
“गर्मी के प्रकोप से बचें और सुरक्षित रहें”– ज्ञानेन्द्र रावत
देश में तापमान में हुयी बढ़ोतरी ने मौसम और पर्यावरण विज्ञानियों तथा पर्यावरणविदों को चिन्ता में डाल दिया है। देश में उत्तर भारत में दिल्ली एनसीआर सहित देश के अधिकांश शहरों में तापमान 40 -42 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच जाना इस साल सबसे भीषण गर्मी पड़ने का संकेत है। कई राज्यों में हीटवेव और गर्म रातों के असर ने इस खतरे को और बढा़ दिया है। मौसम विज्ञान विभाग की माने तो इस बार गर्मी में रिकार्ड हीटवेव दिनों की संख्या दोगुना से भी ज्यादा होने की उम्मीद जताई है। यानी सामान्य से अधिक गर्मी पड़ सकती है। इसके मद्देनजर ही स्वास्थ्य विभाग ने राज्य के सभी अस्पतालों को हीटवेव के शिकार मरीजों के लिए अतिरिक्त पांच बैड आरक्षित रखने और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं चुस्त-दुरुस्त रखने का निर्देश दिया है। उ०प्र० के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने हीटवेव को लेकर जिलाधिकारियों, मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और समस्त मैडीकल कालेजों को विशेष सतर्कता बरतने और उससे निपटने के लिए तैयार रहने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा है कि हीटवेव के कारण होने वाली जनहानि को हम स्वीकार नहीं कर सकते। इसकी भरपाई मुआवजा देकर तो किसी भी तरह नहीं की जा सकती है।
इस संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का कहना है कि असलियत में शहरों में बढ़ते तापमान का कारण ‘ हीट आइलैंड इफैक्ट’ है। क्योंकि कंक्रीट की संरचनाएं दिन भर गर्मी सोखती हैं और रात में छोड़ती हैं। परिणामतः वातावरण और गर्म होता है। ऊंची – ऊंची इमारतें हवा के प्रवाह को रोकती हैं। उच्च तापमान और उमस शरीर की ठंडक बनाये रखने की प्रक्रिया को बाधित करती है जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पिछले साल हीटवेव के 40 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे और करीब 733 लोगों की मौत हुयी थीं। इसलिए बचाव बेहद जरूरी है। अत्याधिक गर्मी से इंसान तो क्या खाद्य पदार्थ भी गर्मी की मार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। सबसे दुखदायी और गंभीर चिंता की बात यह है कि भारतीय शहरों में हीटवेव कहें या लू का प्रकोप कहें, से निपटने की तैयारी अधूरी हैं।
इससे भविष्य में तीव्र और लम्बे समय तक चलने वाली गर्मी से अधिक मौतें होने की संभावना बनी रहती है। कारण शहरी नियोजन सहित अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों ने अपनी नीतियों में गर्मी की चिंता को शामिल ही नहीं किया गया है। हकीकत यह है कि निम्न सामाजिक -आर्थिक वर्ग के लोग गर्मी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इसलिये स्थानीय निकाय स्तर पर दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान केन्द्रित करने और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु हीट एक्शन प्लान को मजबूत बनाने की बेहद जरूरत है। उस स्थिति में तो यह और भी जरूरी है जबकि तापमान में दिनोंदिन हो रही बढो़तरी पर मौजूदा वैश्विक हालातों के मद्देनजर फिलहाल अंकुश की उम्मीद ही बेमानी है।
इसलिए हम अपने स्तर पर गर्मी से बचाव तो कर ही सकते हैं। जरूरी है कि हम आपात स्थिति में ही घर से बाहर निकलें। गर्मी व लू से बचाव की ख़ातिर घर से निकलने से पहले दो गिलास पानी पियें। सिर ढंकें, हल्के रंग के व बाहों वाले कपड़े पहनें। आंख का चश्मा लगायें और छाते का इस्तेमाल करें। खाली पेट ना रहें, शराब व कैफीन के सेवन से परहेज करें। नंगे पांव ना चलें और भारी काम ना करें। ठंडे पानी से नहावें। बच्चों को बंद वाहन में अकेला ना छोड़ें। दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक बाहर जाने से बचें। लू लगने पर अस्पताल व चिकित्सक से तत्काल संपर्क करें। नींबू पानी, नारियल पानी, ओ आर एस का घोल, इलैक्ट्राल ,फलों का जूस व छाछ का प्रयोग करें। यह जान लें कि लू से सर्वाधिक बच्चे, बूढ़े, खिलाड़ी व धूप में काम धंधे करने वाले प्रभावित होते हैं। लू लगने की स्थिति में पसीना ना आना, गर्म, लाल व खुष्क त्वचा होना, मितली, चक्कर आना,सिरदर्द, थकान व बेहोश हो जाना सामान्य लक्षण हैं। इसलिए सावधानियां बरतकर काफी हद तक हम लू से अपना बचाव कर सकते हैं।