सरकार ने किसान संगठनों से चर्चा के बिना बनाए विवादित कृषि कानून, बैठकों का कोई रिकॉर्ड नहीः आरटीआई

खुलासा मोदी सरकार ने किसान संगठनों से चर्चा के बिना बनाए विवादित कृषि कानून, बैठकों का कोई रिकॉर्ड नहीः आरटीआई

**आरटीआई कार्यकर्ता जतिन देसाई ने कहा कि सीपीआईओ के जवाब से सवाल खड़ा होता है कि आखिर किसानों और अन्य हितधारकों के साथ कोई विचार-विमर्श किए बिना ही देश की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए इतने महत्वपूर्ण कानूनों को कैसे पारित किया जा सकता है।

मोदी सरकार के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसानों के आंदोलन के बीच चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि सरकार ने किसान संगठनों से चर्चा के बिना कृषि कानूनों को अंतिम रूप दिया है। यह खुलासा सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है। दरअसल एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्र ने कहा है कि उसके पास तीन कृषि विधेयकों को अंतिम रूप देने से पहले किसान संगठनों के साथ बैठकों या चर्चाओं से संबंधित किसी भी तरह का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

मुंबई स्थित आरटीआई कार्यकर्ता और सामाजिक प्रचारक जतिन देसाई ने कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग में एक आरटीआई आवेदन दायर किया था। देसाई ने बताया, “मैंने तीन साधारण सवाल पूछे थे, जिनमें तीन कृषि अध्यादेशों को आगे बढ़ाने से पहले किसान संगठनों के साथ कितनी बैठकें की गईं, यह कहां पर आयोजित हुईं और इनके लिए किसे आमंत्रित किया गया। इसके अलावा अध्यादेशों के बीच मसौदा कानूनों पर चर्चा करने के लिए कितनी बैठकें आयोजित की गईं।”

आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि हालांकि संबंधित विभाग के सीपीआईओ ने केवल इतना कहा, “यह सीपीआईओ इस मामले में कोई रिकॉर्ड नहीं रखता है।” देसाई का कहना है कि यह प्रतिक्रिया भ्रामक और अपूर्ण है। इसलिए उन्होंने इसके खिलाफ अपील दायर की है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि परामर्श आयोजित किया गया था या नहीं और उसके रिकॉर्ड/मिनट संजोकर रखे गए हैं या नहीं।

आरटीआई कार्यकर्ता जतिन देसाई ने कहा, “जैसे कि सीपीआईओ के जवाब से प्रतीत होता है, आखिर किसानों और अन्य हितधारकों के साथ कोई विचार-विमर्श किए बिना देश की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए इतने महत्वपूर्ण कानूनों को कैसे पारित किया जा सकता है।”

दिल्ली और आसपास के राज्यों में बड़े पैमाने पर चल रहे किसानों के आंदोलन को देखते हुए उन्होंने कृषि विभाग से आग्रह किया है कि वे इस मामले में वास्तविक तथ्यों के साथ जल्द से जल्द सार्वजनिक हित में सामने आएं।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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