
देश में हर साल जुलाई माह की शुरुआत से ही वृहद स्तर पर वृक्षारोपण किया जाता है। प्रकृति संरक्षण की दिशा में सरकार द्वारा किया जाने वाला वृक्षारोपण अभियान प्रशंसनीय है लेकिन इसकी सफलता तभी संभव है जब रोपित पौधों का उचित रख-रखाव और संरक्षण हो। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का। इस संदर्भ में देश की सर्वोच्च अदालत का भी कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत पेडों की सुरक्षा करना हर नागरिक का दायित्व है। सभी सरकारी अधिकारियों का संवैधानिक कर्तव्य है कि वे अधिक से अधिक पेड़ों को बचायें और उनकी सुरक्षा करें। दरअसल इस अभियान में लगी एजेंसियों की जिम्मेदारी काफी महत्वपूर्ण है। जरूरत है कि इस अभियान को जनांदोलन बनाया जाये जिसके लिए जनभागीदारी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक है। देखा जाये तो वृक्षारोपण के लक्ष्य का निर्धारण सराहनीय ही नहीं, स्तुतियोग्य प्रयास है, प्रशंसनीय है। लेकिन रोपित पौधों की रक्षा बेहद जरूरी है। क्योंकि अक्सर होता यह है कि पौधारोपण के बाद उनकी उचित देखभाल नहीं होती और वे कुछ समय बाद ही मर जाते हैं। इसलिए इस काम में लगी एजेंसियां रोपित पौधों के रख-रखाव की जिम्मेदारी समाज के उन लोगों को सौंपें जो इस अभियान में सहभागिता कर रहे हैं। तभी अभियान की सफलता संभव है।
असलियत मे दुनिया में जिस तेजी से पेड़ों की तादाद कम होती जा रही है, उससे पर्यावरण तो प्रभावित हो ही रहा है,पारिस्थितिकी, जैव विविधता, कृषि और मानवीय जीवन ही नहीं,भूमि की दीर्घकालिक स्थिरता पर भी भीषण खतरा पैदा हो गया है। जैव विविधता का संकट पर्यावरण ही नहीं, हमारी संस्कृति और भाषा का संकट भी बढ़ा रहा है। जबकि पृथ्वी के पारिस्थितिकीय तंत्र में वृक्षों की महत्ता और विविधता की बहुत बडी भूमिका है।
देखा जाये तो पेड़ों का होना हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण ही नहीं, बेहद जरूरी है। देश की सुप्रीम कोर्ट पेडों के प्रति कितनी संवेदनशील है। यह उसके आदेश से ही परिलक्षित होता है।उसने अपने आदेश में कहा है कि सरकारें पेडों की संरक्षक हैं। पेडों को कटने से बचाने का दायित्व राज्य का है। हमें पेडों के महत्व को समझते हुए हर पेड को बचाना होगा।