बाह से बहुत सी योजनाएं अपना अस्तित्व लेने के पहले ही विलुप्त हो गई

आज की बात
अपील और मांग

बाह से अंग्रेज १९३९ में रेल उखाड़ कर चलते बने। बाह तक ही थी तब रेल। मगर जब चम्बल की वादियों से डकेत खत्म हुए तो हम जैसों को खबर की भूख नहीं शांति हुई तो खबर बनी रैल बाह में आयेगी……
राम राज सिंह राठौर, राम शंकर गुप्त, राम सिंह आजाद, मलखान सिंह राठौर, अनिल गुप्त, विनोद जैन, सत्यदेव पचौरी, उपेंद्र भदोरिया, चिरंजी वाल्मीकि पप्पू अंसारी, बाबुराम वर्मा, देवेंद्र पाराशर, राम नारायण, श्याम सुंदर शर्मा, रामों तार आदि ने रेल लाने का वीडा उठाया।
१९ ९०से चली यात्रा का समापन रेल के शुरू होने पर हुआ। जिसमें योजना को स्वीकृत कराने तक में प्रभू दयाल कठेरीया का योगदान सराहनीय रहा।
रेल आई नहर आई मगर अब डर है उसे सेह कर रखने की कैसे इन योजनाओं को और स्थाई बनाया जाए। नहर का जिस हालत तक उद्घाटन करा लिया गया आगे नहीं बढ़ाई जा सकी। प्रस्तावित रजवाहे, और बम्बे अभी तक शुरू ही नहीं हुए हैं और उसके बंद होने की बात जन प्रतिनिधि करने लगे हैं। जबकि उनको नहर का अंतिम चरण तक का स्वरूप बनाने की ओर प्रयास करने चाहिए थे।
इसी तरह से रेल आ गई मगर रुक नहीं रहीं है। विधुती कर भी हो गया। दो दर्जन गदीयं पास हो रही हैं मगर एक गाड़ी के स्टोपेज के अलावा कोई गाड़ी नहीं रुकती है। राम शंकर गुप्त अनिल गुप्ता, भुपेन्द्र गर्ग मनोज पोद्दार, उपेंद्र भदोरिया, नरेंद्र गुप्ता ने बाह में एक्सप्रेस गाड़ियों को रोकने की मांग के साथ कोटा भी तय करने की मांग रेल मंत्री से की है।
उन्होंने आश्नका जताई है कि बाह से बहुत सी योजनाएं अपना अस्तित्व लेने के पहले ही विलुप्त हो गई। जिनमें ओढ्योगिक प्रशिक्षण संस्थान चौरंगा हार , क्छपुरा से राजकीय इंटर स्कूल, महिला हस्पि”टल जैसी दर्जन भर योजनाएं समय से पहले जमीदोज हो गई।

अपील के साथ मांग सरकार और जनता से समन्वय बिठाने की नहर के पानी को फूटने न दें और रेल को खाली न चलने दें ऐसा होगा तो जन प्रतिनिधियों के इरादे सफल नहीं होंगे। हमें समन्वय बि ठाने की महती जरूरत है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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