स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

इस पुण्य धरा पर जब जब भी संकट के बादल छाते है, हम मतवाले कुछ करने को ही धरती पर आते है

कला एवं साहित्य की अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती एटा (ब्रज) के तत्वावधान में स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर काव्य घोष्ठी का आयोजन शांति नगर स्थिति विशाल अग्रवाल के आवास पर हुआ।

सर्व प्रथम सरस्वती वंदना का गायन पूनम अग्रवाल द्वारा किया गया। संस्कार भारती के ध्येय गीत साधयति संस्कार भारती भरते नव जीवन का गायन सामूहिक किया गया।

राकेश सिंह ने ‘धरा धाम आलौकिक रचना का दूषित कोना-कोना’ अमरेश चन्द्र शर्मा ने ‘आज यहाँ पर भाई ही भाई के लहू का प्यासा है। माँ वहनों की इज्जत लुटती रक्षक लखे तमाशा है।’ डॉ सुधीर पालीवाल नयन ने ‘रात कुछ अनमनी सी लगती है, आप की वस कमी सी लगती है।’ उमाकांत शर्मा ने ‘इस पुण्य धरा पर जब जब भी संकट के बादल छाते है, हम मतवाले कुछ करने को ही धरती पर आते है।’ अनूम भावुक ने ‘दोष दूसरों में मत ढूंढ़, निरखि निरखि अपने को मूढ़।’ दिनेश प्रताप सिंह चौहान ने ‘जाने यह विद्वान भी रखते कैसे नाम, रसना उसका नाम जो रस चख सके तमाम।’ पूनम अग्रवाल ने ‘मेरा भारत महान’ आचार्य डॉ प्रेमी राम मिश्र ने ‘जो ठोकर खाकर भी जीने की चाहत रखते हैं, वे ही इतिहास रचा करते औरों के प्रेरक बनते हैं।’ डॉ राजेन्द्र सिंह चौहान ने ‘जिनके मुख पर वन्देमातरम बोल कभी ना आते है, भारत माता की जय कहने में भी वो चकराते हैं, ना अधिकार उन्हें रहने का भारत माँ की गोदी में, चुल्लू भर पानी में डूबकर क्यों ना वो मर जाते हैं। राजेश चन्द्र जैन ने ‘सोचिए एक थे क्यूँ विभाजित हुए, बस खबर वन गए और प्रकाशित हुए, कुछ न तुमसे मिला कुछ न हम पा सके, तुम न हारे न हम भी पराजित हुए।’ अशोक कुमार चौहान ने ‘देश प्रेम का मूल्य प्राण हैं, देखें कौन चुकाता है, देखें कौन सुमन शैय्या ताजे, कटक पथ अपनाता है।’ महेश मञ्जुल ने ‘आज़ादी की जंग छिड़ी थी भारत की राजधानी में, जाने कितने लाल हुए थे सामिल इस कुर्वानी में।’ में कविता पढ़ी।

इस अवसर पर प्रान्त कार्यकारी अध्यक्ष मुकेश मिश्र, विभाग संयोजक मयंक तिवारी, जिला संयोजक प्रदीप तोमर, मंत्री संगठन अभिषेक पराशर एड, महामंत्री लक्ष्मण सिंह चौहान, प्रेमबाबू कुशवाहा, नूतन तोमर, इशिका तोमर, श्रेया तोमर, परिनिधि अग्रवाल, ओम अग्रवाल, विशाल अग्रवाल आदि उपस्थित रहे। काव्य गोष्ठी का संचालन महेश मञ्जुल ने किया।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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