे, तो इससे अधिक से अधिक शेयर करने की मेहरबानी करें।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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