इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पुरजोर विरोध पर उतर आए

गोरखपुर।बी,ए, एम, एस करने के बाद शल्य चिकित्सा में स्नातकोत्तर डिग्री लेने वालों को भी सर्जरी करने का अधिकार केन्द्र सरकार ने क्या दे दिया,इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पुरजोर विरोध पर उतर आए हैं, पूरे देश में उन्होंने हड़ताल की चेतावनी दे डाली है ।शल्य चिकित्सा का विरोध करने से पहले कुछ सच जरूर जानें।

डॉ, जे,यन, मिश्र के मुताबिक क्या BAMS का कोर्स चुनने वाला बच्चा 10 साल किसी विषय को पढने के बाद भी योग्य चिकित्सक नहीं होगा ????

आज भी देश के गाँवों में यदि कोई आम आदमी को स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करवा रहा है तो वो बी ए एम एस चिकित्सक ही है, और उनका सस्ता सिस्टम ही है। ….ना कि स्वास्थय बजट के 100 में से 97 रुपये उड़ा लेने वाला ऐलोपैथी सिस्टम।

बी ए एम एस जिसका भारतीय चिकित्सा पद्धति का पाँच हजार सालों का इतिहास है।
ना अनुसंधान के लिए धन उपलब्ध है,
ना कर्मचारियों की पूरी सैलेरी के लिए,
ना इंफ्रास्टक्चर के लिए,
ना दवाइयों के लिए,
ना नई नियुक्तियों के लिए,
ना पदोन्नतियों के लिए..

यानि सम्पूर्ण चिकित्सा बजट के मात्र 1% बजट में चलते आयुर्वेद विभाग से भी IMA को डाह होने लगा…. ???
शर्म आनी चाहिए इस तुच्छता पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को।सनद हो

जाँच के नाम पर कमीशन, दवा के नाम पर कमीशन, किसी भी रोग का इलाज करने के बजाय सिर्फ कमरतोड़ मँहगी सर्जरी को ही एकमात्र उपाय बना देने वाले लोगों को, मोटी सैलेरी के बावजूद 50 हाथों से रोगियों की जेब से पैसा लूट लेने वाले समृद्धतम वर्ग को आखिर भय क्या है ???

सच तो यह है कि देश ने 70 साल ऐसी विदेशी चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा दिया जिसने देशी होनहारों को भी भूरी चमड़ी वाले विदेशी बना डाला।
आयुर्वेद शल्य चिकित्सा से ये किस आम आदमी के नुकसान का भय दिखाना चाहते हैं ? … जिस आम आदमी से इनका दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं।
ना जिन्हें देश से मतलब है, ना देश के गौरव से, ना गरीब रोगी से। गाँवों की ये शक्ल भी नहीं देखना चाहते। गरीब रोगियों का आर्तनाद इनके कानों तक नहीं पहुँचता। और देश के पूरे स्वास्थ बजट पर कुण्डली मार कर बैठे हुए हैं।

सिर्फ 30-35 नई सर्जरी की ही नई इजाजत दी है आयुर्वेद स्नातकोत्तर को, शेष तो पहले से ही हो रही थीं। इसमें इनकी व्यक्तिगत क्षति क्या हुई यह समझ से परे है।

सोचो क्या होगा इनका हाल, यदि सरकार ने देश के आम आदमी की जेब का पूरा पैसा इन पर लुटाने के बजाय कुछ कटौती करके देश की अन्य चिकित्सा पद्धतियों पर खर्च करना शुरू कर दिया ???
डॉ, मिश्र ने कहा कि
काश ! सरकार इस विडम्बना को खत्म करने का सोचे व सरकार 50-50 % के अनुपात में बजट आवंटन शुरू करे।
कोई माँ के पेट से ही योग्य सर्जन या फिजिशियन बन कर नही आता, क ख ग पढ़ने के बाद बाद में5वर्षों की पढ़ाई और चिकित्सकीय प्रशिक्षण तथा धीरे धीरे व्यवसाय में रम कर योग्य चिकित्सक बनता है, चाहे वह बी ए एम एस हो या एम बी बी एस या फिर स्नातकोत्तर डिग्री लेने वाला हो।हमारे भी स्नातक डिग्री के साथ सर्जरी जुटी हुई है, फिर कोई पैथी इस पर अपना एकाधिपत्य किस आधार पर जमा रही है।बस बेलगाम कमाई पर अंकुश न लगने लगे उसी की लड़ाई है।मरीजों का शोषण और दोहन पर लगाम लगाना है तो मिश्रित चिकित्सा पद्धति अपनाते हुए बी ए एम एस डिग्री धारकों को मुख्य धारा में लाना ही होगा।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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