
दिल्ली में भाजपा को प्रचंड बहुमत। आम आदमी पार्टी की सरकार की विदाई। अरविंद केजरीवाल और उनके सलाहकारों की रणनीति फेल। चुनावी सभाओं में हर माह 25 हजार रुपये की बचत योजना (चुनावी चाल) बताने पर भी लोगों ने ‘आप’ पर भरोसा नहीं जताया। यहां तक कि मुस्लिम बाहुल क्षेत्रों में भी मोदी और उनकी विकास की योजनाओं में लोगों ने आस्था जताई है। मिल्कीपुर उप चुनाव के नतीजे भी यही कहते हैं। यह अलग बात है कि ‘आप’ सरकार की जिन योजनाओं को मुफ्त की रेवड़ी बताकर बीजेपी केजरीवाल और उनकी सरकार की आलोचना करती रही है, उसी मुफ्त रेवड़ी का उसे भी चुनाव जीतने के लिए सहारा लेना पड़ा है।
दरअसल, ‘आप’ को भ्रष्टाचार ले डूबा। कहावत है कि जो दिखता है, वह बिकता है। पिछले साल से लोग देख रहे थे- ‘आप’ का हर बड़ा नेता और मंत्री किसी ने किसी मामले में जेल पहुंच गया। भ्रष्टाचार के एक से बढ़कर एक मामले सामने आए। यहां तक कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक को सीखचों के पीछे जाना पड़ा। केजरीवाल शराब और पैसे के मामलों में उलझते चले गए। उनकी छवि लगातार खराब होती गई। पार्टी की छवि को लेकर जनता में नकारत्मक धारणा बनने लगी। केजरीवाल ने अपनी और अपनी सरकार के मंत्रियों के बचाव में सैकड़ों कसीदे पढ़े। लेकिन मुकदमों के सिकंजों से कैसे बचें, इसका समाधान ढूंढना भी उनकी मजबूरी थी।
उलझन बढ़ती गई। केजरीवाल और उनके मंत्री भूल गए कि उन्होंने प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ जिस बुनियाद पर ‘आप’ की नींव रखी है और दिल्ली में सरकार बनाई गई थी, वे सारे कायदे-कानून खत्म होते जा रहे हैं। उन वादों की अब कोई अहमियत नहीं रह गई है। सड़कें खस्ताहाल, भयंकर प्रदूषण, बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था, बढ़ता भ्रष्टाचार, यहां तक कि कई इलाकों में बुनियादी सुविधाओं से भी आम लोग महरूम होने लगे। जमानत पर बाहर आने के बाद सांसद संजय सिंह, पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया और फिर खुद ‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने चुनावी सभाओं में सफाई देते हुए स्थिति को संभालने की कोशिश की पर आम आदमी के गले से नीचे यह बात नहीं उतरी कि केजरीवाल और उनके मंत्री पाक-साफ हैं। जनता तो यही समझती है कि ‘आप’ नेता कितनी भी सफाई दें पर ‘दाल में काला’ जरूर है। उसी का नतीजा है कि सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसौदिया चुनाव हार गए। पूर्व मुख्यमंत्री एवं पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल तक अपनी नई दिल्ली की सीट नहीं बचा पाए। बड़ी मुश्किल से मुख्यमंत्री रहीं अतिशी ने पार्टी की लाज बचाई है।
दिल्ली की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के घोषणा पत्र पर भरोसा जताते हुए बीजेपी को सरकार बनाने का पूर्ण बहुमत सौंप दिया है। यह अलग बात है कि बीजेपी ने भी ‘आप’ की तरह अपने चुनावी घोषणा पत्र में कई मुफ्त वाली योजनाओं की बात कही है, महिलाओं को उनके खाते में हर महीने रकम डालने का वादा किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में एक भी झुग्गी न तोड़ते हुए ‘शानदार दिल्ली’ बनाने की बात लिखी है। कांग्रेस या अन्य पार्टियों ने भी वादे किए थे, लेकिन जनता ने सभी पार्टियों व दलों को नकारते हुए मात्र बीजेपी में भरोसा जताया है। इसलिए दिल्ली के नतीजे बीजेपी के लिए एक चुनौती भी हैं।
सभी जानते हैं कि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र के पास है। दिल्ली पुलिस भी उसी के तहत काम करती है। लेकिन डबल इंजन की सरकार बनने के बाद यह समस्या कोई बाधा नहीं बनेगी। केंद्र की विकास की जितनी भी योजनाएं हैं, वे सब दिल्ली में लागू होंगी। ऐसे में देखना होगा कि दिल्ली में डबल इंजन की सरकार ‘आप’ से कितना इतर करती है और क्या अपराध पर काबू पाएगी? क्या आम जनता को उसकी सहूलियत के हिसाब से वह सारी चीजें मुहैया होंगी जिसकी उसे दरकार है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)