किसान आंदोलन ख़त्म होगा या 2021 की पॉयदान चढ़ेगा

खरी – अखरी

किसान आंदोलन ख़त्म होगा या 2021 की पॉयदान चढ़ेगा

गुलामीयत टूटेगी या और मजबूत होगी

धरतीपुत्र जिंदा रहेंगे या धरती में गाड़ दिये जायेंगे

कहाँ छुपा के रख दूँ मैं अपने हिस्से की शराफ़त
जिधर भी देखता हूँ उधर बेईमान खड़े हैं
क्या खूब तरक्की कर रहा हैं अब देश देखिये
खेतों में बिल्डर और सड़कों पर किसान खड़े हैं

कैसे उद्धार होगा मेरे देश का लोग करते हैं चिंतन मनन नींद में
इतना संगीन पाप कौन करे, मेरे दुःख पर विलाप कौन करे
चेतना मर चुकी है लोगों की, पाप पर पश्चाताप कौन करे

जिस तरह सीता को लौटा कर राम रावण युद्ध टाला जा सकता था उसी तरह संसद का संयुक्त संयुक्त अधिवेशन बुला कर बिना बहस तीनों कृषि क़ानूनों को रदद् कर महीने भर से चल रहे आंदोलन को ख़त्म कराया जा सकता है । मग़र ऊंच निवास नीच करतूती का परिचय दिया जा रहा है । इतिहास भी गवाह है कि लाख समझाने के बाद भी बिना लड़े मरे रावण ने सीता नहीं लौटाई थी ।

*शायद इसी के बाद ही “रामचंद्र कह गये सिया से ऐसा कलयुग आयेगा, हंस चुगेगा दाना दुनका कौआ मोती खायेगा” अक्षरसः सही साबित हो रहा है । इसीलिए तो जिसे जहां होना चाहिये था वो वहां न होकर वहां है जहां उसे नहीं होना चाहिये *

आज फिर एक बार मोदी सरकार और आन्दोलनरत किसान आमने – सामने की बातचीत करने इकठ्ठे होंगे । देश भर की क्या संसार भर की नज़र इस पर टिकी होगी कि क्या मोदी सरकार आंदोलनकारियों की मांगों को मान कर तीनों कृषि क़ानूनों को वापिस लेने के प्रस्ताव पर राजी होगी ? क्या आन्दोलनरत किसान संगठन सरकार द्वारा कहे जा रहे संशोधनों को स्वीकार कर आंदोलन ख़त्म कर देंगे ?

*संभावना तो नगण्य ही दिख रही है । यह बैठक भी पिछली बैठकों की तरह बेनतीजा ख़त्म होने की शतप्रतिशत संभावना है । जहाँ मोदी सरकार ने अपने क्रिया करमों से साफ़ साफ़ संकेत दे दिया है कि वह किसानों के नाम पर अदानी अंबानी के हाथों बेच चुके अपने ज़मीर बन्धनमुक्त नहीं करायेगी वहीं किसान संगठनों ने भी क़सम खाई हुई है कि वह मोदी सरकार के बन्धित ज़मीर को अदानी अंबानी की गिरफ्त से मुक्त कराकर रहेंगे । *

अपने 6 साल के कार्यकाल में देश को अंधेरी सुरंग में धकेलने के बाद पहली बार मोदी सरकार ऐसे दोराहे पर ख़डी हो चुकी है कि उसका हिडन एजेंडा मादरजात हो चुका है । उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि धरती पुत्रों की बात मानकर देश का कर्ज उतारे या सत्ता सुंदरी तक पहुंचाने वाले अदानी अंबानी के एहसानों तले दबे रहकर पादुका पूजन करे ।

वैसे तो मोदी सरकार ने अदानी अंबानी का एहसास चुकाने के लिए एक एक कर देश की सारी धरोहरें तो उनके चरणों में भेंट कर ही दी हैं उसी कड़ी में ही तीन नये कृषि क़ानून बनाये गए हैं मग़र पिछले 6 सालों से अहंकार के गदहे पर सवार इतिहासिक तानाशाहों को पीछे छोड़ चुकी मोदी सरकार को इसका तनिक भी अहसास नहीं रहा होगा कि ये तीनों किसान क़ानून उसके गले का फन्दा बन जायेंगे । उसे तो यही भरोसा था कि किसान संगठन दो चार दिन में अपना बोरिया बिस्तर समेट कर चले जायेंगे नहीं तो मग़रूर सत्ता उन्हें कुचल कर रख देगी । मग़र ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया ।

धरतीपुत्रों के आंदोलन को 30 दिन से भी ज़्यादा समय हो चुका है । देश का दिल दिल्ली चारों तरफ़ से घिरा हुआ है फ़िर “रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था की तर्ज़ पर पंतप्रधान न केवल मोर नचा रहा है बल्कि नित नये रूप धारण कर बहरूपियों को भी पछाड़ रहा है ।

पंतप्रधान के पुनर्जनमित रैनी रेफिन्सथलों और गोएबल्सों की भीड़ विषवमन करते हुए देशभर में किसानों को “खालिस्तानी किसान, टुकड़े टुकड़े गैंग वाले किसान, गुंडा मवाली किसान” और न जाने क्या क्या कहते फ़िर रहे हैं ।

किसानों की देशभक्ति पर उन लोगों द्वारा सवालिया निशान लगाये जा रहे हैं जिनकी ख़ुद की देशभक्ति हमेशा से सन्देहास्पद रही है । बलिदानी परम्परा के वंशजों को कायर साबित करने के ताने बाने उनके वंशजों द्वारा बुने जा रहे हैं जिनके पुरखों ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय फ़िरंगी सत्ता के सामने घुटनाटेक कर माफ़ीनामा लिख कर ख़ुद को वीर साबित किया है ।

मोदी सरकार की हालत खिसियानी बिल्ली की तरह हो गई है । सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो से तो ऐसा लगता है कि ख़ुद नरेन्द्र दामोदर मोदी अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं । वायरल हो रहे इस वीडियो में पी एम किसान सम्मान निधि के दौरान पी एम मोदी कुप्पी बजाते हुए सम्बोधित कर रहे हैं । जबकि इस तरह की कुप्पी सार्वजनिक तौर पर बहुत बड़ी, बहुत गंदी गाली देने का प्रतीक माना गया है ।

दुविधा में फंसी मोदी सरकार की हालत “दो पाटों के बीच में साबित बचा न कोय” होती जा रही है । कहीं ऐसा न हो कि “दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम” । किसान क़ानून वापिस लिया तो अदानी अंबानी मोदी सरकार की लुटिया डुबो देंगे नहीं लिया तो जनांदोलन में तब्दील हो रहा किसान आंदोलन लुटिया डुबा देगा ।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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