भारतीय मीडिया फाउंडेशन आज भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया।

भारतीय मीडिया फाउंडेशन के साथ प्रशासनिक अधिकारी अधिवक्ता पत्रकार सामाजिक कार्यकर्ता एवं अत्याचार , भ्रष्टाचार के खिलाफ बगावत कर के बागी बने फिर लंबे संघर्षों के बाद समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर वरिष्ठ समाजसेवी बने सभी भारतीय मीडिया फाउंडेशन के मंच पर एकजुट हो रहे हैं
जितने भी राष्ट्रवादी व्यक्तित्व के लोग हैं आज भारतीय मीडिया फाउंडेशन के केसरिया झंडे को बुलंद करने की बीणा उठा लिए हैं अब तो दो लाइन इस देश में खींची जा चुकी हैं।
पहला लाइन –राष्ट्रवादी पत्रकार सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता पूर्व प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी एवं बागी साथियों ने मीडिया गिरी की नींव स्थापित कर दिया जिसका मकसद ही है भ्रष्टाचार मुक्त भारत सशक्त मीडिया समृद्ध भारत का नव निर्माण करना हैं।
दूसरी लाइन पहले से स्थापित है- जो नेतागिरी कहीं जाती है झूठ को सच सच को झूठ सुबह से शाम तक झूठ वादा पर वादा सत्ता पाने के बाद फिर इरादा बदल लेना चुनाव के दौरान लोक सेवक बनके आना मतदाता को मालिक कहना पैरों पर गिर जाना अन्नदाता कहना चुनाव के बाद सत्ता हासिल होने के बाद कुर्सी हासिल होने के बाद ऐसे लाव लश्कर और बीआईपी कल्चर में जीना शुरु कर देते हैं कि जिस मतदाता का पैर पकड़कर वह सत्ता तक पहुंचते हैं उस मतदाता को गेट पर ही रोक दिया जाता है देश के असली मालिक मतदाताओं को चिट्ठी भेजकर नंबर लगाना पड़ता है उनसे मिलने के लिए और उनके दरवाजे पर जाने पर आपको पढ़ने को मिलेगा बिना आज्ञा से अंदर आना मना है कुत्ते से सावधान रहें।