
ईद और दीवाली दहलीज पर है,हमे फूलों से स्वागत करना है या हथियारों से-
एटा-
एटा, बाबूगंज बाजार मे कल कुछ दुकानदारों मे लेनदेन को लेकर कहासुनी हो गई जिससे शहर मे कई तरह के चर्चों की एक चौपाल देदी गई,
लेकिन हमे अभी तक अपने एटा पर इसी बात का गर्व रहा है कि जितना ये एटा बदनाम है,उतने ही हम भाईचारे को लेकर एक मिशाल रहे है,यहां अभीतक न कोई हिंदू रहा न मुसलमान यह आज के परिवेश मे बहुत बड़ी मिसाल बने रहे हम एटा बाले,और देश मे कितनी ही आग लगी रही धर्मों को लेकर पर हमारा एटा कभी नहीं झुलसा इस बार भी हम उम्मीद रखते है, शासन, प्रशासन, और अपने भाईयों से कि घर हो या समाज,शहर हो या देश जहां चार बर्तन होते है,बजते ही हैं, पर इन्हें कभी तोड़ने की कोशिश मत करना इसी छोटे से शहर से बहुत सी असुविधाओं मे से हमे अपने परिवारों की परवरिश करना है,और रहना भी है,ये धर्मों के हथियार, गला हमारा ही रेतेंगे,हिंदू मरे या मुसलमान हमारे समाज का वह सदस्य ही होगा पुनः फिर कहना होगा हमारे शहर एटा की एकता की मिसाल बनी रहे यही सार्थक सोच मे इन मतभेदों को खत्म कर लिया जाए,क्यों कि ईद और दीवाली हमारी दहलीज पर खडी़ है,खुशियां लेकर मिल जुलकर इन पर्वों का स्वागत करे,ये कुर्सी पर बैठने बाले कुर्सी पर बैठेंगे लेकिन आपकी जगह वहीं रहेगी संयमित रहकर आवाद करो इस शहर को बरबादियों का मंजर बहुत बुरा होता है,बहुत छोटा सा टुकडा़ है,हमारा एटा इसपर भाईचारे की एक ही चौपाल रहने दो ताकि हम मिलजुल कर अपने दुख शुख बांट सकें,अपने परिवारों का भरणपोषण स्वतंत्र होकर कर सके,जब समाज की मरियादित दीवारें टूटती हैं, तो घरों की दीवारें भी अपने आप टूट जाती है,हमारे अपने बच्चों, परिवारों,के लिये,नफरत की दीवार नही एकता की ताकत की जरूरत है,कि हम जहां रहते है,वहां जंगली जानवर तो प्रवेश नहीं कर रहे है,कुर्वानी के आईना मे वह रंगरंजित चेहरा धरा का हम कैसे भूल जाते है,जो वीर सपूतों के लहू से लाल लाल था,मगर किसी भी ममता पर धर्म नही लिखा था,आज हम उस धरा की गर्दन पर जब धर्मों के हथियार देखते है,तो नजरों मे उन वीर कुर्वानियों की हार देखते है,कि हमने बाहर से इतनी बड़ी जीत हाशिल करली आज हम आपस मे हारते देख रहे है,बंद मुट्ठी से एकता शक्ति को रेत की तरह फिसलते देख रहे है, इसे रोकना होगा ,कटु सत्य, ताकतें हर धर्म के जिश्म मे है,इसका सद्युपियोग करें,देश जनहित, खुदहित मय जय, हिंद, जय भारत।