बाघ ने ले ली एक और युवक की जान, बुझ गया एक और चिराग

बाघ ने ले ली एक और युवक की जान, बुझ गया एक और चिराग


निघासन खीरी। शनिवार को मवेशी चराने गए एक युवक पर बाघ ने हमला कर दिया जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।
जानकारी के मुताबिक पूरा मामला तिकुनिया कोतवाली क्षेत्र के मंझरा पूरब का है। मंझरा पूरब निवासी अवधेश यादव (25) पुत्र बदलू शनिवार सुबह मवेशी चराने खेतों की तरफ गया था जहां घात लगाए बैठे एक बाघ ने उस पर हमला कर दिया जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। स्थानीय लोगों के मुताबिक बाघ के हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है। कुछ ही महीनों के अंतराल पर बाघ कई लोगों को अपना निशाना बना चुका है।

इसी गांव के निवासी राम दुलारे जी ने बताया कि अवधेश अपने कुछ साथियों के साथ शनिवार सुबह मवेशी चराने खेतों की तरफ गया था। अवधेश के साथ में उसके कुछ साथी भी थे जिनके बीच से बाघ अवधेश को उठाकर जंगल की तरफ ले गया। उन्होंने बताया कि बाघ के हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले भी बाघ कई लोगों को अपना निशाना बना चुका है। कई लोगों को निशाना बनाने के बाद अब यह बाघ आदमखोर हो चुका है। बाघ जैसे ही किसी इंसान या जानवर की आवाज सुनता है वह जंगल से निकलकर बस्ती की तरफ आ जाता है और किसी ना किसी इंसान या जानवर को अपना निवाला बना लेता है। आदमखोर बाघ की दहशत से स्थानीय लोग इस कदर सहमे हुए हैं कि वह अपने घर से निकलने में भी डरते हैं। बताते चलें कि इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि ही है। क्षेत्र के लोग कृषि पर ही पूरी तरह आधारित हैं। यदि वो खेती ना करें तो क्या करें। ऐसे में बाघ के हमलों से जाती हुई जानें चिंता का विषय है। ना जाने बाघ कब किस को निवाला बना ले। बाघ के हमले से रोज जाती हुई जानों के बाद भी वन विभाग की नींद नहीं खुल रही है। लगातार हो रही हिंसक घटनाओं के बाद भी वन विभाग ने अभी तक बाघ को रोकने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए हैं जिससे स्थानीय लोग दहशत में जीने को मजबूर हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं तब वन विभाग के लोग आते हैं और ग्रामीणों को जंगल की तरफ ना जाने की सलाह देकर वापस चले जाते हैं। बाघ द्वारा लगातार हो रहे हमले और लोगों की चीख पुकार सुनकर भी वन विभाग की नींद ना खुलना तथा कोई पुख्ता इंतजाम ना किया जाना वन विभाग पर सवालिया निशान लगा रहा है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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