
एटा ; नेशनल हाईवे 34, इसके चौड़ीकरण और नवनिर्माण के लिए लाखों पेड़ काटे गए थे। यह परियोजना देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी गई, लेकिन इसके साथ ही पर्यावरणीय संतुलन पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
हालांकि नियमों के अनुसार, जितने पेड़ काटे जाते हैं, उनके बदले कम से कम दो गुना पेड़ लगाए जाने चाहिए। लेकिन हाईवे के निर्माण को पूरे हुए चार साल बीत जाने के बावजूद, वृक्षारोपण का कार्य केवल कागज़ों तक ही सीमित दिख रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिन जगहों पर पेड़ लगाए जाने थे, वहां आज भी खाली मैदान और धूल उड़ते रास्ते हैं। कुछ जगहों पर गिनती के पौधे जरूर लगाए गए, लेकिन न तो उनकी सही देखभाल की गई और न ही वे जीवित रह पाए।
वातावरणविदों का कहना है कि इस तरह की लापरवाही से न सिर्फ हरियाली खत्म होती है, बल्कि इससे स्थानीय जलवायु और जैव विविधता पर भी गहरा असर पड़ता है। सड़क निर्माण के लिए पेड़ काटना समझा जा सकता है, लेकिन उसकी भरपाई न करना एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है।
यदि इस दिशा में जल्द और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो विकास की यह दौड़ हमें बहुत महंगी पड़ सकती है।