अवध होटल में राजपूत विधायकों की बैठक — 2027 से पहले यूपी की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत?

लखनऊ : राजधानी लखनऊ के प्रतिष्ठित अवध होटल में उत्तर प्रदेश के कई राजपूत विधायक इकट्ठा हुए, और इस मुलाकात में सबसे ध्यान खींचने वाली मौजूदगी रही राजा भैया (रघुराज प्रताप सिंह) की। इस अप्रत्याशित राजनीतिक जमावड़े ने प्रदेश की सियासी हलचल को अचानक तेज़ कर दिया है।

राजपूत लॉबी का सक्रिय होना — राजनीतिक संकेत

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं। राजपूत समुदाय, जो परंपरागत रूप से सत्ता-समीकरण में प्रभावी रहा है, लंबे समय से राजनीतिक बिखराव का सामना कर रहा था। लेकिन इस बैठक ने संकेत दिया है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यह वर्ग एकीकृत राजनीतिक रणनीति बना सकता है।

राजा भैया की भूमिका

  • स्वतंत्र राजनीतिक पहचान: राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) सीमित सीटों के बावजूद व्यक्तिगत करिश्मा और जातीय प्रभाव के लिए जानी जाती है।
  • संभावित मध्यस्थ: वे विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों से संवाद करने की क्षमता रखते हैं, जो उन्हें राजपूत लॉबी का स्वाभाविक नेता बना सकता है।
  • रणनीतिक वक्त : 2027 चुनाव से पहले जातीय राजनीति की सक्रियता भाजपा, सपा और बसपा — तीनों दलों की रणनीति को प्रभावित कर सकती है।

राजनीतिक विश्लेषण

  1. राजपूत मतों का पुनर्गठन : यदि यह लॉबी एकजुट होती है, तो पश्चिमी, मध्य और पूर्वी यूपी में भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
  2. सत्तापक्ष के लिए चुनौती : भाजपा ने 2017 और 2022 में राजपूत नेताओं को महत्वपूर्ण पद देकर इस वर्ग को साधा था, लेकिन हालिया वर्षों में कुछ नाराजगी के संकेत मिले हैं।
  3. विपक्ष के लिए अवसर : सपा या कांग्रेस, अगर इस नाराजगी को भुना पाती हैं, तो उन्हें कई सीटों पर लाभ हो सकता है, बशर्ते जातीय एकता राजनीतिक गठबंधन में तब्दील हो सके।

क्या बड़ा फैसला संभव है?

  • नया राजनीतिक मोर्चा — एक स्वतंत्र राजपूत-आधारित मोर्चा जो चुनाव में “किंगमेकर” बन सकता है।
  • मौजूदा दलों में दबाव बढ़ाना — भाजपा या सपा को अधिक टिकट और पद देने के लिए दबाव।
  • रणनीतिक गठबंधन — 2027 में किसी बड़े दल से समझौता कर चुनावी समीकरण बदलना।

अवध होटल की यह बैठक केवल औपचारिक मुलाकात नहीं, बल्कि 2027 के चुनावी समर के लिए एक संदेश है — राजपूत राजनीति फिर से केंद्र में आने वाली है। आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि यह पहल केवल पावर शो थी या वास्तव में उत्तर प्रदेश के जातीय-सियासी समीकरण को पलट देने वाली चाल। बुंदेलखंड और मध्य यूपी में इनकी पकड़ सबसे मज़बूत है, जबकि पश्चिमी और पूर्वी यूपी में भी इनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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