
मऊगंज में पत्रकारों पर प्रशासनिक दमन: शांतिपूर्ण धरने को जबरन खत्म करने की कोशिश, आंदोलन उग्र होने की चेतावनी
मऊगंज।
मऊगंज में शांतिपूर्ण तरीके से अपने अधिकारों की आवाज उठा रहे पत्रकारों के साथ प्रशासन द्वारा दुर्व्यवहार और धमकी की घटना सामने आई है। जानकारी के अनुसार, मऊगंज एसडीएम स्वयं धरना स्थल पर पहुंचे और वहां धरना दे रहे पत्रकारों को धमकाने तथा आंदोलन को जबरन समाप्त कराने का प्रयास किया।
पांच दिनों से चल रहे इस आमरण अनशन के दौरान प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी पत्रकारों की सुध लेने नहीं आया था। मगर देर रात प्रशासन ने दुर्बलता के साथ शक्ति प्रदर्शन करते हुए धरना स्थल पर पहुँचकर न केवल पत्रकारों को धमकाया, बल्कि उनके शांतिपूर्ण आंदोलन को बलपूर्वक समाप्त करने की कोशिश भी की।
धरना दे रहे पत्रकारों का कहना है कि प्रशासन पूरी तरह से “हिटलरशाही” रवैया अपनाकर, लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन कर रहा है। सवाल उठता है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार भी अब खतरे में है? क्या पत्रकारों को अपने हक के लिए आवाज उठाना भी प्रशासन को नागवार गुजर रहा है?
प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा यह कहना कि “धरना जबरन समाप्त कर दिया जाएगा”, सीधा-सीधा संवैधानिक अधिकारों का हनन है। यह घटना न केवल लोकतंत्र पर हमला है बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर भी गहरा आघात है।
धरना स्थल पर मौजूद पत्रकारों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वे किसी भी दबाव में झुकने वाले नहीं हैं और यदि प्रशासन ने इसी तरह दमनकारी रवैया अपनाया तो आंदोलन और अधिक उग्र होगा, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।
इस घटना ने यह भी उजागर कर दिया है कि मऊगंज का प्रशासन जनता और पत्रकारों के लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर कितनी असंवेदनशीलता दिखा रहा है। लोकतंत्र में विरोध करना अपराध नहीं, बल्कि मौलिक अधिकार है, जिसे बलपूर्वक दबाने की कोशिश करना निंदनीय और असंवैधानिक है।
अब सवाल उठता है —
क्या मऊगंज प्रशासन लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का सम्मान करेगा या दमन की नीति पर अड़ा रहेगा?
क्या पत्रकारों की आवाज को दबाकर समस्याओं से मुँह मोड़ा जा सकता है?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अगर आवाज उठाने वालों को डराने का प्रयास किया जाएगा, तो यह आवाज और भी बुलंद होगी।