दोषी रा ठहराए गएजनेता वापस कैसे आ सकते हैं?’ :

LEGAL UPDATE

⚖️***⚖️


For More Information✍🏻

https://www.facebook.com/RastogiLawFirm

‘दोषी रा ठहराए गएजनेता वापस कैसे आ सकते हैं?’ : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से MPs/MLAs पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के बारे में पूछा

दोषी ठहराए गए व्यक्तियों के MPs/MLAs के रूप में चुनाव लड़ने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीति का अपराधीकरण बहुत बड़ा मुद्दा है और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने पर भारत संघ और चुनाव आयोग (ECI) से जवाब मांगा।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा शुरू की गई जनहित याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए MPs/MLAs को आजीवन अयोग्य ठहराए जाने की मांग की गई थी। उल्लेखनीय है कि इस जनहित याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के उन प्रावधानों को भी चुनौती दी, जो केवल दोषी ठहराए गए राजनेताओं को जेल की सजा काटने के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने से रोकते हैं।

🟤 एमिक्स क्यूरी की भूमिका निभा रहे सीनियर एडवोकेट विजय हंसरिया ने बताया कि जनहित याचिका दायर होने के बाद से मामले में कई निर्देश पारित होने के बावजूद, MPs/MLAs से संबंधित लगभग 5000 आपराधिक मामले लंबित हैं। हंसरिया ने जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दों को इस प्रकार संक्षेप में प्रस्तुत किया: (i) MPs/MLAs मामलों का शीघ्र निपटान, (ii) जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की संवैधानिक वैधता, जो किसी दोषी व्यक्ति की अयोग्यता अवधि को 6 वर्ष तक सीमित करती है, (iii) क्या किसी आपराधिक अपराध में दोषी व्यक्ति राजनीतिक दल बना सकता है, या किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी हो सकता है?

🔵 न्यायालय के पिछले आदेशों को दोहराते हुए एमिक्स क्यूरी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2017 में, 10 विभिन्न राज्यों में 12 स्पेशल कोर्ट की स्थापना के लिए निर्देश पारित किया गया। इसके बाद 2023 तक नोडल अभियोजन अधिकारी, कोई स्थगन आदि प्रदान करने के आदेश पारित किए गए। 2023 में न्यायालय ने मामले में निर्णय भी पारित किया, जिसमें MPs/MLAs के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए कई निर्देश जारी किए गए। फिर भी स्थिति बहुत खराब है।

उन्होंने कहा,

“यह शर्म की बात है कि इतना कुछ होने के बाद भी 42% मौजूदा लोकसभा सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। 30 वर्षों से मामले लंबित हैं!”

जस्टिस दत्ता ने इस पर एमिक्स क्यूरी से पूछा कि मामलों के निपटान में देरी के लिए दोष किसका है।

🟡 देरी के कारणों को समझाने का प्रयास करते हुए एकमिक्स क्यूरी ने दावा किया: (i) स्पेशल कोर्ट अक्सर MPs/MLAs मामलों के अलावा अन्य मामलों को भी लेती हैं,(ii) बार-बार स्थगन दिए जाते हैं और आरोपी पेश होने में विफल रहते हैं, (iii) गवाहों को अदालतों द्वारा बुलाया जाता है, लेकिन उन्हें समय पर संबंधित समन नहीं दिए जाते।

🟠 जस्टिस मनमोहन ने जब आपत्ति जताई कि पहला कारण “अतिसामान्यीकृत” कथन प्रतीत होता है, क्योंकि दिल्ली में नामित MPs/MLAs कोर्ट में केवल कुछ मामले सूचीबद्ध हैं और संबंधित जज को दिन में जल्दी छुट्टी मिल जाती है तो हंसारिया ने कहा कि दिल्ली का उदाहरण उचित नहीं हो सकता है, क्योंकि कई राज्यों में नामित MPs/MLAs कोर्ट नहीं हैं।

जस्टिस मनमोहन ने कहा,

🛑 “स्थिति को सामान्य न बनाएं। आप पूरे देश को एक ही रंग में रंग रहे हैं। ऐसा नहीं होता। ट्रायल कोर्ट के गलियारे में चलें। सुनवाई के लिए आए मुवक्किल आपको कोसेंगे और कहेंगे कि 10.30 बजे यह जज अपने रूम में चले गए। दूसरे जज पर इतना अधिक काम का बोझ है कि… बारीकी से अध्ययन करें। कृपया हमें बताएं कि वास्तविक कारण क्या है। कोई निर्देश नहीं हो सकता! कृपया एक अदालत का अध्ययन करें – राउज एवेन्यू अदालतों का अध्ययन करें।”

🔘 सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने हंसारिया का समर्थन करते हुए कहा कि नामित अदालतों को निर्देश दिया जा सकता है कि वे MPs/MLAs मामलों को पहले लें, यदि वे सूचीबद्ध हैं और उसके बाद अन्य आधिकारिक काम करें।

🛑 हालांकि, जस्टिस मनमोहन ने इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली में MPs/MLAs कोर्ट होने के बावजूद, नंबर में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। जज ने एमिक्स क्यूरी-हंसारिया से कहा कि वे इस मुद्दे पर राज्य-दर-राज्य आधार पर विचार करें, क्योंकि प्रत्येक राज्य को अलग-अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता हो सकती है।

🟣 आगे बढ़ते हुए विकास सिंह ने न्यायालय का ध्यान एक अन्य मुद्दे की ओर आकर्षित किया, अर्थात जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की वैधता को चुनौती। उन्होंने तर्क दिया कि संसद की यह मंशा नहीं हो सकती कि जघन्य अपराध (जैसे बलात्कार, हत्या) का दोषी ठहराया गया व्यक्ति, जिसे 2-3 साल की छोटी सजा के बाद रिहा कर दिया जाता है, MPs/MLAs के रूप में निर्वाचित हो जाए।

विकास सिंह ने कहा,

“हम देख रहे हैं कि अपहरण, बलात्कार, हत्या के आरोपों वाले 46-48% लोग संसद में वापस आ रहे हैं, जहां सजा कम अवधि की है। इस धारा का मसौदा तैयार करते समय संसद की यह मंशा कभी नहीं रही होगी।”

रामबाबू सिंह ठाकुर बनाम सुनील ठाकुर का हवाला देते हुए जहां सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी राजनीतिक दलों को नामांकन दाखिल करते समय अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का विवरण प्रकाशित करना चाहिए, विकास सिंह ने बताया कि उस समय न्यायालय को सुझाव दिया गया था कि राजनीतिक दल को यह बताना होगा कि उसे गैर-आपराधिक पृष्ठभूमि वाला उम्मीदवार क्यों नहीं मिला।

उन्होंने कहा,

▪️ “इसे न्यायालय के आदेश का हिस्सा बनाया गया। इसके बाद स्टेटस रिपोर्ट मांगी गई। हर राजनीतिक दल का एक ही जवाब था कि वह सोशल एक्टिविस्ट है और दर्ज किए गए सभी मामले झूठे हैं।”

जस्टिस दत्ता ने इस बात पर ध्यान देते हुए सवाल उठाया कि आपराधिक अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद लोगों को संसद और राज्य विधानसभाओं में वापस आने की अनुमति कैसे दी जा सकती है:

“एक बार जब उन्हें दोषी ठहराया जाता है और दोषसिद्धि को बरकरार रखा जाता है…और […] जांच के बाद लोग संसद और विधानसभाओं में कैसे वापस आ सकते हैं? उन्हें जवाब देना होगा। इसमें हितों का टकराव भी स्पष्ट है। वे कानूनों की जांच कर रहे होंगे।”

सहमति जताते हुए विकास सिंह ने संक्षेप में कहा कि जिन लोगों को प्रतिबंधित करने की मांग की जा रही है, वे संसद का हिस्सा हैं, जिसे प्रतिबंधित करने के लिए कानून पारित करना है।

तीसरी प्रार्थना (दोषी व्यक्तियों के राजनीतिक दलों के पदाधिकारी होने से संबंधित) के संबंध में हंसारिया ने दावा किया कि प्रचलित कानून के तहत हत्या का दोषी व्यक्ति भी आरक्षित चिह्न के हकदार राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल का अध्यक्ष बन सकता है। उन्होंने आग्रह किया कि चुनाव आयोग का बचाव यह है कि उसके हाथ बंधे हुए हैं। हालांकि, चुनाव निकाय दिशा-निर्देश जारी कर सकता है कि दोषी व्यक्ति पदाधिकारी के रूप में कार्य न करें।

एक बिंदु पर जस्टिस मनमोहन ने टिप्पणी की कि ऐसी स्थिति हो सकती है, जहां व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, जैसे कि उनकी पत्नी के माध्यम से किसी राजनीतिक दल का रिमोट कंट्रोल कर सकता है। ऐसे में सभी व्यावहारिक स्थितियों को देखने की आवश्यकता है, जिससे कोई खामी न रह जाए।

जज ने टिप्पणी की,

⏹️ “आपका लक्ष्य कुछ ऐसा है, जिसे हमें एक देश के रूप में प्राप्त करने की आवश्यकता है। लेकिन कोई अधूरी कवायद नहीं होनी चाहिए। अगर कल हम कोई खामी छोड़ देते हैं तो निर्णय का कोई प्रभाव नहीं रह जाएगा। लोगों का संस्था में विश्वास बढ़ने के बजाय और अधिक कम हो जाएगा।”

⏺️ अंततः, खंडपीठ ने उल्लेख किया कि MPs/MLAs मामलों के शीघ्र निपटान के मुद्दे को न्यायालय की तीन जजों की पीठ द्वारा 2023 में निपटाया गया। इसकी निगरानी हाईकोर्ट पर छोड़ दी गई। हालांकि, जैसा कि दावा किया गया कि उनके निपटान में लगातार देरी हो रही थी, हाईकोर्ट केवल स्टेटस रिपोर्ट बुला रहे थे और मामलों को स्थगित कर रहे थे, जस्टिस दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने उचित पीठ के गठन के लिए इस मुद्दे को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना के समक्ष रखा।

👉🏿 दूसरी ओर, आरपी अधिनियम की धारा 8 और 9 की वैधता से संबंधित मुद्दे को 3 सप्ताह बाद खंडपीठ द्वारा ही विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया था। न्यायालय ने संघ (सीनियर एडवोकेट सोनिया माथुर द्वारा प्रतिनिधित्व) के साथ-साथ चुनाव आयोग को भी अपने हलफनामे दाखिल करने के लिए समय दिया। चूंकि वैधानिक प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई, इसलिए इसने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को भी न्यायालय को संबोधित करने के लिए बुलाया।

सुनवाई समाप्त होने से पहले जब चुनाव आयोग के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा तो जस्टिस मनमोहन को यह टिप्पणी करते हुए सुना गया,

“राजनीति का अपराधीकरण बहुत बड़ा मुद्दा है। चुनाव आयोग ने अपना विवेक लगाया होगा और हमारे सामने जो कुछ भी पेश किया गया, उससे बेहतर समाधान भी ढूंढा होगा।”

जवाब में वकील ने प्रस्तुत किया कि इसे न्यायालय के समक्ष रखा जाएगा।

केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 699/2016

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks