
सुप्रीम कोर्ट के जज पंकज मित्तल के बयान पर भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार की प्रतिक्रिया
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज पंकज मित्तल के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने विद्यालयों में प्राचीन भारतीय विधिक और दार्शनिक परंपराओं को औपचारिक रूप से पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया है, पर भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार ने गहरी प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने इस बयान को संवैधानिक मूल्यों और भारतीय परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने की दिशा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम बताया है।
श्री बिंदुसार ने सुप्रीम कोर्ट के जज पंकज मित्तल को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि उनका यह सुझाव भारत को विश्व गुरु का दर्जा पुनः दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायमूर्ति मित्तल का यह आह्वान वेद, स्मृति, अर्थशास्त्र, मनुस्मृति, धम्म, महाभारत और रामायण जैसे सनातन परंपराओं से संबंधित ग्रंथों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात करता है और इसका उद्देश्य किसी भी विशेष पंथ या मजहब को लक्षित करना नहीं है।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक ने जोर देकर कहा कि यदि यह पाठ्यक्रम विद्यालयों में लागू होता है, तो युवा पीढ़ी अपने समृद्ध इतिहास और जड़ों से परिचित हो सकेगी। इससे मानव मूल्यों के सिद्धांतों की स्थापना में मदद मिलेगी और सभी धर्मों एवं संप्रदायों में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त कर एक सकारात्मक दिशा में कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी।
श्री बिंदुसार ने सभी से आग्रह किया कि वे न्यायमूर्ति पंकज मित्तल के विचारों को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उनके प्रत्येक तथ्य को गहराई से समझें।
क्या बोले न्यायमूर्ति पंकज मित्तल:
न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने अपने बयान में कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथ केवल सांस्कृतिक कलाकृतियाँ ही नहीं हैं, बल्कि इनमें न्याय, समानता, शासन, दंड, सामंजस्य और नैतिक कर्तव्य जैसे गहन विचारों का प्रतिबिंब है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि हमें भारतीय विधिक तर्क की जड़ों को समझना है, तो इन ग्रंथों का अध्ययन अपरिहार्य है।
इसके अतिरिक्त, न्यायमूर्ति मित्तल ने देश की न्यायिक प्रणाली को भारतीय बनाने के प्रयासों का उल्लेख किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करके उन्हें उपलब्ध कराना शामिल है। उन्होंने भारत के पिछले मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल में न्याय की देवी की अनावरण की गई नई प्रतिमा का भी उदाहरण दिया, जिसमें देवी को साड़ी पहने हुए, तलवार की जगह किताब थामे हुए और आंखों पर बंधी पट्टी हटाकर दर्शाया गया है।
संविधान के साथ-साथ गीता, वेद और पुराण भी होने चाहिए:
न्यायमूर्ति मित्तल ने विधि महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को लेकर भी महत्वपूर्ण सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि हालांकि वर्तमान में संविधान के बारे में बताने वाली पुस्तकें हैं, लेकिन उनका मानना है कि पाठ्यक्रम में चार पुस्तकें होनी चाहिए: संविधान के साथ-साथ गीता, वेद और पुराण। उन्होंने तर्क दिया कि यही वह संदर्भ है जिसमें हमारी न्याय व्यवस्था को कार्य करना चाहिए, तभी हम अपने देश के प्रत्येक नागरिक को न्याय प्रदान करने में सक्षम होंगे।
न्यायमूर्ति मित्तल ने यह भी प्रस्ताव दिया कि विधि महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों द्वारा शुरू किया जाने वाला विषय “धर्म और भारतीय विधिक विचार” या “भारतीय विधिक न्यायशास्त्र की नींव” शीर्षक के अंतर्गत हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विषय केवल पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि न्याय के शास्त्रीय भारतीय विचारों और इसके आधुनिक संवैधानिक प्रतिबिंबों के बीच संबंध स्थापित करने पर केंद्रित होना चाहिए।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार ने न्यायमूर्ति पंकज मित्तल के इस दूरदर्शी और महत्वपूर्ण बयान की सराहना करते हुए उम्मीद जताई कि इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे, जिससे भारतीय शिक्षा प्रणाली और न्याय व्यवस्था दोनों ही लाभान्वित होंगी।