लाॅकडाउन: संकट में समाचार पत्र और पत्रकार

हिन्दुस्तान में कोरोना वायरस के कारण लाखों व्यक्ति जान गंवा चुके हैं, फिर भी अभी तक राहत नहीं है। केंद्र और प्रदेश सरकारें लोगों की जान बचाने के लिए एक ओर जहां अस्पतालों, दवाओं और उनकी उदरपूर्ति के लिए राशन आदि का इंतजाम कर रही हैं। लोगों की आर्थिक मदद भी की गई है। अरबों रूपया इन व्यवस्थाओं पर खर्च कर दिया गया है। इन सब व्यवस्थाओं के बीच एक ऐसा भी वर्ग है जो दो-दो लाॅकडाउन झेल चुका है लेकिन न तो केन्द्र सरकार ने उनकी कोई मदद की है और न राज्य सरकारें ही इस ओर ध्यान दे पाई हैं। जी हां ऐसा वर्ग है लघु समाचार पत्र और उनसे जुड़े पत्रकारों का, जो सारी दुनियां की पीड़ा ऐसे लिखते हैं जैसे वह कष्ट उन पत्रकारों ने खुद झेला है। यह सिर्फ कल्पना नहीं हो सकती और मुसीबत बिना झेले दर्दनाक स्थितियों का इतना सजीव वर्णन लिखना बहुत ही मुश्किल कार्य है जो इन पत्रकारों ने लिखा है वे बधाई के पात्र हैं। लेकिन इन पत्रकारों और समाचार पत्रों ने जो कार्य समाज के सभी वर्गों के लिए किया है वह कभी भुलाया नहीं जा सकता है। लेकिन वे कितने स्वार्थी निकले कि उन्होंने कभी यह सोचा ही नहीं कि बगैर किसी लालच के हर वर्ग का खयाल रखने वाले पत्रकार भी इसी दुनिया के इंसान हैं। जब सब पर मुसीबत आई है तो पत्रकार और उनके परिजन भी इस मुसीबत से अछूते नहीं रहे होंगे। कोरोना महामारी में सैकड़ों पत्रकार और उनके परिजन भी मौत के मुंह में समा गये। समाज के हर जाति, धर्म, अमीर और गरीब को पत्रकार और समाचार पत्रों के सहयोग की जरूरत पड़ती है, समाचार पत्र और पत्रकार प्रत्येक इंसान की मुसीबत के समय अपना कर्तव्य समझकर खड़े रहते हैं क्या समाज, सरकार और समाजसेवियों का यह दायित्व नहीं कि वे मुसीबत के वक्त बिना कोई लालच किये खड़े रहने वाले लघु समाचार पत्रों और उनके पत्रकारों के हित में चिंतन करें? हमने देखा है कि समाजसेवा का ढोंग करने वाले लोग कितने स्वार्थी होते हैं वे एक राजनीतिक दल को छोड़कर दूसरे की सदस्यता लेने से पहले ही अपने पद और टिकट की सौदा कर लेते हैं। समाज का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जो बिना धन कमाये सिर्फ समाजसेवा का कार्य करे, लेकिन पत्रकार ऐसा व्यक्ति होता है जो न सिर्फ समाजसेवा करता है बल्कि समाचार छापने आदि का भी सौदा नहीं करता। समाचार पत्रों के ज्यादातर पेज देश, समाज और समस्त वर्गों के लोगों के निःशुल्क समाचारों से भरे रहते हैं। लघु समाचार पत्र और उनके पत्रकार आज भी पत्रकारिता को पवित्र पेशा मानकर कार्य कर रहे हैं जबकि धनाढ्य घराने अपने द्वारा संचालित समाचार पत्रों को उद्योग/व्यापार मानकर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने दोनों कोरोना काल में दो बार अपने समाचार पत्रों के रेट बढ़ाये हैं। राज्य सरकारें भी हर दिन ऐसे समाचार पत्रों को ही विज्ञापन देकर उन्हें संजीवनी प्रदान कर रही हैं। इन समाचार पत्रों ने कोरोना काल में समाचार पत्रों के पेज भी घटाये हैं और रेट भी बढ़ा दिये। यही है औद्योगिक घरानों की समाचार पत्रों के माध्यम से समाज सेवा। लघु समाचार पत्र अपने सीमित संसाधनों के होते हुए भी उन्हीं मूल्यों पर समाचार पत्रों को उपलब्ध करा रहे हैं, पत्रकारिता को पावन पेशा समझकर खबरों से भी समझौता नहीं कर रहे। प्रदेश सरकारों की उपेक्षा भी बरदाश्त कर रहे हैं क्योंकि कोरोना काल में अधिकांश समय बाजारों के बंद रहने से कागज और स्याही के मूल्यों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। व्यापार करने वालों ने कोरोना काल को अवसर के रूप में भुनाकर पैसा कमाया है। लघु समाचार पत्रों के साथ विषम परिस्थितियां हैं वे न तो पेज घटा सकते हैं और न मूल्य बढ़ा सकते हैं। दोनों ही स्थितियों में समाचार पत्रों का प्रकाशन प्रभावित हो सकता है। केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकारों को चाहिए कि वे लघु समाचार पत्रों को विज्ञापन के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान करें ताकि इन समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकारों और उनके परिजनों की उदरपूर्ति भी हो सके। सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन दैनिक, साप्ताहिक लघु समाचार पत्रों से जुड़े लोग ही राजनीति में जाकर देश सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर चुके हैं। साप्ताहिक पांचजन्य समाचार पत्र से जुडे़ रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का कार्य सराहनीय रहा है। उनकी देश सेवा और कार्य पर कोई प्रश्नचिन्ह भी नहीं लगा है। पत्रकारिता को मिशन मानने वाले लघु समाचार पत्र और उनके पत्रकार इतने स्वाभिमानी होते हैं कि वे अपने लिए कभी कोई मांग किसी से कर ही नहीं सकते। स्वाभिमान ही सच्चे पत्रकार की जान है। ऐसी स्थिति में उन समस्त लघु समाचार पत्रों और पत्रकारों की ओर से सरकार से अपेक्षा करते हैं कि वह कोरोना काल में उनके हितार्थ भी कार्य करे ताकि मिशन पत्रकारिता जिंदा बनी रहे।