विश्व जल दिवस 22 मार्च पर विशेष

जल संकट हमारे देश की ही नहीं, समूची दुनिया की समस्या है। सुरक्षित पानी के मामले में संकट की भयावहता का आलम यह है कि आधी दुनिया साफ और सुरक्षित पानी के संकट से जूझ रही है। यही नहीं पूरी दुनिया में पानी के लिए लोग एक-दूसरे का खून बहा रहे हैं। बीते बरस इसके जीते – जागते सबूत हैं। हमारा देश भी इस मामले में पीछे नहीं है। इन मामलों में साल-दर-साल हो रही बढ़ोतरी चिंता का विषय है। वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का कहना है कि
आज दुनिया की तकरीबन 26 फीसदी आबादी स्वच्छ पेय जल संकट का सामना कर रही है। 2050 तक दुनिया की 1.7 से 2.4 अरब शहरी आबादी को पेय जल संकट का सामना करना पड़ेगा। इससे सबसे ज्यादा भारत के प्रभावित होने की आशंका है।
एशिया की तकरीबन 80 फीसदी खासकर पूर्वोत्तर चीन, भारत और पाकिस्तान की आबादी भीषण पेयजल संकट से जूझ रही है। इस संकट से जूझने वाली वैश्विक शहरी आबादी वर्ष 2016 के 93.3 करोड़ से बढ़कर 2050 में 1.7 से 2.4 अरब होने की आशंका है जिसकी सबसे ज्यादा मार भारत पर पड़ेगी। यदि इस वैश्विक अनिश्चितता को खत्म नहीं किया गया और इसका शीघ्र समाधान नहीं निकाला गया तो निश्चित ही इस संकट का सामना करना बेहद मुश्किल होगा। पेयजल मानवता के लिए रक्त की तरह है। इसलिए जल की बर्बादी रोकना और संचय बेहद जरूरी है। सबसे बड़ी जरूरत पर्यावरणीय मुद्दों को ठोस और प्रासंगिक बनाने की है तभी कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।