
राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य
1. बिन मर्यादा सब सून
लीजिए, अब क्या लोकसभा के स्पीकर जी मर्यादा के पालन का उपदेश भी नहीं दे सकते? कुर्सी का नाम स्पीकर और जरा सा उपदेश देने पर इतनी बक-झक। और उपदेश भी कैसा? मर्यादा के पालन का उपदेश। बेचारे ओम बिड़ला जी ने विपक्ष के नेता को सदन में जरा मर्यादा में रहने की शिक्षा क्या दे दी, भाई लोग हुज्जत पर ही उतर आए हैं। कह रहे हैं कि बिड़ला जी विपक्ष के साथ भेदभाव करते हैं? आखिर, सदन की ऐसी कौन सी मर्यादा है, जो विपक्ष के नेता ने भंग की है?
भगवा पार्टी के आइटी सेल वाले अमित मालवीय का थैंक यू, उन्होंने वीडियो चलाया, तो देश को पता चला कि आखिर कौन-सी मर्यादा भंग हुई है और कैसे? आखिर, राहुल गांधी को इतना बड़ा भाईपना दिखाने की क्या जरूरत थी और वह भी संसद के अंदर। बहन प्रियंका की ठोड़ी पकडक़र, चेहरा ही हिला दिया। बड़ा भाईपना दिखाना ही था, तो डांट-डपट कर लेते। न होता, तो गंभीर सा उपदेश दे देते ; पर दूर से। यह छूकर बात करना तो हमारा संस्कार नहीं है, हमारा आदर्श नहीं है। हमारे संस्कार में, अव्वल तो वयस्क महिलाओं को पुरुषों के साथ ऐसी सभा-सोसाइटियों में होना ही नहीं चाहिए। हों भी, तो कम-से-कम उन्हें पुरुषों से और पुरुषों को उनसे, सुरक्षित दूरी पर रहना चाहिए। अव्वल तो आपस में बोलना भी क्यों, पर बोलें भी तो सुरक्षित दूरी से। टचिंग, हर्गिज-हर्गिज नहीं। गुड-बैड, कोई टच नहीं। बहन-भाई, बाप-बेटी, किसी के मामले में भी नहीं। हमारा संस्कार, संबंधों में गंभीरता का है, हंसी-ठट्ठे का नहीं। संबंध तो बनते-बिगड़ते रहते हैं, मर्यादा बनी रहनी चाहिए। और संसद की मर्यादा का तो खैर, कहना ही क्या? जितना ऊंचा सदन, उतनी ही दूरी वाली मर्यादा!
ओम बिड़ला जी पर यह इल्जाम तो खैर बिल्कुल ही गलत है कि विपक्षी देखते ही उन्हें मर्यादा की चिंता सताने लगती है। रमेेश विधूड़ी ने सदन में एक मुस्लिम सांसद पर सांप्रदायिक गालियों की बौछार कर दी, पर उन्हें मर्यादा की चिंता नहीं हुई। सत्ता पक्ष वाले विपक्षी नेताओं के खिलाफ अल्लम-गल्लम कुछ भी इल्जाम लगाते हैं, मर्यादा खतरे में नहीं पड़ती। खुद प्रधानमंत्री संसद में हर तरह के स्वांग दिखा चुके हैं, मर्यादा कभी खतरे में नहीं आयी, वगैरह। सिंपल है। बिड़ला जी एक ही मर्यादा पढ़े हैं — शाखा वाली मर्यादा। शाखा हो कि संसद, वही मर्यादा बनी रहे।
2. केर-बेर की फ्रेंडशिप
मोदी जी के विश्व गुरु होने का इससे बड़ा सबूत क्या होगा? अब तो ट्रम्प साहब ने भी अपने मोदी जी की तारीफ कर दी। कह दिया कि मोदी जी बड़े अच्छे दोस्त हैं। पर सौदेबाजी भी खूब करते हैं। खैर! खूब गुजरेगी जब बड़ा वाला सौदा करने बैठेंगे, दो अपने-अपने देश को फिर से महान बनाने वाले। अब क्या है, अब तो इंडिया की वल्ले-वल्ले!
पर इन विरोधियों को कौन समझाए। एक ही रट लगाए हुए हैं। मोदी सरकार ने ट्रम्प के आगे हथियार डाल दिए हैं, ट्रम्प के आगे समर्पण कर रही है। वहां से ट्रम्प का फरमान आता है कि फलां पर टैरिफ कम कर दो, मोदी सरकार कम कर देती है। ट्रम्प का फरमान आता है कि महंगा-सस्ता मत देखो, तुम तो अमरीका का तेल खरीदो, मोदी सरकार तेल खरीदने का करार कर आती है। ट्रम्प का हुकुम होता है कि मेरे जहाज खरीदो, मेरा फौजी साज-सामान खरीदो, मोदी सरकार शॉपिंग लिस्ट बनाने में जुट जाती है, वगैरह, वगैरह। और ट्रम्प बाकी सारी दुनिया के साथ भी जो कुछ कर रहा है, उसकी तरफ से आंखें मूंद लेती है, सो ऊपर से। लेकिन, विरोधियों की ये तोहमतें झूठी हैं। ट्रम्प अपनी छाती कितनी ही फुला ले, मोदी जी की छाती के इंच छप्पन से कम नहीं होंगे। वैसे भी डीयर फ्रेंड से कैसी होड़। दोस्ती में न कोई कंपटीशन, न कोई शर्त। रही बात टैरिफ वगैरह कम करने की तो, इसे सिर्फ संयोग ही कहा जाएगा कि ट्रम्प जो-जो करने को कह रहा है, मोदी सरकार वही-वही करती जा रही है। माना कि वह ट्रम्प की मर्जी का करती जा रही है, लेकिन वह कर रही है अपनी मर्जी से। ट्रम्प की धमकी में इतना दम कहां कि मोदी सरकार से अपने मन की करा सके! भारत का नुकसान कराने वाले काम कर रही है, पर अपनी मर्जी से कर रही है। इस मामले में आत्मनिर्भरता पर मोदी जी को कोई समझौता मंजूर नहीं है।
और जब ट्रम्प और मोदी, दोनों का मिशन एक है, दोनों अपने-अपने देश को फिर से महान बनाने में लगे हुए हैं, फिर दोनों में झगड़ा कैसा? वो जमाने गुजर गए, जब केर-बेर के संग में प्राब्लम होती थी। अब तो बेर जितना मस्ती में आएगा, केला उतना ही झुक जाएगा, प्राब्लम क्या है?
3. सब का मालिक एक है!
कोई हमें बताएगा भी कि इसमें घोटाला-घोटाला का शोर क्यों मच रहा है? माना कि बीएसएनएल वाले अंबानी सेठ के जियो से अपनी परिसंपत्तियों के उपयोग के लिए किराया वसूल करना भूल गए। वसूल करना क्या भूल गए, जियो को बिल देना ही भूल गए। बिल देना भूले तो ऐसे भूले कि पूरे दस साल तक बिल देना भूले ही रहे। उधर मोदी जी का राज चलता रहा और इधर उनका सरकारी बीएसएनएल, सुपर कुंभकर्णी नींद सोता रहा। सुपर कुंभकर्णी यूं कि बेचारा कुंभकर्ण सोने के लिए बदनाम जरूर था, पर सोता एक बार में सिर्फ छ: महीने के लिए ही था। बीएसएनएल वाले दस साल तक सोये रह गए यानी बीस कुंभकर्णों की शयनशक्ति मोदी जी के राज ने बीएसएनएल में भर दी थी। वैसे मोदी जी के राज में यह तो होना ही था। आखिरकार, हिंदू संस्कृति और संस्कारों को आगे बढ़ाने वालों का राज है। और माना कि हिंदू संस्कृति में रामलला का खास महत्व है, पर कुंभकर्ण भी आता तो हिंदू संस्कृति में ही है। रावण, कुंभकर्ण वगैरह के बिना रामकथा कही जा सकती है क्या?
वैसे अब यह बात हम पक्के भरोसे से कह भी नहीं सकते हैं। जब से शिवाजी और संभाजी महाराज को याद करने के लिए औरंगजेब की कब्र खोदकर, उसका नामो-निशान मिटाने की होड़ शुरू हुई है, तब से कभी-कभी लगता है कि हो सकता है कि मोदी जी के राज में रावण, कुंभकर्ण वगैरह का नाम लेने पर रामभक्त बैन ही लगवा डालें। खैर! मुद्दे की बात यह है कि बीएसएनएल दस साल सोया ही रहा। और पुरानी कहावत है कि जो सोवत है, सो खोवत है। सोने के चक्कर में बीएसएनएल ने 1,757 करोड़ रूपये खो दिए। पर करे कोई और भरे कोई। लंबी तान कर सोया बीएसएनएल और विरोधी इसका दोष मोदी जी से लेकर अंबानी जी तक के सिर पर मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
मोदी जी का तो इससे दूर-दूर तक कोई लेना-देना ही नहीं है। कोई एक जरा सी पुर्जी भी दिखा दे, तो हम कायल हो जाएंगे कि मोदी जी बीएसएनएल से जियो से किराया वसूल नहीं करने के लिए कहा था। आदेश छोड़िए, कहना भी छोड़िए, मोदी जी की तरफ ऐसे किसी इशारे का भी कोई सबूत नहीं मिलेगा। मोदी जी की तरफ से तो बीएसएनएल को सो जाने और सोए रहने के लिए कहने का भी कोई सबूत नहीं मिलेगा। अब अगर मोदी जी के राज में बीएसएनएल को भूखा मारे जाने से, बीएसएनएल को बेहोशी आ गयी हो और बेहोशी अगर लंबी नींद में तब्दील हो गयी हो, तो इसमें मोदी जी का क्या कसूर? कसूर तो बीएसएनएल की नींद का ही माना जाएगा।
रही बात अंबानी सेठ की कंपनी जियो की, तो उसका तो खैर दूर-दूर तक कोई कसूर नहीं बनता है। अब आप जियो से यह उम्मीद तो नहीं ही कर सकते हैं कि वह ऐसे बिलों का भी भुगतान करता फिरेगा, जो उसे कभी दिए ही नहीं गए। सिर्फ इसलिए कि बिल पौने दो हजार करोड़ रूपये से ज्यादा का था, जियो वाले खुद ही पूछ-पूछकर बिल जमा कराते फिरेंगे, इसकी मांग करना तो किसी भी तरह से जायज नहीं माना जाएगा। बिल आया होता और जियो ने भुगतान नहीं किया होता, तब तो एक बार को उस पर यह इल्जाम लगाया भी जा सकता था कि वह भुगतान से बच रहा था या बीएसएनएल का पैसा मारने की कोशिश कर रहा था। लेकिन, जब बिल ही नहीं आया तो भुगतान कैसा? और भी बहुत गम हैं अंबानी की जियो की जान को, बीएसएनएल का किराया भरने के सिवा।
और मान लो बीएसएनएल का पौने दो हजार करोड़, अंबानी की कंपनी के पास पड़ा ही रह गया, तो कोई गजब नहीं हो गया। पौने दो हजार करोड़ रूपये से बीएसएनएल कंगाल से मालामाल नहीं हो जाता। पैसा बीएसएनएल के पास रहता तो, और जियो के पास रह गया तो, क्या फर्क पड़ने वाला था। बीएसएनएल हो या जियो, मोदी जी सब को एक ही नजर से देखते हैं। आखिर, सब का मालिक एक है।
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)