
सावन का महीना और चातुर्मास का अवसर मणिकांचन योग जैसा है। चातुर्मास में श्रावणी मेला का आयोजन यूं ही नहीं होता है। क्या आपने कभी सोचा होगा कि सावन में ही भगवान शिव को पवित्र गंगाजल चढ़ाने की परंपरा क्यों है?
देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास शुरू हो जाता है। देव यानी श्रीहरि पाताल लोक में निवास करने जाते हैं। अगले चार महीने तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निंद्रा में जाते हैं। ऐसे में भगवान शिव सृष्टि का संचालन संभालते हैं। यह चार मास का समय चातुर्मास कहलाता है। इसमें सावन का महीना और भी पावन माना गया है। सावन में भक्त भोलेनाथ का जलाभिषेक, रूद्राभिषेक करवाते हैं, लेकिन क्या आपने जानने की कोशिश की कि आखिर क्यों भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। इसके पीछे समुंद्र मंथन के पीछे की कहानी जुड़ी है।
शास्त्रों की माने समुद्र मंथन किया गया था, तो उससे अमृत निकला, जिसको पीकर अमर हो जाते हैं, लेकिन इसी समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष भी निकला, इसके निकलने से संपूर्ण विश्व को खतरा था। ऐसे में भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए विषपान किया। इसकी वजह से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया। इसलिए उन्हें नीलकंठ कहते हैं। विष की तीव्र पीड़ा के कारण भोलेबाबा ने हलाहल को अपने कंठ में रोक लिया। लेकिन इसकी पीड़ा कम न हुई, भगवान आशुतोष दग्ध होने लगे। ऐसे में भगवान शिव को इस पीड़ा से बचाने के लिए और उन्हें शीतलता देने के लिए विभिन्न चीजों से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। इसलिए भगवान शिव के भक्त इस घटना को याद कर पवित्र गंगाजल से उनका जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि इससे भगवान शिव को शीतलता मिलती है। कहते हैं भगवान शिव को अभिषेक अत्यंत प्रिय है। इसलिए उनके भक्तगण उन्हें पवित्र गंगाजल से सावन में जलाभिषेक करते हैं, तो भगवान उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
किन चीजों से अभिषेक करने पर मिलता है क्या फल
दूध से अभिषेक करने पर मन मस्तिष्क, समृद्धि के साथ-साथ आरोग्यता भी अक्षत चावल-स्थिर लक्ष्मी
मधु, गुड और घृत-आरोग्यता समृद्धि