
एटा के मेडीकल कॉलेज में अनियमिताओं का अम्बार!
- मेडीकल कॉलेज में इधर उधर मंडराते गार्ड व्यवस्था बनाने में हो रहे नाकाम!
- मरीजों को दवा प्राप्त करने में करनी पड़ती है भारी मशक्कत!
अखिलेश वशिष्ठ, दैनिक राजपथ एटा
एटा। इस बात में कतई शक नहीं है कि एटा में वीरांगना अवन्तीबाई लोधी मेडीकल कॉलेज खुलने से एटा और कासगंज जनपद वासियों को बहुत ही फायदा हुआ है।
यहां सिर्फ गरीब ही नहीं बल्कि मध्यम एवं उच्च वर्ग के लोग भी स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। लेकिन मेडीकल कॉलेज में तैनात कुछ बड़े और छोटे अधिकारियों की अकर्मण्यता के चलते मरीज बहुत पेरशानी में देखे जाते हैं। अनियमितताओं का दौर पहली खिड़की से ही षुरू हो जाता है। यहां कुछ लोग बिना लाइन के विंडो पर पहुंच जाते हैं और लाइन वाले लोग लाइन में ही लगे रहते हैं। कॉलेज में तैनात गार्ड इधर उधर मंडराते रहते हैं या फिर गेट पर आराम से कुर्सी डालकर बैठे रहते हैं। अगर इन सुरक्षा गार्डों का कोई परिचित मरीज आ जाये तो ये खुद भी लाइन को डिस्टर्ब करते हुए खुद आगे लगकर अपने हाथ से पर्चा बनवा देते हैं। चलो कोई बात नहीं ! जैसे तैसे पर्चा बनवाने के बाद डाक्टर के कमरे में जाता है तो वहां भी बदइंतजामी ही देखने को मिलती है। लाइन यहां भी है और पर्चा वाली विंडो की तरह यहां भी लाइन से हटकर मेडीकल स्टॉफ और अन्य रसूख वाले लोग अन्य लोगों का नंबर काटकर डाक्टर के रूम में घुस जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि आखिर मरीज को पर्चा हाथ में लेकर लाइन में क्यों लगाया जाता है़? इसके स्थान पर डाक्टर के रूम में मरीज का पर्चा कोई एक व्यक्ति जमा कर ले और मरीज को एक टोकन दे दे और मरीज से बाहर बैठने के लिए कहा जाये। मरीज को बताया जाये कि जब आपका टोकन नंबर बुलेगा तभी आ जाना। इससे फायदा ये होगा कि बीच में कोई पर्चा भी नहीं लगा सकेगा। जब टोकन सिस्टम होगा तो लाइन लगने का मतलब ही नहीं है। यह बात मेडीकल कॉलेज के मैनेजमेेंट की समझ में न जाने कब आयेगी ? चलो डाक्टर के पास पहुंच गये यानी दो लाइनें तो पूरी हो गईं। अगर टेस्ट बगैराह नहीं कराये हैं तो तीसरी लाइन होगी दवा लेने की। अब दवा पर आ जाइये यहां भी लाइन तोड़कर घुसने का फार्मूला चलता है। महिलाओं का काउण्टर अलग है और पुरूशों का अलग! बहुत अच्छी बात है यहां कि यहां एक और विशेष काउण्टर बनाया गया है जिसमें वरिष्ठ नागरिक (वो चाहे महिला हों या पुरुष) गर्भवती महिलायें, विकलांग, मेडीकल स्टाफ एवं पत्रकारों के लिए रिजर्व किया गया है। इस काउण्टर पर अपेक्षा कृत अन्य काउण्टरों के कम भीड़ रहती है। लेकिन सबसे अधिक धांधली इसी काउण्टर पर होती मिलेगी। यहां सबसे ज्यादा मेडीकल स्टॉफ के नाम पर धांधली होती दिखती है। लोग लाइन में लगे रहते हैं और अन्दर बैठा दवा वितरण करने वाला कर्मचारी अलग से खिड़की का एक शीशा खोलकर दवायें वितरित करते हुए कभी देखा जा सकता है। यहां उल्लेखनीय बात तो यह है कि जब वरिष्ठ नागरिक, विकलांग, गर्भवती महिलायें, पत्रकार आदि लाइन में लगकर दवायें लेते हैं तो फिर मेडीकल स्टाफ को नियम तोड़कर लाइन से हटकर दवा लेने की परमीशन आखिर किसने दे दी। इस विंडो पर भी सुरक्षा गार्ड खड़े होकर अपने परिचितों को बिना लाइन के दवा दिलवाते हुए कभी भी देखे जो सकते हैं। हां यह बात कहने में भी कोई हर्ज नहीं है कि जब यहां से अच्छी दवायें मिलती हैं और मरीज ठीक होते हैं तभी तो दिन प्रतिदिन भीड़ में इजाफा हो रहा है। दवायें सही हैं, डाक्टर दवायें भी ठीक लिख रहे हैं। पर कमी है व्यवस्थाओं की! मेडीकल प्रषासन को चाहिए कि भीड़ का आलम देखते हुए चाक चौबन्द व्यवस्थाओं पर भी विषेश ध्यान दें और कॉलेज में तैनात सुरक्षा गार्डों पर भी थोड़ी लगाम कसें।